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सरकार जाने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने क्या हैं बड़ी चुनौतियां?

सरकार जाने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने क्या हैं बड़ी चुनौतियां?

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को शाखा से लेकर जिलों तक एक बार फिर से पार्टी को खड़ा करना होगा। क्या वह ऐसा कर पाएंगे। 

महाराष्ट्र की सत्ता हाथ से जाने के बाद शिवसेना के सामने चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके सिपहसालारों को आने वाले दिनों में सड़क से लेकर अदालत और विधानसभा तक कमर कसकर लड़ाई लड़नी होगी।

इस खबर में हम बात करेंगे कि शिवसेना को आने वाले दिनों में कौन सी बड़ी चुनौतियों का सामना करना है।

सबसे पहली चुनौती महाराष्ट्र विधानसभा में विश्वास मत को लेकर सामने आ चुकी है। एकनाथ शिंदे सरकार को विश्वास मत हासिल करना है और इस दौरान उद्धव ठाकरे के समर्थक शिवसेना विधायकों का रुख क्या होगा, इस बारे में शिवसेना को फैसला करना ही होगा। 

शिवसेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे के समर्थक विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने से रोकने की याचिका लगाई गई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस पर सुनवाई 11 जुलाई को होगी जबकि एकनाथ शिंदे सरकार को सोमवार को बहुमत साबित करना है।

शिवसेना पर कब्जे की लड़ाई

एक और बड़ी चुनौती शिवसेना पर कब्जे की है। एकनाथ शिंदे लगातार कहते रहे हैं कि वह और सभी विधायक शिवसेना में ही हैं और बालासाहेब ठाकरे के सच्चे शिवसैनिक हैं। 55 विधायकों वाली शिवसेना में 39 विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं। क्योंकि शिवसेना प्रमुख के पद पर उद्धव ठाकरे हैं, ऐसे में शिवसेना में किस का आदेश चलेगा और पार्टी के अंदर हुई इस बड़ी बगावत के बाद पार्टी का कैडर, पार्टी के विधायक-सांसद किसे अपना नेता मानेंगे, यह एक बड़ा सवाल है।

एकनाथ शिंदे ठाणे और कल्याण के इलाके में अच्छा-खासा असर रखते हैं और बड़ी संख्या में शिवसेना के विधायक उनके साथ हैं। ऐसे में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को इन विधायकों के इलाकों में फिर से पार्टी कैडर को खड़ा करना होगा।

 - Satya Hindi

शिंदे को माना नेता

यह अहम बात है कि बगावत करने वाले विधायक एकनाथ शिंदे को अपना नेता स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में शिवसेना पर कब्जे को लेकर जो जंग है वह अदालत में भी पहुंच सकती है। इसलिए आने वाले दिन उद्धव ठाकरे और उनकी टीम के लिए बेहद चुनौती भरे रहेंगे।

बीएमसी के चुनाव

एक बड़ी चुनौती बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव हैं। शिवसेना बीएमसी में पिछले 25 सालों से राज कर रही है लेकिन इसके पीछे वजह बीजेपी का उसके साथ समर्थन होना है। 

महा विकास आघाडी सरकार के पतन के बाद क्या शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर बीएमसी का चुनाव लड़ेगी या अकेले यह भी एक अहम सवाल है।

बीएमसी में शिवसेना और बीजेपी की ताकत लगभग बराबर है और 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना को 85 जबकि बीजेपी को 82 सीटों पर जीत मिली थी। बीएमसी में पार्षदों की 236 सीटें हैं।

बीजेपी की नजर भी बीएमसी के चुनाव पर है और वह चूंकि इस बार शिवसेना से अलग होकर और शिंदे समर्थक विधायकों के समर्थन से लड़ेगी, इसलिए भी शिवसेना के लिए यहां चुनौती ज्यादा होगी। बीएमसी के चुनाव सितंबर और अक्टूबर में होने हैं। इसलिए दो-ढाई महीने का वक्त ही इन चुनावों में बचा है।

गठबंधन का क्या होगा?

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन को कायम रख पाना आसान नहीं होगा क्योंकि बगावत करने वाले विधायकों ने भी कहा है कि वे किसी भी सूरत में कांग्रेस और एनसीपी के साथ नहीं रहना चाहते। 

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को शाखा से लेकर जिलों तक एक बार फिर से पार्टी को खड़ा करना होगा। ऐसे में उनके सामने चुनौतियां ज्यादा हैं और देखना होगा कि शिंदे और बागी विधायकों की बगावत से मिले इस जबरदस्त झटके से शिवसेना कैसे उबरेगी?

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