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'सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बिना नहीं दिया जाए मेडिकल में सवर्ण आरक्षण'

'सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बिना नहीं दिया जाए मेडिकल में सवर्ण आरक्षण'

केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को एलान किया था कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के छात्रों को 10% आरक्षण मिलेगा। 

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि बिना सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के केंद्र सरकार 10 फ़ीसदी सवर्ण आरक्षण नहीं दे सकती है। अदालत ने यह बात ऑल इंडिया कोटा मेडिकल सीटों में आरक्षण को लेकर कही। मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और जस्टिस पी.डी. ऑदिकेसावलु ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से 29 जुलाई को जारी किया गया नोटिफ़िकेशन केवल एससी 15%, एसटी 7.5% और ओबीसी के लिए 27% मान्य था।  

केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को एलान किया था कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के छात्रों को 10% आरक्षण मिलेगा। इन वर्गों को यह आरक्षण ऑल इंडिया कोटा स्कीम के तहत स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यकमों में दिया जाएगा। 

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अलग से दिए गए सवर्ण आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस बात पर रोक लगाई हुई है कि आरक्षण किसी भी सूरत में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं हो सकता, इसलिए केंद्र सरकार को मेडिकल सीटों के ऑल इंडिया कोटा में 10 फ़ीसदी आरक्षण को लागू करने से पहले शीर्ष अदालत की अनुमति ले लेनी चाहिए। 

इस मामले में तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने याचिका दायर की थी। डीएमके ने कहा था कि केंद्र सरकार इस साल मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में आरक्षण को लागू नहीं कर सकी है। मांग की गई थी कि अदालत इस बात का निर्देश दे कि केंद्र सरकार ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर ओबीसी समुदाय को 50 फ़ीसदी आरक्षण दे। 

50 फ़ीसदी की तय सीमा को पार करने के लिए मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में एक रास्ता निकाला था। सरकार ने संविधान के 124वें संशोधन विधेयक के ज़रिये आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए दस फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू कराई थी। 

कई राज्यों में कई जातियां आरक्षण की मांग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी तक आरक्षण की सीमा इसमें आड़े आ जाती है, क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण क़रीब 50 फ़ीसदी हो जाता है। यही कारण है कि कभी गुजरात तो कभी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार करना चाहते हैं। 

कर्नाटक 70, आंध्र प्रदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियां आरक्षण की ज़ोरदार मांग करती रही हैं और यहां हिंसक प्रदर्शन तक हो चुके हैं।

इस साल मार्च में मराठा आरक्षण के मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर इस सवाल का जवाब मांगा था कि क्या 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण दिया जा सकता है। कोर्ट ने इसी आधार पर मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था। 

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