ठोस सबूत जैसी कोई चीज नहीं होती। पहले मैं समझता था कि यह दुर्लभ वस्तु भारत- पाकिस्तान-बांग्लादेश आदि पिछड़े देशों में नहीं पाई जाती मगर अभी पता चला है कि यह कनाडा जैसे विकसित देश में भी नहीं होती। अमेरिका तो और भी गया-बीता है। उसमें ठोस सबूत जैसी चीज होकर भी नहीं होती। डोनाल्ड ट्रम्प के विरुद्ध कितने ठोस सबूत सामने आए मगर बंदे का बाल भी बाँका नहीं हुआ। ठाठ से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहा है और क्या पता जीत भी जाए!
ठोस सबूत अगर वाक़ई ठोस हो तो उसे कहां से कितना तापमान मिल रहा है या नहीं मिल रहा है, इस पर उसका तरल होना या गैस में बदलना या न बदलना निर्भर करता है। एक साल पहले आंध्र के वर्तमान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के ख़िलाफ़ ईडी के पास भ्रष्टाचार के एकदम ठोस सबूत थे। इतने अधिक ठोस थे कि वह जेल में महीनों रहे। अब उसी ईडी के पास उन्हीं नायडू के विरुद्ध ठोस क्या तरल या गैस रूप में भी सबूत नहीं हैं। इसके लिए नायडू को इतना ही करना पड़ा कि वे उधर से इधर हो गए।
उनका इधर होना नायडू साहब की भी ज़रूरत थी और मोदी जी की भी। नायडू साहब चुनाव हार जाते तो जो ठोस सबूत थे, वे और भी ठोस हो जाते। इतने ठोस कि किसी भी तापमान पर तरल अथवा गैस में बदल नहीं पाते!
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो महीनों से कह रहे थे कि हमारे पास इस बात के ठोस सबूत हैं कि खालिस्तानी अतिवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भारत सरकार के एजेंटों ने की है।अब कह रहे हैं, हैं तो पर ठोस नहीं, तरल हैं। बताया जाता है कि जब ट्रूडो साहब को लगा कि मामले को ज़्यादा खींचने से भारत के साथ संबंधों में स्थाई बिगाड़ आ सकता है तो ठोस सबूत अठोस हो गए और आश्चर्य नहीं कि किसी दिन हवा में गायब हो जाएं!
विशेष रूप से पिछले दस साल से हमारे यहां ठोस सबूत अक्सर तरल और गैसीय सबूतों में तेजी से बदल रहे हैं। इसकी कुछ घोषित शर्तें हैं। अगर आप विपक्ष के एमपी- एमएलए या मंत्री जैसे कुछ हैं और मोदी शरणम् गच्छामि हो जाते हैं तो सबूत, सबूत नहीं रह जाएंगे। हवा में उड़ जाएंगे और यह खुली नीति है, एकदम ओपन पॉलिसी है। इसमें कोई छुपाव -दुराव नहीं है।
और अगर आप पूंजीपति हैं और चढ़ावा नियमित रूप से चढ़ा रहे हैं तो आप ये लांड्रिंग करें या वो लांड्रिंग कोई फर्क नहीं पड़ता। ईडी आपके घर- दफ्तर कभी झाँकेगी भी नहीं लेकिन सारा माल खुद खाएंगे तो ईडी को आना ही पड़ेगा।
वैसे सबूतों के रूप परिवर्तन का काम केवल ईडी नहीं करती और भी तमाम पारंपरिक उपाय निचले स्तर पर भी निचले लोगों की सुविधा के लिए उपलब्ध हैं। यह काम पुलिस का दरोगा भी करता आया है, पुलिस इंस्पेक्टर भी और एस पी और कलेक्टर भी। विधायक,सांसद, मंत्री भी अक्सर इस तरह की जनसेवा को अंजाम देते रहते हैं।
इधर आर एस एस, वीएचपी का साधारण कार्यकर्ता भी ठोस आरोप को तरल में और तरल को गैस में बदलवाने में गोपनीय नहीं, प्रकट भूमिका निभाते हैं और पुलिस उनकी इस भूमिका को हृदय से स्वीकार करती है।
सबकुछ इस पर निर्भर है कि ठोस को तरल या गैस में बदलने के लिए कहां से कितना तापमान प्राप्त हो रहा है। तापमान बेहद उच्चस्तरीय हो तो ठोस को तरल और तरल को गैस का रूप लेने में देर नहीं लगती। चाहे मामला हत्या का हो, दंगे का हो, बलात्कार का हो या नरसंहार का हो। बहुत से मामलों में तो सबूतों को ठोस से द्रव में और द्रव से गैस में बदलने की लंबी और कष्टदायक प्रक्रिया से गुजरना भी नहीं पड़ता। विज्ञान बताता है कि कुछ पदार्थ ठोस से सीधे गैस में बदलना जानते हैं तो ईडी भी इस वैज्ञानिक सत्य का उपयोग करती है।वह ठोस सबूतों को गैस का रूप देकर हवा में विलीन करवा देती है! ईडी की विशेषता है कि जहां सबूत नहीं होते, वहां भी वह ठोस सबूत पेश करने की कला में दक्ष है। बस ऊपर से सिग्नल मिलना चाहिए। उसे भी अपनी प्रतिष्ठा की उतनी ही चिंता है, जितनी प्रधानमंत्री को अपने पद की इज्जत की है! उसे अदालत आदि की लताड़ से कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके लिए उसका कर्म ही पूजा है। वह परिणाम की चिंता नहीं करती।