फेसबुक ने भारत से संबंधित रिपोर्ट में ऐसे की लीपापोती, हो रही अंतरराष्ट्रीय आलोचना
फेसबुक ने भारत में अपने मानवाधिकारों के प्रभाव पर जारी रिपोर्ट में जबरदस्त लीपापोती की है। इस रिपोर्ट का लंबे समय से इंतजार था। रिपोर्ट गुरुवार को जारी हुई थी, लेकिन भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट का विश्लेषण या अन्य कोई चर्चा अभी तक नहीं सुनाई दी। अमेरिका की टाइम मैगजीन ने इसका विश्लेषण किया है। फेसबुक की कंपनी मेटा पर भारत में दक्षिणपंथी विचारों वाली सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी से हाथ मिलाने और उसके इशारे पर तमाम तरह के बदलाव का आरोप लगता रहा है।
फेसबुक ने ऑनलाइन अभद्र भाषा, नफरत आदि को बढ़ावा न देने और इसका प्रसार रोकने के लिए अपनी भूमिका तय करने की कोशिश में मानवाधिकार प्रभाव मूल्यांकन (HRIA) शुरू किया था। दरअसल, दो साल से तमाम मानवाधिकार समूह चेतावनी दे रहे थे कि फेसबुक भारत में नागरिक आजादी में गिरावट और अल्पसंख्यकों के सामने आने वाले खतरों को बढ़ाने में मदद कर रहा है।
भारत एचआरआईए फेसबुक रिपोर्ट स्वतंत्र कानूनी फर्म फोले होग ने तैयार की है। जिसने रिपोर्ट को पूरा करने के लिए 40 से अधिक सिविल सोसायटी के स्टेकहोल्डरों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का इंटरव्यू लिया था। लेकिन फेसबुक ने गुरुवार को कानूनी फर्म के निष्कर्षों पर अपना चार पृष्ठ की जो समरी रिपोर्ट जारी की उसमें भी भारत को लेकर लीपापोती की गई। इसमें किसी भी नागरिक अधिकार समूहों का सार्थक विवरण नहीं था। इस संबंध में टाइम मैगजीन के इस स्टोरी को लिखने वाले बिली पेरीगो का ट्वीट भी पढ़ा जा सकता है।
The report says the independent auditor made "recommendations" about what Facebook should do to improve its human rights impact in India.
— Billy Perrigo (@billyperrigo) July 14, 2022
But Facebook won't say what those reccos were.
And then they spend nearly a page saying what they're already doing.
फेसबुक रिपोर्ट की समरी, जिसका पूर्ण संस्करण सार्वजनिक नहीं किया गया, कहता है कि फोले होग ने कंपनी को भारत में अपने मानवाधिकार प्रभाव को बेहतर बनाने के लिए "सिफारिशें" दीं। लेकिन फेसबुक ने यह नहीं बताया कि वे सिफारिशें क्या हैं।
चार पन्नों का सारांश कहता है: एचआरआईए ने कार्यान्वयन और निरीक्षण को कवर करने वाली सिफारिशें दीं। सामग्री का मॉडरेशन सख्ती से करने को कहा। इसके बाद सात पैराग्राफों में उन मानवाधिकार उपायों का विवरण है जो फेसबुक पहले से ही भारत में अपना रहा है, जिसमें इसके कंटेंट मॉडरेशन वर्कफोर्स को बढ़ाना और पारदर्शिता को बढ़ाना शामिल है। लेकिन उन सिफारिशों पर यह समरी रिपोर्ट मौन है कि फेले होग ने नफरत का कंटेंट रोकने के लिए सिफारिशें क्या की हैं।
फेसबुक रिपोर्ट 2020 में अंखी दास विवाद से उपजे विवादास्पद आरोपों पर कोई निर्णय नहीं लेती है। अंखी दास के फेसबुक कार्यकाल में भारत में घृणित सामग्री को लेकर नजरिया सत्तारूढ़ दल के प्रति पक्षपाती रहा है ताकि बाजार तक पहुंच बनाए रखी जा सके। जबकि फोले होग ने सिर्फ यह उल्लेख किया कि नागरिक समाज के स्टेकहोल्डरों ने सामग्री मॉडरेशन में पूर्वाग्रह के कई आरोप लगाए हैं। फेसबुक की रिपोर्ट का सारांश कहता है कि स्टेकहोल्डर्स ने इस बारे में आकलन नहीं किया या निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे कि क्या इस तरह के पूर्वाग्रह मौजूद हैं।
भारत में फेसबुक की सबसे वरिष्ठ कार्यकारी, अंखी दास ने अक्टूबर 2020 में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद इस्तीफा दे दिया था। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि उन्होंने भारत के हिंदू राष्ट्रवादी सत्तारूढ़ दल के सदस्यों के खातों को फेसबुक से हटाने के मामले में हस्तक्षेप किया था। जिनमें से कुछ खातों ने भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ हिंसा का आह्वान किया था। यूजर्स के लिहाज से भारत फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार है। सत्तारूढ़ दल की उसे मदद हासिल है। बता दें कि पीएम मोदी जब अमेरिका यात्रा के दौरान फेसबुक मुख्यालय जाकर उसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग से मिले थे तो भारत में यह फोटो सोशल मीडिया पर बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस फोटो के जरिए उस समय बहुत सारे मतलब लगाए गए थे।
अंतरराष्ट्रीय आलोचना
एक शिक्षाविद ऋतंभरा मनुवी, जिनका फॉली होग ने इस रिपोर्ट के लिए इंटरव्यू किया था, ने कहा कि फेसबुक रिपोर्ट का सारांश भारत में इसकी बड़ी गलतियों का कवरअप है जो यह दर्शाता है कि फेसबुक मानव अधिकारों की प्रतिबद्धता के प्रति सीमित पहुंच रखता है।मनुवी, जो नीदरलैंड्स में ग्रोनिंगन यूनिवर्सिटी में कानूनी विद्वान हैं, ने कहा कि वह जिस फाउंडेशन को चलाती हैं, द लंदन स्टोरी, ने 600 से अधिक पृष्ठों की रिपोर्ट जारी की थी, जो बताती है कि भारत में फेसबुक की लोकप्रियता का आधार घृणास्पद खाते हैं। फेसबुक ने असलियत में सिर्फ 16 ऐसे खातों को हटाया जो नफरत फैला रहे थे लेकिन ऐसे खातों की संख्या तो बहुत ज्यादा है।
“
स्टेकहोल्डर के रूप में, हमने (फोले होग) को बहुत स्पष्ट रूप से बताया था कि फेसबुक ने कैसे फ्रिंज समूहों को गति प्रदान की है। रिपोर्ट के फेसबुक सारांश में इस विशिष्ट प्रकार के प्लेटफ़ॉर्म दुरुपयोग का कोई उल्लेख नहीं है।
-ऋतंभरा मनुवी, ग्रोनिंगन यूनिवर्सिटी, अमेरिका, टाइम मैगजीन में
रियल फेसबुक ओवरसाइट बोर्ड प्रेशर ग्रुप ने कहा कि रिपोर्ट अस्पष्टता में एक मास्टर-क्लास है और पूरे भारत में धार्मिक हिंसा की लीपापोती करने का मेटा प्लेटफॉर्म है।
प्रोग्रेसिव टेक लॉबी ग्रुप ल्यूमिनेट के लिए कैंपेन और मीडिया की निदेशक अलाफिया जोयाब ने एक ट्वीट में कहा, फेसबुक ने भारत पर उनके मानवाधिकार प्रभाव आकलन (एचआरआईए) पर कुछ खाली पन्ने प्रकाशित किए होंगे। मैंने चार छोटे पन्नों में इतनी वाहियात बातें कभी नहीं पढ़ीं। जोयाब ने कहा, "यह भारतीय नागरिक समाज का अपमान है।
2021 में, टाइम मैगजीन ने बताया था कि फेसबुक के कुछ कर्मचारियों द्वारा आंतरिक चेतावनी के बावजूद, फेसबुक ने एक हिंदू राष्ट्रवादी साजिश वाले सिद्धांत को अपने मंच पर पनपने दिया। एक चरमपंथी कट्टर नेता या पुजारी का एक वीडियो जिसमें हिंदुओं को उठने और मुसलमानों को मारने का आह्वान किया गया था, 14 लाख बार देखा गया था। टाइम ने पिछले नवंबर में फेसबुक से इस बारे में संपर्क किया था, तब तक इसे हटाया नहीं गया था।
टाइम की उस रिपोर्ट ने बताया था कि फेसबुक ने एक हिंदू चरमपंथी समूह पर प्रतिबंध तो लगाया लेकिन उस प्रतिबंध के बाद महीनों तक उसके अधिकांश पेजों को ऑनलाइन बने रहने दिया, जिससे उस सगंठन को अपने 2.7 मिलियन फॉलोवर्स के बीच मुसलमानों को राक्षस के रूप में चित्रित करने वाली सामग्री साझा करने की अनुमति मिलती रही।