एक राष्ट्र एक चुनाव की संभावनाओं को तलाशने के लिए बनी उच्च स्तरीय रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट आज गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली यह समिति ने लोकसभा, विधानसभा के चुनावों समेत कई अन्य चुनावों को एक साथ कराया जा सकता है या नहीं इस पर अपनी यह रिपोर्ट सौंपी है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को यह रिपोर्ट पूर्व राष्ट्रपति और समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने सौंपी। इस अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के पूर्व नेता रहे गुलाम नबी आज़ाद सहित सहित सहित समिति के अन्य सदस्य मौजूद थे।
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इस रिपोर्ट में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश समिति कर सकती है। इसके साथ ही ये सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश भी समिति कर सकती है।
एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दें पर जहां भाजपा और उसके सहयोगी दल समर्थन में हैं वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इसका विरोध कर रहे हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके लोगों, कानूनी जानकारों, समाज के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वालों और राजनैतिक दलों से उनकी राय ली थी।
इससे पहले अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया था कि एक राष्ट्र एक चुनाव पर बनी समिति गुरुवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप सकती है। ऐसा समझा जाता है कि इस रिपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली समिति एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए एक ठोस मॉडल की सिफारिश कर सकती है।
इंडियन एक्स्प्रेस ने सूत्रों के हवाले से पहले ही बताया था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए रोडमैप तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,000 पृष्ठों की आठ खंडों की रिपोर्ट सौंपेगी।
समिति ने एक साथ चुनाव की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए कई विकल्पों पर विचार-विमर्श किया है। इसने अविश्वास के रचनात्मक वोट के जर्मन मॉडल पर भी बहस की है, लेकिन समिति ने इसे "भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ" पाया।
समिति ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों, उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों से मुलाकात की। इसने जनवरी में जनता से टिप्पणियाँ भी आमंत्रित की थी।जनवरी में एक बयान में, समिति ने कहा कि उसे 20,972 प्रतिक्रियाएं मिलीं, जिनमें से 81 प्रतिशत एक साथ चुनाव के पक्ष में थीं।
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि यह पता चला है कि समिति ने चुनाव आयोग (ईसी) को कम से कम दो बार बैठक के लिए पत्र लिखा था, लेकिन चुनाव आयोग ने समिति से मुलाकात नहीं की, लेकिन अपनी लिखित प्रतिक्रिया भेज दी थी।
समिति ने एक साथ चुनावों के व्यापक आर्थिक प्रभाव के साथ-साथ अपराध दर और शिक्षा परिणामों पर प्रभाव की भी जांच की है।
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के एक साथ चुनाव कराने के लिए सिफारिशें करने के लिए सितंबर 2023 में इस समिति की नियुक्ति की थी।
इस समिति में पूर्व राष्ट्रपति रामनात कोविंद के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी इसमें शामिल हैं।
इस समिति में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी शामिल किया गया था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था कि यह समिति एक "दिखावा" है।
समिति को संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, आरपी अधिनियम, 1951 और उनके तहत बनाए गए नियमों में विशिष्ट संशोधनों का सुझाव देने के लिए कहा गया था। इसे यह जांचने का भी काम सौंपा गया था कि क्या संविधान में किसी भी संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
कोविन्द समिति को "त्रिशंकु सदन से उत्पन्न एक साथ चुनाव, अविश्वास प्रस्ताव को अपनाने, या दलबदल, या ऐसी किसी अन्य घटना के परिदृश्य में संभावित समाधान का विश्लेषण और सिफारिश करने" के लिए भी कहा गया था।
इस समिति से सरकार ने कहा था कि वह चुनावों के समन्वय के लिए एक रूपरेखा का सुझाव दें और विशेष रूप से, उन चरणों और समय-सीमा का सुझाव दें जिनके भीतर एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति ने एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था और एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र के तौर-तरीकों पर भी गौर किया है।