सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ईवीएम वीवीपैट केस में फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 24 अप्रैल को कहा कि वह चुनावों के लिए कंट्रोल अथॉरिटी नहीं है और वह भारत के चुनाव आयोग के कामकाज को निर्देशित नहीं कर सकता है। अदालत की यह टिप्पणी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर डाले गए वोटों का वीवीपीएटी के जरिए कागजी पर्चियों के साथ गहन सत्यापन की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आई।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि वह महज संदेह के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकती। याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण द्वारा उठाई गई चिंताओं का जवाब देते हुए, अदालत ने कहा, "यदि आप किसी विचार या प्रक्रिया के बारे में पहले से ही अपनी राय बना लेते हैं, तो हम आपकी मदद नहीं कर सकते... हम यहां आपकी विचार-प्रक्रिया को बदलने के लिए नहीं हैं।"
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव के दौरान ईवीएम के माध्यम से डाले गए वोटों के साथ वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों का मिलान करने का निर्देश देने की मांग की गई है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने बुधवार सुबह भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी को कुछ सवालों के जवाब देने के लिए दोपहर 2 बजे अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा था। अदालत के सवाल थे-
- 1. क्या कंट्रोलिंग यूनिट या वीवीपैट में माइक्रोकंट्रोलर लगा होता है?
- 2. क्या माइक्रोकंट्रोलर एक बार प्रोग्राम करने योग्य है?
- 3. चुनाव चिह्न लोडिंग यूनिट चुनाव आयोग के पास कितने उपलब्ध हैं?
- 4. चुनाव याचिका दायर करने की सीमा अवधि आपके अनुसार 30 दिन है और इस प्रकार स्टोरेज और रिकॉर्ड 45 दिनों तक बनाए रखा जाता है। लेकिन लिमिटेशन डे 45 दिन है, आपको इसे सही करना होगा। यानी दोनों को क्या 45 दिन नहीं करना चाहिए।
पिछली सुनवाई में भी, सुप्रीम कोर्ट बेंच ने ईवीएम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए चुनाव आयोग के अधिकारी से व्यापक बातचीत की थी। चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने अदालत को बताया था कि ईवीएम स्टैंडअलोन मशीनें हैं और उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, लेकिन मानवीय गलती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
इस बात पर जोर देते हुए कि चुनावी प्रक्रिया में पवित्रता होनी चाहिए, जस्टिस दत्ता ने चुनाव आयोग के वकील से कहा, "आपको अदालत में और अदालत के बाहर दोनों जगह आशंकाओं को दूर करना होगा। किसी को भी यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि जो कुछ होना चाहिए वह नहीं किया जा रहा है।" यानी ईवीएम और वीवीपैट ठीक से काम कर रहे हैं।
हालांकि चुनाव आयोग की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि हर चीज पर बहुत ज्यादा शक करना एक समस्या है। बेंच ने वकील प्रशांत भूषण से कहा, "हर चीज पर संदेह नहीं किया जा सकता। आप हर चीज की आलोचना नहीं कर सकते। अगर उन्होंने (ईसीआई ने) कुछ अच्छा किया है, तो आपको इसकी सराहना करनी होगी। आपको हर चीज की आलोचना नहीं करनी चाहिए।"
16 अप्रैल को सुनवाई में, अदालत ने मैन्युअल गिनती प्रक्रिया के बारे में आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक "बहुत बड़ा काम" है और "सिस्टम को ख़राब करने" का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। याचिकर्ताओं के वकील ने कहा था कि पूरी दुनिया में अब बैलेट पेपर से चुनाव हो रहे हैं। सिर्फ भारत में ईवीएम से चुनाव हो रहे हैं, जिस पर जनता को तमाम शक है। देश में कई स्थानों पर ईवीएम हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी हुए लेकिन मोदी सरकार ने इसके जवाब में कुछ नहीं कहा।
इस संबंध में याचिकाएं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल द्वारा दायर की गई हैं। अग्रवाल ने सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती की मांग की है। एडीआर की याचिका में अदालत से चुनाव आयोग और केंद्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि मतदाता वीवीपैट के माध्यम से यह सत्यापित कर सकें कि उनका वोट "रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है।" लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक ईवीएम के बचाव में तमाम तरह की ऐसी दलीलें दी हैं जो लोगों के गले नहीं उतर रहीं। साथ ही चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया की वीडियो साइट यूट्यब को ऐसा निर्देश चलाने को कहा कि ईवीएम पूरी तरह से दोष रहित सिस्टम है। इतना ही नहीं यूट्यूब ने पता नहीं किसके दबाव पर ईवीएम कंटेंट बनाने वाले यूट्यबरों पर बेवजह का शिकंजा कसा। कुछ का मोनाटाइजेशन बंद कर दिया गया, कुछ वीडियो हटाने पर मजबूर किया गया।