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'तब तक धरने से नहीं उठेंगे, जब तक क़ानून नहीं बदलेगा’

'तब तक धरने से नहीं उठेंगे, जब तक क़ानून नहीं बदलेगा’

दिल्ली ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर पर देवराज पिछले 80 दिनों से धरने पर बैठे हैं। वह कहते हैं कि 81वाँ दिन है और उम्मीद है कि सरकार यह क़ानून वापस ले लेगी और हम लोग अपनी खेती-किसानी करने अपने-अपने घरों को चले जाएँगे। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना प्रमुख फ़सल है। एक बीघे खेत में क़रीब 70 क्विंटल गन्ना उगता है। उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले के भैंसवाल गाँव के रहने वाले 52 साल के देवराज पहलवान गन्ने की खेती करते हैं। इस साल उन्होंने 25 बीघे ज़मीन में गन्ना लगाया था। वह मिल को अपना गन्ना दे चुके हैं, लेकिन छह महीने से भुगतान नहीं मिला है। गन्ने का क़रीब 5 लाख रुपये मिल में फँसा हुआ है। 

खेती बाड़ी की समस्याओं के बारे में पूछने पर देवराज बताते हैं कि कहाँ से शुरू करें और कहाँ ख़त्म करें। इस काम में परेशानी ही परेशानी है। हर क़दम पर दुख ही दुख। गन्ने की फ़सल बोने पर नकदी मिल जाती है, इसलिए बोते हैं। डीजल से लेकर खाद और कीटनाशक तक वह सरकार पर निर्भर हैं।

देवराज कहते हैं कि सरकार हमसे एक लीटर डीजल पर 40-50 रुपये मुनाफा ले रही है। सरकार खाद और कीटनाशक पर कितने पैसे किसानों से कमाती है, नहीं पता, क्योंकि डीजल और पेट्रोल के बारे में अख़बार में छपता रहता है कि सरकार कितने पैसे कर लेती है। उन्हें लगता है कि कीटनाशक और खाद बनाने में भी उद्योगपति कमाते ही होंगे और उस पर भी टैक्स लगता होगा। देवराज कहते हैं कि इन वजहों से किसानों की लागत लगातार बढ़ रही है। 

इसके अलावा सरकार ने किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड बना दिया है, जिसके एवज में उनकी ज़मीन गिरवी रहती है। फ़सल न बिकने, गन्ने की कमाई का पैसा फँसे रहने से क्रेडिट कार्ड का भुगतान समय पर नहीं हो पाता और उसका ब्याज अलग से भरना पड़ता है।

देवराज पिछले 80 दिनों से दिल्ली ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर पर धरने पर बैठे हैं। यह पूछने पर कि कब तक धरने पर बैठे रहेंगे, वह कहते हैं कि उम्मीदों पर ही जी रहे हैं। 81वाँ दिन है और उम्मीद है कि सरकार यह क़ानून वापस ले लेगी और हम लोग अपनी खेती-किसानी करने अपने-अपने घरों को चले जाएँगे।

वह कहते हैं कि सड़क पर बैठे रहने से काम का नुक़सान हो रहा है, खेती-बाड़ी, जानवर, पेड़-पौधे हमारा इंतज़ार कर रहे हैं गाँव में। देवराज कहते हैं कि उन्हें तो धरने पर लेकर नहीं आ सकते।

 - Satya Hindi

उनका कहना है कि सरकार किसान आंदोलन को कभी जाटों का, कभी सिखों का, कभी खालिस्तनियों का बता रही है। लेकिन अब लोगों को समझ में आ गया है कि इस सरकार का जो भी विरोध करता है, उसी को ये देश-विरोधी कहते हैं। वह कहते हैं कि अब हमको कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये किसको देश विरोधी कहते हैं, हम लोगों के गाँव के लोग अब जान गए हैं कि सरकार ही देश विरोधी है।

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राजनीति के बारे में बात करने पर देवराज कहते हैं कि बहुत बड़ी ग़लती हुई, जो हमने इस सरकार को चुना। यह सरकार तो हम लोगों से खाना-पानी भी छीन लेना चाहती है। अगर हमारी फ़सल उद्योगपति के हाथ में जाती है तो खेती-बाड़ी ही नहीं, हम लोगों की रोटी-दाल भी छिन जाएगी। वह उदाहरण देकर बताते हैं कि दूध-दही, गेहूं-चावल और कुछ सब्जियों को छोड़कर किसान भी ज़्यादातर चीजें खरीदकर खाता है। अगर यह फ़सल उद्योगपति के गोदाम से हमारे पास आएगी तो हमारे लिए खरीदकर खाना मुश्किल हो जाएगा। गाँव में जो लोग मज़दूरी करते हैं, या कम खेती वाले हैं और नौकरी चाकरी करके गुजर बशर कर रहे हैं, वे भी इस बात को समझ रहे हैं। सभी लोग साथ हैं, यह आंदोलन किसी जाति या धर्म विशेष का नहीं है। 

देवराज को अभी भी भरोसा है कि सरकार उनकी बात सुनेगी। वह इसी भरोसे के साथ धरने पर बैठे हैं। साथ में यह भी कहते हैं कि क़ानून नहीं बदलेगा, तब तक नहीं उठेंगे।

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