जब से यातायात नियम तोड़ने के मामलों में जुर्माना राशि में भारी बढ़ोतरी हुई है, तब से दिल्ली और आसपास के पीयूसी यानी पल्यूशन अंडर कंट्रोल बूथों के सामने लंबी कतारें लग रही हैं क्योंकि कई लोग जो सालों से प्रदूषण जाँच नहीं करवा रहे थे, वे जुर्माना राशि में दस गुना बढ़ोतरी (1 हज़ार से 10 हज़ार रुपये) से काँप गए हैं। कहीं-कहीं तो पाँच-पाँच घंटों तक वाहन मालिकों/चालकों को इंतज़ार करना पड़ रहा है। दिल्ली और आसपास यह भीड़ ज़्यादा है क्योंकि दिल्ली में वाहनों की संख्या देश के सभी महानगरों में सर्वाधिक है।
लेकिन ऐसे ही समय में कई ऐसे भी लोग हैं जो घर बैठे पीयूसी सर्टिफ़िकेट बनवा रहे हैं, न कार को बूथ तक ले जाने की ज़रूरत, न जाँच करवाने की ज़रूरत, न समय और पेट्रोल ख़र्च करने की ज़रूरत। बस अपनी गाड़ी की नंबर प्लेट और आरसी की तस्वीरें वॉट्सऐप पर भेजनी है और फिर चाहे अतिरिक्त शुल्क देकर सर्टिफ़िकेट घर मँगवा लें या फिर फ़ुर्सत में ख़ुद ही ले जाएँ।
इस फ़र्ज़ीवाड़े का भंडाफोड़ करने के लिए हमने नोएडा की एक गाड़ी जिसका नंबर UP16Q 5160 है, और जो नोएडा में खड़ी है (देखें नीचे तस्वीर जिसमें गाड़ी का नंबर और पार्श्व में मेट्रो लाइन का कॉरिडोर दिख रहा है), उसका उत्तर प्रदेश से बाहर के दो राज्यों से पीयूसी सर्टिफ़िकेट बनवाया। इसके लिए उस व्यक्ति को जिसने हमें इस फ़र्ज़ीवाड़े की जानकारी दी थी, कार की नंबर प्लेट और रजिस्ट्रेशन सर्टिफ़िकेट का फ़ोटो भेज दिया। कुछ ही घंटों में दोनों राज्यों से पीयूसी सर्टिफ़िकेट हमारे पास आ गए।
UP16Q 5160 नंबर की वह गाड़ी जो नोएडा, उत्तर प्रदेश में खड़ी है, उसका राजस्थान और मध्य प्रदेश में पीयूसी सर्टिफ़िकेट बन गया।
चूँकि हमें उन सर्टिफ़िकेटों का उपयोग नहीं करना था, इसलिए हमने उसका ऑरिजिनल नहीं मँगवाया, केवल तसवीरें मँगाईं। हमने उन सेंटरों के नाम छुपा दिए हैं जहाँ से ये प्रमाणपत्र जारी हुआ हैं क्योंकि हमारी मंशा एक या दो सेंटरों का लाइसेंस कैंसल करवाना नहीं है, बल्कि इस गड़बड़ी की तरफ़ सरकार का ध्यान दिलाना है। देखें तस्वीरें।ये दोनों प्रमाणपत्र छह महीने तक वैध हैं और भारत के हर हिस्से में मान्य हैं।
यह राजस्थान और मध्य प्रदेश से जारी पीयूसी सर्टिफ़िकेट है जो नोएडा में खड़ी गाड़ी नंबर UP16Q 5160 का है।
हमने यह छोटा-सा ऑपरेशन इसीलिए किया ताकि अधिकारियों को मालूम पड़े कि बिना वाहन के प्रदूषण स्तर की जाँच के भी सर्टिफ़िकेट बनाए जा सकते हैं, बनाए जा रहे हैं। यह भी संभव है कि यह केवल मध्य प्रदेश या राजस्थान में ही नहीं, देश के हर हिस्से में हो रहा है। हो सकता है, इस तरह हज़ारों या लाखों की संख्या में लोग प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों का फ़र्ज़ी पीयूसी सर्टिफ़िकेट बनवा रहे हों।
यही नहीं, गाड़ियों के फ़िटनेस सर्टिफ़ेकिट भी इसी तरह सारे देश में बन रहे हैं। कई आरटीओ कार्यालयों में बिना वाहन की परीक्षा के फ़िटनेस प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं जिनमें खटारा यात्री वाहन भी शामिल हैं। बस इसके लिए 1 हज़ार से 2 हज़ार रुपये अतिरिक्त देने पड़ते हैं।
अब यह परिवहन और पर्यावरण मंत्रालयों को देखना है कि कैसे वे सिस्टम में सुरक्षा उपाय बेहतर करते हैं ताकि इस तरह से फ़र्ज़ी पीयूसी और फ़िटनेस सर्टिफ़िकेट नहीं जारी किए जा सकें और जो ऐसा कर रहे हैं या करवा रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ भी वैसा ही भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाए जो इन दिनों आम वाहनचालक पर लगाया जा रहा है।