दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों की जांच के मामले में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक को दिल्ली विधानसभा के पैनल के सामने पेश होना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को दिए अपने आदेश में यह बात कही। अदालत ने यह भी कहा कि फ़ेसबुक को क़ानून और व्यवस्था से जुड़े मुद्दों जवाब देने के लिए मज़बूर नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्हें देखना केंद्र सरकार का काम है।
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि दिल्ली विधानसभा के पैनल को शांति और सौहार्द्र से जुड़े किसी भी मामले में जानकारी लेने का हक़ है लेकिन उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि केंद्रीय नियमों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण न हो।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल 23 फरवरी को दंगे शुरू हुए थे और ये तीन दिन तक चले थे। इस दौरान यह इलाक़ा बुरी तरह अशांत रहा था और दंगाइयों ने वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी। जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और न्यू उस्मानपुर आदि इलाक़ों में फैल गए इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 581 लोग घायल हो गए थे।
जस्टिस संजय किशन कौल, दिनेश माहेश्वरी और हृषिकेश रॉय की तीन जजों की बेंच ने फेसबुक की भारत यूनिट के वाइस प्रेसीडेंट अजीत मोहन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह फ़ैसला सुनाया। अजीत मोहन ने उन्हें दिल्ली विधानसभा के पैनल के द्वारा नोटिस दिए जाने को चुनौती दी थी। यह पैनल दिल्ली दंगों की जांच कर रहा है।
अजीत मोहन ने सुनवाई के दौरान अपनी दलील में कहा कि पैनल उन्हें उसके सामने पेश होने के लिए मज़बूर नहीं कर सकता। उन्होंने इस बात को भी कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में व्यवस्था बनाने का जिम्मा केंद्र सरकार के पास है।
अदालत ने अपने फ़ैसले में कुछ अहम बातें कहीं। जैसे- दिल्ली विधानसभा का पैनल अभियोजन एजेंसी की भूमिका नहीं निभा सकता है और वह चार्जशीट दाख़िल करने का निर्देश नहीं दे सकता है।
पैनल का कहना है कि दिल्ली दंगों के दौरान कुछ लोगों ने फ़ेसबुक पर आपत्तिजनक, भड़काऊ और नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट डालीं, जिससे दिल्ली में दंगा भड़का था लेकिन फ़ेसबुक ने उन्हें नहीं हटाया।
पिछले साल जब इस पैनल ने फ़ेसबुक इंडिया के शीर्ष अफ़सरों को नोटिस भेज कर बुलाया था तो उन्होंने आने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह मामला केंद्र के तहत आता है और वह संसद की एक समिति के सामने पहले ही पेश हो चुके हैं।
अदालत ने कहा कि पैनल की ओर से फ़ेसबुक को सह अभियुक्त बनाने वाला दिया गया बयान इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के बयान जांच की निष्पक्षता को बनाए रखने में शायद ही मदद कर सकें।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया कि अजीत मोहन एक संसदीय पैनल के सामने भी पेश हो चुके हैं। जबकि केंद्र सरकार ने अजीत मोहन की बातों का समर्थन किया और कहा कि राज्य की विधानसभा के पास ऐसी कोई ताक़त नहीं है कि वह नोटिस जारी कर सके और सूचना प्रौद्योगिकी और बिचौलियों से संबंधित कानून संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
फ़ैसले में अदालत ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स की पहुंच और लोगों को प्रभावित करने की इनकी क्षमता का भी जिक्र किया है।