दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार पर कम से कम आठ अधिकारियों ने उत्पीड़न का आरोप लगाया है। उन्होंने फाइलों पर जबरन दस्तख़त कराने से लेकर अभद्रता करने जैसे तक आरोप लगाए हैं। कहा जा रहा है कि इनमें से अधिकतर आरोप तब लगाए गए जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रांसफर व पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया गया। लेकिन केंद्र ने अध्यादेश लाकर इसके लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बना दिया है। अब एक रिपोर्ट है कि केंद्र इस प्राधिकरण को और मज़बूत करने की तैयारी में है। यानी केजरीवाल सरकार के लिए मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ सकती हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 को शुक्रवार को जारी होने के बाद तुरंत अस्तित्व में आये राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के पास अब दिल्ली में सेवारत अखिल भारतीय सेवाओं के साथ-साथ उनसे संबंधित सतर्कता मामलों से जुड़े सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग की सिफारिश करने की शक्ति है। कहा जा रहा है कि इस प्राधिकरण को केंद्र से कुछ और 'सक्षम बनाने वाले प्रावधानों' की ज़रूरत होगी।
केंद्र की मोदी सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली राज्य के लिए सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने का अध्यादेश जारी किया है। राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव सदस्य होंगे। प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से तय किए जाएंगे। मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
अब कहा जा रहा है कि इस अध्यादेश में कुछ और प्रावधान जोड़े जाने की ज़रूरत होगी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, अध्यादेश को एक अतिरिक्त अधिसूचना, एक आदेश या एक परिपत्र द्वारा परिपूर्ण किया जाएगा। इसे गृह मंत्रालय द्वारा अगले सप्ताह की शुरुआत में जारी किए जाने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा, 'हालांकि प्राधिकरण पहले से ही घोषणा के बाद अस्तित्व में आ गया है, एमएचए अब उपराज्यपाल (एल-जी) के कार्यालय के माध्यम से अध्यादेश को किसी एक या दूसरे माध्यम से आगे बढ़ाने की संभावना है।'
उन्होंने कहा कि अध्यादेश ने प्राधिकरण के संबंध में सिर्फ एक बुनियादी ढांचा दिया है, जो कि इसका एक हिस्सा है और इसका अधिकार क्षेत्र किसके पास है; इसके कामकाज से संबंधित अन्य विवरण - जैसे कि इसकी पहली बैठक कब होगी, कितनी बार बैठक होगी आदि - इन विवरणों का ध्यान सामान्य रूप से केंद्र के प्रावधानों के अनुसार रखा जाएगा।
इस बीच एलजी हाउस के अधिकारियों ने कहा है कि एलजी सचिवालय को अखिल भारतीय सेवा के आठ अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि आप नेताओं के हाथों उन्हें घोर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि इस साल की शुरुआत में दो शिकायतें प्राप्त हुई थीं और छह शिकायतें 11 मई के बाद मिली थीं, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, भूमि और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण दे दिया था।
इस मामले में जिन अधिकारियों से शिकायतें मिली थीं उनमें मुख्य सचिव नरेश कुमार भी शामिल हैं, जिन्होंने सेवा मंत्री सौरभ भारद्वाज द्वारा विभाग के अधिकारियों के खिलाफ दुर्व्यवहार और डराने-धमकाने का आरोप लगाया। भारद्वाज ने भी अपनी ओर से नरेश कुमार पर जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने कहा कि वे मामले की जांच कर रहे हैं।
एल-जी हाउस के अधिकारियों ने कहा है कि आईएएस अधिकारी आशीष मोरे और किन्नी सिंह ने आरोप लगाया है कि भारद्वाज ने उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और उन्हें एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कहा कि विभाग के एक अन्य अधिकारी अमिताभ जोशी को भी डराया गया था।
शिकायतकर्ताओं की सूची में एक अन्य नाम वाईवीवीजे राजशेखर, विशेष सचिव (सतर्कता) का है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें बदनाम करने के लिए लगातार प्रयास किया गया और उनके पोर्टफोलियो को छीने जाने का आरोप लगाया है ताकि दिल्ली सरकार से संबंधित कथित घोटालों की जाँच न हो सके।
इस मामले में दिल्ली सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा, 'यह बिल्कुल फर्जी शिकायत है। केंद्र सरकार द्वारा न्यायपालिका पर सीधे हमले के खिलाफ जनता के हंगामे से ध्यान हटाने के लिए उपराज्यपाल गंदी राजनीति कर रहे हैं और एक अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश को पलट रहे हैं।'