दिल्ली दंगा: गर्भवती सफूरा ज़रगर को आखिरकार दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत मिली

04:29 pm Jun 23, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

दिल्ली दंगे में आरोपी बनाई गईं जामिया मिल्लिया इसलामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर को दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को जमानत दे दी है। मानवीय आधार पर रखी गई दलीलों का दिल्ली पुलिस ने विरोध नहीं किया। हालाँकि एक दिन पहले ही सुनवाई के दौरान पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा था कि सफूरा ज़रगर गर्भवती हैं तो इससे कथित तौर पर उनके अपराध की गंभीरता कम नहीं हो जाती है। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने क़रीब एक पखवाड़े पहले उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी। 

नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन के दौरान पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित एक मामले में ज़रगर को 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था। उन पर आतंकवाद विरोधी क़ानून, यूएपीए के तहत आरोप लगाया गया है। पहले तो सफूरा को दंगा के मामले में साज़िश रचने का आरोप लगाया गया था, लेकिन काफ़ी पहले ही जब इस मामले में उन्हें जमानत मिल गई थी तब पुलिस ने यूएपीए के तहत दोबारा गिरफ़्तार कर लिया था। इसी मामले में वह अब तक जेल में थीं। 

जमानत देने के साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने सफूरा ज़रगर को उन गतिविधियों में शामिल नहीं होने का निर्देश दिया है जो जाँच में बाधा बन सकती हैं। वह बिना अनुमति के दिल्ली भी नहीं छोड़ सकती हैं। ज़रगर को 15 दिनों में कम से कम एक बार फ़ोन पर एक जाँच अधिकारी के संपर्क में रहना होगा और 10,000 रुपये का निजी बॉन्ड भी जमा करना होगा। 

बता दें कि पुलिस ने एक दिन पहले ही सफूरा की जमानत का ज़बरदस्त विरोध किया था। एक रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में पिछले 10 साल में 39 डिलीवरी होने की बात रखते हुए सोमवार को कहा था कि जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा ज़रगर को जमानत देने के लिए गर्भावस्था कोई आधार नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए दिल्ली पुलिस ने एक दिन पहले ही कहा था कि जेल में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा दी जा रही है।

पुलिस ने कोर्ट से कहा था, 'गर्भवती कैदी के लिए कोई विशेष छूट नहीं है, जो इस तरह के जघन्य अपराध के आरोपी हैं, जिन्हें केवल गर्भावस्था के कारण ज़मानत पर रिहा किया जाए।' इसने कहा, 'इसके विपरीत, क़ानून जेल में उनकी हिरासत के दौरान पर्याप्त सुरक्षा उपायों और चिकित्सा पर ध्यान देता है। जहाँ तक सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंड का संबंध है तो जेल में अधिक देखभाल और सावधानी बरती जा रही है...।'

पुलिस ने कहा था कि पहले ऐसे कई मामले रहे हैं जिसमें गर्भवती महिलाओं को न केवल हिरासत में लिया गया है और उनकी गिरफ्तारी हुई है, बल्कि जेलों में उनकी डिलीवरी भी की गई है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार क़ानून में दिशानिर्देश दिए गए हैं।

इस मामले की सुनवाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार तक के लिए टाल दिया था। बता दें कि ज़रगर को जेल में रखे जाने के ख़िलाफ़ नागरिक समाज और सामाजिक कार्यकर्ता पुलिस की आलोचना करते रहे हैं। वे ज़रगर के गर्भवती होने के कारण पुलिस से मानवीय आधार पर भी ज़मानत दिए जाने की माँग करते रहे हैं। ऐसी ही माँग एक अमेरिकी संस्था ने भी की। 

क़रीब एक हफ़्ते पहले ही अमेरिकन बार एसोसिएशन के सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने जामिया मिलिया इसलामिया की शोध छात्रा सफ़ूरा ज़रग़र की गिरफ़्तारी और उनके जेल में पड़े रहने पर गहरी आपत्ति जताई और भारत की आलोचना की।

इस संस्था ने पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय विधि मानकों और भारत ने जिन अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर दस्तख़त किए हैं, उनका उल्लंघन माना। उसने कहा, 'मुक़दमा के पहले गिरफ़्तारी कुछ ख़ास मामलों में ही वैध हैं और ऐसा नहीं लगता है कि ज़रगर के मामले में इस तरह की कोई बात है।'

इस संस्था ने यह भी कहा कि 'इंटरनेशनल कॉनवीनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स यह साफ़ कहता है कि यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि मुक़दमा शुरू होने के पहले ही किसी को जेल में डाल दिया जाए।'