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कारवाँ रिपोर्ट: क्या पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन बन गए? 

कारवाँ रिपोर्ट: क्या पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन बन गए? 

डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया पर लाई गई सरकारी गाइडलाइंस से पहले मंत्रियों के समूह की बैठक क्यों हुई और उसमें क्या-क्या हुआ था? क्या मीडिया को नियंत्रित करने के लिए यह सब किया गया? 

क्या निष्पक्ष पत्रकारिता करना गुनाह है? क्या आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करने वालों के लिए अब कोई जगह नहीं है? और यदि ऐसा है तो यह सब कैसे हुआ? क्या इसलिए कि पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन हो गए हैं? ये सवाल इसलिए कि अब मंत्रियों के एक समूह की रिपोर्ट ही कुछ ऐसी आई है। डिजिटल मीडिया गाइडलाइंस आने से पहले मंत्रियों के समूह ने इन मुद्दों पर चर्चा की थी। इस रिपोर्ट से कई सवाल उठते हैं। सवाल इसलिए भी कि डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के लिए लायी गई सरकार की गाइडलाइंस की मीडिया को नियंत्रित करने वाला कहकर आलोचना की जा रही है।

मंत्रियों के समूह की यह रिपोर्ट कथित तौर पर मौजूदा सरकार और मीडिया के संबंधों को उजागर करती है। ‘कारवाँ’ मैगज़ीन ने इस पर एक खोजपरक रिपोर्ट छापी है कि कैसे सरकार के पक्ष में या सकारात्मक ख़बरें प्रोत्साहित करने के लिए और छवि ख़राब करने वाली ख़बरों को रोकने के लिए रणनीति तैयार की गई। रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल मीडिया पर सरकार की ताज़ा गाइडलाइंस आने से काफ़ी पहले ही मंत्रियों का समूह इस पर लगातार काम कर रहा था और इस पर रिपोर्ट तैयार की गई थी।

जिन मंत्रियों के समूह के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है उनमें पाँच कैबिनेट मंत्री थे और चार राज्य मंत्री। इस समूह का क्या उद्देश्य रहा होगा, यह केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी के शब्दों से ही पता लगाया जा सकता है। रिपोर्ट में नक़वी की बातों का ज़िक्र है जिसमें वह कहते हैं, 'हमारे पास उन लोगों को बेअसर करने की रणनीति होनी चाहिए जो बिना तथ्यों के सरकार के ख़िलाफ़ लिख रहे हैं और झूठे नैरेटिव गढ़ रहे हैं/फर्जी खबरें फैला रहे हैं।' हालाँकि इसमें इसकी परिभाषा नहीं बताई गई है कि 'झूठे नैरेटिव' या 'फर्जी ख़बरें' से क्या मतलब है। 

लेकिन जो साफ़-साफ़ दिखता है वह यह है कि सरकार की इमेज चमकानी है। जो इमेज ख़राब करना चाहते हैं उनको बेअसर करना है। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि इसमें मुख्यधारा का मीडिया निशाने पर नहीं है।

कारवाँ ने दावा किया है कि मंत्रियों के समूह की बैठकों के आधार पर तैयार की गई उस रिपोर्ट के कुछ हिस्से उसके पास हैं। इसने कहा है कि वह रिपोर्ट 2020 के मध्य में मंत्रियों के समूह की छह बैठकों के आधार पर तैयार की गई। इसके लिए ‘मीडिया क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों’, और ‘उद्योग/व्यापार मंडलों के सदस्यों’, और अन्य के साथ परामर्श लिया गया। बता दें कि मंत्रियों के समूह की रिपोर्ट पर पहली बार 8 दिसंबर 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स ने ख़बर छापी थी। मंत्रियों के समूह में कैबिनेट मंत्री नक़वी के अलावा रवि शंकर प्रसाद, स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर और एस जयशंकर शामिल थे। इनके अलावा राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी, अनुराग ठाकुर, बाबुल सुप्रियो और किरेन रिजिजू भी शामिल थे।

कारवाँ ने लिखा है कि स्मृति ईरानी ने 50 नकारात्मक और सकारात्मक इन्फ्लूएंसरों को ट्रैक करने और नकारात्मक इन्फ्लूएंसरों को सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा ट्रैकिंग किए जाने की ज़िम्मेदारी सौंपने की सिफारिश की थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे नकारात्मक इन्फ्लूएंसर ‘कुछ गलत बयान देते हैं और सरकार को बदनाम करते हैं। इन पर लगातार नज़र रखने की ज़रूरत है ताकि उचित और समय पर प्रतिक्रिया दी जा सके।’ इसके लिए सकारात्मक इन्फ्लूएंसरों या तटस्थों से जुड़ाव रखे जाने की ज़रूरत बताई गई। रिपोर्ट में कहा गया कि ‘ये न केवल सकारात्मक बातें रखेंगे बल्कि ग़लत सूचनाओं की काट भी करेंगे’।

रिपोर्ट में पहले मीडियाकर्मी रहे और अब बीजेपी से राज्यसभा के सदस्य स्वप्न दासगुप्ता का बयान दिया गया है, ‘2014 के बाद एक बदलाव हुआ। धुरंधर हाशिए पर धकेले गए। उनके बिना मोदी जीते। उन्होंने उन्हें अनदेखा करना बेहतर समझा। वह सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों से सीधे मिले। यह इको-सिस्टम है जो प्रासंगिक बन रहा है।’ रिपोर्ट के अनुसार दासगुप्ता ने प्रस्ताव दिया कि इस ताक़त का उपयोग पर्दे के पीछे किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार, एक मीडियाकर्मी और प्रसार भारती के प्रमुख सूर्य प्रकाश ने दासगुप्ता की बात से सहमत होते हुए कहा, ‘छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी पहले हाशिए पर थे। समस्या उनसे ही शुरू हो रही है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार के पास उन्हें नियंत्रित करने की स्थिति का उपयोग करने की बहुत बड़ी ताक़त है।’ उन्होंने यह भी कहा कि 'इस पर विचार करना चाहिए कि पिछले छह वर्षों में हमने नए सहयोगी के रूप में मीडिया मित्रों की सूची में वृद्धि नहीं की है।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले एनडीटीवी और तहलका के साथ रहे और अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के क़रीबी नितिन गोखले ने सुझाव दिया कि ऐसी कोई भी प्रक्रिया पत्रकारों को कलर-कोडिंग यानी रंगों के आधार पर कोडिंग कर शुरू की जानी चाहिए- ‘ग्रीन - न इधर के न उधर के वाले; काले - ख़िलाफ़; और सफेद - जो समर्थन करते हैं। हमें अनुकूल पत्रकारों का समर्थन और प्रचार करना चाहिए।’

रिपोर्ट में जो चिंता जताई गई है वह डिजिटल मीडिया के बारे में पूरी तरह सामने आती है।

रिलायंस द्वारा वित्त पोषित थिंक-टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक प्रतिष्ठित फेलो कंचन गुप्ता ने सरकार को एक और सुझाव दिया। रिपोर्ट के अनुसार, ‘गूगल वायर, स्क्रॉल, हिंदू इत्यादि की कंटेंट को बढ़ावा देता है, जो ऑनलाइन समाचार मंच हैं। इससे कैसे निपटना चाहिए एक अलग चर्चा की ज़रूरत है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ‘ऑनलाइन मीडिया बहुत अधिक विवाद पैदा करता है’ और कहा, ‘हमें पता होना चाहिए कि ऑनलाइन मीडिया को कैसे प्रभावित किया जाए या वैश्विक सामग्री के साथ हमारा अपना ऑनलाइन पोर्टल होना चाहिए।’

रिपोर्ट के अनुसार, ‘क़ानून मंत्री ने सिफारिश की कि कुछ प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, कुलपतियों, सेवानिवृत्त आईएफ़एस अधिकारियों आदि की पहचान की जानी चाहिए जो हमारी उपलब्धियों को लिख सकते हैं और व्यू प्वाइंट को प्रोजेक्ट कर सकते हैं।’ 

इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 26 जून 2020 के बाद नकवी और राज्य मंत्री किरेन रिजिजू के साथ मुलाक़ात के दौरान ‘मीडिया क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों’ से परामर्श किया गया। रिपोर्ट में ‘आलोक मेहता, जयवीर घोषाल, शिशिर गुप्ता, प्रफुल्ल केतकर, महुआ चटर्जी, निस्तुला हैबर, अमिताभ सिन्हा, आशुतोष, राम नारायण, रवीश तिवारी, हिमांशु मिश्रा और रवींद्र’ का नाम लिया गया है। हालाँकि उनके संस्थानों का नाम नहीं दिया गया है। जब कारवाँ ने उनसे संपर्क किया तो कई पत्रकारों ने कहा कि मंत्रियों के समूह के साथ इस तरह की बैठक की योजना नहीं बनाई गई थी। बल्कि, उन्होंने कहा, यह उस समय के वरिष्ठ मंत्रियों के एक समूह के साथ एक अनौपचारिक बातचीत होनी थी, जिसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर शामिल थे, उस समय जब चीन के साथ तनाव प्रमुख मुद्दा था।

रिपोर्ट में सामूहिक रूप से व्यक्तियों का नाम लिए बिना पत्रकारों की टिप्पणियों का ज़िक्र किया गया है। इसमें से एक यह भी है कि ‘लगभग 75% मीडियाकर्मी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हैं और पार्टी के साथ वैचारिक रूप से जुड़े हुए हैं।’

रिपोर्ट में ‘ऑप इंडिया’ की संपादक नूपुर शर्मा का ज़िक्र भी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नूपुर शर्मा ने सुझाव दिया, ‘ओप-इंडिया जैसे ऑनलाइन पोर्टल को बढ़ावा दिया जा सकता है।’ पहले मेल टुडे के साथ काम कर चुके अभिजीत मजूमदार ने भी नूपुर शर्मा की हाँ में हाँ मिलायी और ऑल्ट न्यूज़ को प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाली वेबसाइट बताया। बता दें कि ओपइंडिया एक दक्षिणपंथी वेबसाइट है जो कथित तौर पर फर्जी समाचार और सरकारी प्रचार को प्रकाशित करने के लिए बदनाम है। ‘ऑल्ट न्यूज़’ एक तथ्य जाँचने वाली वेबसाइट है जिसने ओपइंडिया द्वारा फैलाई गई ग़लत सूचनाओं को बार-बार उजागर किया है।

मंत्रियों के समूह ने इस पर विचार किया और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऑनलाइन पोर्टलों को बढ़ावा दें- ऑनलाइन पोर्टल (जैसे ओप इंडिया) को बढ़ावा देना और उसका समर्थन करना ज़रूरी है क्योंकि मौजूदा ऑनलाइन पोर्टलों में से अधिकांश सरकार के आलोचक हैं।'

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