सीएम योगी को लिखा पत्र।
गह मंत्री राजनाथ सिंह को लिखा पत्र।
कोई भी पुलिस अधिकारी अपनी मर्ज़ी से फ़ोन टैपिंग नहीं कर सकता। यहाँ तक कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भी यह आदेश नहीं दे सकते। संविधान की संघ सूची में एंट्री 31 और गवर्नमेंट अॉफ़ इंडिया एक्ट 1935 की फ़ेडरल लिस्ट की एंट्री 7 में फ़ोन टैपिंग का प्रावधान है। केंद्र या राज्य सरकार किसी मामले की जाँच के दौरान संदेह होने पर फ़ोन टैप कराने का आदेश दे सकती है। यह अधिकार उसे इंडियन टेलीग्राफिक एक्ट 1885 की धारा 5 (2) में प्राप्त है। लेकिन ऐसा वे अपनी मनमर्ज़ी से नहीं कर सकती। इसके लिए उसे गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी। फ़ोन टैप करने का कारण लिखित में बताना होगा। किसी राज्य में फ़ोन टैपिंग के लिए पुलिस प्रशासन को राज्य के गृह सचिव से अनुमति लेनी होगी।
ज़ाहिर है इस मामले में यूपी पुलिस को यह बताना होगा कि ऋचा और दूसरे लोगों के फ़ोन टैप करने की अनुमति क्या राज्य के गृह सचिव से ली गई थी अगर अनुमति ली गई थी तो इस संबंध में कब एप्लिकेशन लगाई गई और किस तारीख़ को गृह सचिव महोदय ने अनुमति दी साथ ही फ़ोन टैपिंग के लिए क्या कारण दिए गए और अगर ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई तो क्या यह कानून का उल्लंघन नहीं है और उल्लंघन करने के एवज़ में क्या पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी
मौलिक अधिकार का है हनन
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि अगर ऋचा के आरोप सही हैं तो यह और भी गंभीर मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फ़ैसले में निजता को संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि फ़ोन टैपिंग किसी भी व्यक्ति की निजता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। निजता का अधिकार संविधान की धारा 21 के अंतर्गत आता है। साथ ही टेलीफ़ोन पर किसी से बात करना संविधान की धारा 19(2) के तहत वाणी की स्वतंत्रता के अंतर्गत भी आता है। ऐसे में बिना क़ानूनी आदेश के फ़ोन टैप करना ग़ैरक़ानूनी तो है ही, संविधान के मौलिक अधिकारों का भी हनन है। लिहाज़ा ऋचा के आरोपों को यूं हवा में ख़ारिज नहीं किया जा सकता है।इस मामले में जब इलाहाबाद के एसएसपी नितिन तिवारी से पूछा गया तो उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनके पास इस मामले में शिकायत आएगी तो वे इसकी जाँच कराएँगे। कुल 17 छात्रों को गिरफ़्तार किया गया है जिनमें से 3 लड़कियाँ भी हैं।