जिन राकेश अस्थाना को सेवानिवृत्ति से तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस का नया कमिश्नर नियुक्त किया गया है वही अस्थाना सेवानिवृत्ति के एक नियम की वजह से सीबीआई निदेशक नहीं बन पाए थे। दो महीने पहले ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सीबीआई निदेशक की नियुक्ति वाली समिति के सामने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला दिया था। वह फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2019 में दिया था जिसमें कहा गया था कि ऐसा कोई भी अफ़सर जिसके रिटायरमेंट में 6 महीने से कम का वक़्त बचा हो, उसे पुलिस का प्रमुख नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। इस नियम के ज़िक्र के बाद अस्थाना के साथ ही वाईसी मोदी भी सीबीआई प्रमुख पद की दौड़ से बाहर हो गए थे।
अस्थाना अपने पूरे कार्यकाल में विवादों में भी रहे हैं। उनपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे थे। वह गुजरात कैडर के अधिकारी हैं जबकि दिल्ली में आम तौर पर अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश यानी एजीएमयूटी कैडर के अधिकारी की ही नियुक्ति होती रही है। तो सवाल है कि ऐसे में उन्हें क्यों लाया गया है? कहीं इसके लिए कोई विशेष मक़सद तो नहीं है?
इन सवालों से इतर यह जान लें कि मौजूदा स्थिति क्या है। अस्थाना ने बुधवार को पदभार भी ग्रहण कर लिया। इससे पहले वह सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे थे। एक दिन पहले ही ख़बर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति यानी एसीसी ने एजीएमयूटी कैडर से बाहर गुजरात कैडर के अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी। इसके साथ ही समिति ने 31 जुलाई की उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ को एक वर्ष की अवधि के लिए आगे बढ़ा दिया है।
राकेश अस्थाना अक्सर विवादों में रहे हैं। सबसे हाल में तो वह तब चर्चा में रहे थे जब वह सीबीआई निदेशक पद की दौड़ से बाहर हो गए थे। इससे पहले वह सीबीआई में विशेष निदेशक भी रह चुके थे।
2019 में एजेंसी के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने के बाद उनके विरोधी माने जाने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था कि उन दोनों अफसरों के बीच तब जंग छिड़ गई थी। दोनों अफ़सरों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
राकेश अस्थाना को पद से हटाने का फ़ैसला इसलिए ज़्यादा चर्चा में रहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़रीबी माना जाता है। गुजरात में उन्होंने नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान वडोदरा के पुलिस आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था।
बाद में उन्हें सीबीआई में लाया गया था। वे कुछ समय तक इस जाँच एजेंसी के असली प्रमुख माने जाते थे और कहा जाता है कि तमाम बड़े और नीतिगत निर्णय लिया करते थे। बाद में तत्कालीन सीबीआई निदेशक वर्मा और तत्कालीन विशेष निदेशक राकेश अस्थाना में अनबन शुरू हो गई। उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ शिकायतें कीं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। वर्मा द्वारा 15 अक्टूबर 2018 को अस्थाना के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर भी दर्ज करवायी गयी थी।
उसमें अस्थाना पर आरोप लगा था कि मोइन क़ुरैशी के मामले में एक संदिग्ध को राहत देने के लिए उन्हें बिचौलियों के माध्यम से 2.95 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
सीबीआई निदेशक पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा ने मुख्य सतर्कता आयुक्त पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि तत्कालीन सीवीसी के. वी. चौधरी ने राकेश अस्थाना के मामले में पंच की भूमिका निभाने और सीबीआई के इस आला अफ़सर को बचाने की कोशिश की थी। इस पूरे मामले में सरकार बुरी तरह फँस गई थी।
समझा जाता है कि इस मोर्चे पर फ़जीहत होने के बाद सरकार ने अस्थाना सहित दोनों अफसरों को हटाने का फ़ैसला लिया था। हालाँकि, बाद में अस्थाना को आरोपमुक्त कर दिया गया था और फिर उन्हें अगस्त 2020 में बीएसएफ़ का प्रमुख नियुक्त किया गया था।
इससे पहले भी अस्थाना सीबीआई में काम कर चुके थे। तब उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान बिहार में चारा घोटाले की जाँच की थी। इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को दोषी ठहराया गया था।
बहरहाल, 1984-बैच के आईपीएस अधिकारी अस्थाना अब 31 जुलाई, 2022 तक दिल्ली पुलिस के आयुक्त होंगे। यह वह दिल्ली है जहाँ केजरीवाल सरकार और केंद्र के प्रतिनिधि लेफ़्टिनेंट गर्वनर के बीच अक्सर तनातनी रहती है। केजरीवाल बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह उसे काम नहीं करने देती है और दिल्ली सरकार के काम में अड़ंगे डालती रहती है। दिल्ली पुलिस के रवैये पर भी केजरीवाल सरकार आरोप लगाती रही है कि वह केंद्र के इशारे पर काम करती है।