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इमरान पर फायरिंग: पाकिस्तान में राजनीति करना बहादुरी से कम नहीं!

इमरान पर फायरिंग: पाकिस्तान में राजनीति करना बहादुरी से कम नहीं!

पाकिस्तान में राजनीति करना क्या आग से खेलने के बराबर है? इमरान खान को आज एक रैली में गोली मार दी गई। कई नेता राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं और कई ज़िंदगी भी हार भी गए हैं। जानिए, ऐसी बड़ी हिंसाओं को।

इमरान ख़ान की शूटिंग देखकर क्या यह नहीं लगता है कि पाकिस्तान में राजनीति करने के लिए बहादुरी ज़रूरी है? यदि आपको लगता है कि ऐसे एक मामले से ऐसा आकलन करना ठीक नहीं है तो आपको बता दें कि पाकिस्तान में यह कोई पहला ऐसा मामला नहीं है। पाकिस्तान आज़ादी के अपने 75 साल के इतिहास में ऐसी हिंसा का लगातार गवाह रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या को भला कौन भूल सकता है!

बेनजीर भुट्टो का मामला तो ऐसा है जिसे पूरी दुनिया जानती है, लेकिन पाकिस्तान में ऐसे कई बड़े राजनेता राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं। कई तो हिंसा में ज़िंदगी की जंग हार गए और कई किस्मत से बचे और उन्हें उन घावों को सहना पड़ा। ऐसी हिंसा के शिकार पहले कौन-कौन हुए हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि आज इमरान ख़ान के साथ क्या हुआ।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर गुरुवार को तब किसी ने फायरिंग कर दी जब वह एक रैली में शामिल हुए थे। फायरिंग में इमरान खान और उनके कुछ क़रीबी घायल हुए हैं। फायरिंग में एक शख्स की मौत भी हो गई है। फायरिंग की यह घटना वजीराबाद में अल्लाह वाला चौक पर हुई।

रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि इमरान के पाँव में गोली लगी है और उन्हें लाहौर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत खतरे से बाहर है। घायल होने वालों में फैसल जावेद, अहमद चट्ठा व अन्य लोग शामिल हैं। इमरान खान के करीबी और पूर्व मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि एके-47 से फायरिंग की गई है। पाकिस्तान के अख़बार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार शूटर कैमरे पर कहते सुना गया कि 'इमरान खान को मारने आया था क्योंकि वह लोगों को गुमराह कर रहा था।'

पाकिस्तान में ये तो सबसे ताज़ा राजनीतिक हिंसा है, लेकिन इसकी शुरुआत तो 1951 से ही हो गई थी। 16 अक्टूबर, 1951 को मुसलिम सिटी लीग की एक सार्वजनिक बैठक के दौरान रावलपिंडी के कंपनी बाग में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली ख़ान की हत्या कर दी गई थी। वह पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी सहयोगी थे। उनके शासन के दौरान ही धार्मिक दलों ने पाकिस्तान में पैर जमाना शुरू कर दिया था।

धार्मिक दलों के मंसूबों को विफल करने के लिए लियाकत अली खान ने संविधान सभा में प्रस्ताव पेश किया था। डॉन ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि जाहिर तौर पर इसका उद्देश्य धार्मिक समूहों के प्रभाव को रोकना था, लेकिन खान के विरोधियों का कहना था कि प्रस्ताव ने एक बाधा खड़ी करने के बजाय, धार्मिक दलों को अपनी विचारधाराओं को पाकिस्तान के बाकी हिस्सों पर थोपने के लिए एक संवैधानिक आधार दे दिया।

लियाकत अली खान की हत्या के बाद कंपनी बाग का नाम बदलकर लियाकत गार्डन कर दिया गया। इसके ठीक 55 साल बाद इसी लियाकत गार्डन में एक और प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई थी।

यह घटना 27 दिसंबर 2007 को हुई। लियाकत बाग में एक राजनीतिक रैली के बाद भुट्टो पर गोलियाँ चलाई गईं और शूटिंग के तुरंत बाद एक आत्मघाती बम विस्फोट किया गया। इसमें उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। इस हत्या से कुछ हफ्ते पहले उनकी हत्या के प्रयास में 130 से अधिक लोग मारे गए थे।

भुट्टो के परिवार में से केवल उनकी मां ही हिंसक मौत से बची हैं। उनके पिता और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली को जनरल जिया ने फांसी दी थी। उनके एक भाई शाह नवाज़ को 1985 में फ्रांस में रहस्यमय परिस्थितियों में जहर दे दिया गया था। उनके दूसरे भाई मुर्तजा को कराची की एक गली में एक अज्ञात हत्यारे ने गोली मार दी थी।

पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भी हत्या के कई प्रयास किए गए, लेकिन हर बार वे बच गए। ख़ासकर 2003 और 2007 में उनकी हत्या की गई थी। माना जाता है कि इसमें सेना के बजाय चरमपंथी शामिल थे। 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी की हत्या का प्रयास किया गया था।

ब्रिटिश अख़बार द गार्डियन ने पाकिस्तानी दैनिक समाचार पत्र द न्यूज़ के हवाले से लिखा है कि द न्यूज़ ने बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद लिखा था, 'तथ्य यह है कि पाकिस्तान के इतिहास में लगभग सभी पिछली राजनीतिक हत्याएँ और असामान्य मौतें- जिनमें लियाकत अली खान, हयात अहमद शेरपाओ, जनरल जिया, मुर्तजा भुट्टो और उमर असगर खान शामिल हैं- रहस्य में डूबे हुए हैं।'

लियाकत अली ख़ान से लेकर बेनजीर भुट्टो तक पाकिस्तान में अनसुलझी हत्याओं का इतिहास रहा है।

पाकिस्तान के अंग्रेजी अख़बार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, लियाकत अली खान के मामले में उनकी हत्या और महत्वपूर्ण दस्तावेजी सबूतों की जाँच करने वाले अधिकारी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी। यह एक ऐसा सवाल है जो दशकों बाद भी अनुत्तरित है और सिर्फ़ अटकलें लगाई जाती हैं। 

लियाकत अली की हत्या के बाद पुलिस ने हत्यारे को तुरत गोली मार दी थी। इस कार्रवाई पर सवाल उठे थे कि हत्यारे को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया। उसकी मौत ने इस हाई-प्रोफाइल हत्याकांड के रहस्य को और गहरा कर दिया। गोली मारने के तुरत बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने घोषणा की थी कि हत्यारा अकबर एक अफ़ग़ान नागरिक था।

इसी तरह का मामला बेनजीर भुट्टो के मामले में आया था। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार जब 2007 में बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की गई तो रावलपिंडी के अग्निशमन विभाग ने जाँचकर्ताओं को महत्वपूर्ण सबूतों से वंचित करते हुए जल्दबाजी में अपराध स्थल को धो दिया था। इसने देश के अनसुलझे हत्या के मामलों के इतिहास पर एक और सवालिया निशान लगा दिया था।

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