दिल्ली में शराब के लिए क्या आपने कभी ऐसी लंबी कतारें देखी थीं जैसी कि हाल के कुछ दिनों में दिखी हैं? हो सकता है कि कोरोना लॉकडाउन के समय ऐसे हालात दिखे हों जब दुकानों पर आगे के कुछ दिनों में पाबंदी लगाने की घोषणा की गई हो। लेकिन मौजूदा समय में कुछ ऐसी स्थिति नहीं है।
दरअसल, ये लंबी कतारें इसलिए हैं कि शराब काफ़ी किफायती दामों में मिल रही है। कहीं-कहीं तो आधी क़ीमत में भी। यानी एक बोतल पर एक बोतल फ्री। दिल्ली जितनी सस्ती शराब अब गुरुग्राम और फरीदाबाद में भी नहीं मिल रही। पहले सस्ती शराब के लिए इन दोनों शहरों की ओर रुख करते थे। तो यह बदलाव कैसे हुआ? आख़िर हाल में ऐसा क्या हुआ कि हालात इतने ज़्यादा बदल गए?
सीधे-सीधे कहें तो यह सब पिछले साल नवंबर में दिल्ली में लागू हुई नई आबकारी नीति की बदौलत हुआ है। जहाँ पहले शराब की दुकानें ग्रिल में चलती थीं, वहीं नई नीति से लोगों के दुकान में घूमने और अपनी पसंद की शराब देखने के साथ-साथ शराब खरीदना आसान हो जाएगा। बिल्कुल एक मॉल की तरह।
नई नीति का मक़सद शराब की दुकानों को पॉश और स्टाइलिश शराब की दुकानों में बदलना है। इस नई नीति के तहत शराब पीने वाले सुबह 3 बजे तक होटल, क्लब और रेस्तरां, बार में इसका आनंद ले सकते हैं। कहा जा रहा है कि यह नई नीति शहर के राजस्व को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है, जिससे शराब माफियाओं पर भी लगाम लगेगी।
इसी नई आबकारी नीति के अनुसार कई शराब ब्रांडों की दरें सस्ती हो गई हैं। रिपोर्ट है कि कई शराब विक्रेता एमआरपी पर 40 प्रतिशत छूट देकर शराब बेच रहे हैं। कुछ वेंडर 1 बोतल पर एक फ्री का ऑफर भी दे रहे हैं।
साफ़ है कि नयी शराब नीति ने उन कंपनियों और दुकानदारों को ऐसी छूट दी है कि वे एमआरपी से कम दाम पर शराब बेच सकते हैं।
कंपनियाँ और दुकानें इस नियम का फायदा इस रूप में उठा रही हैं कि क़ीमतें कम होने से उनकी ज़्यादा बिक्री हो रही है और ऐसे में उनका मुनाफा पहले से ज़्यादा हो रहा है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यदि 70 रुपये प्रति बोतल मुनाफा कमाकर पहले जहाँ 100 बोतल बेच रहे थे वहीं अब वे 30 रुपये प्रति बोतल ही मुनाफा कमाकर 500 बोतल बेच रहे हैं। यही वजह है कि कंपनियों और दुकानदारों के बीच इसकी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी है।
प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण के कारण शराब की दुकानों के बाहर लोगों की लंबी कतारें लग गई हैं। लोगों को लगा कि यह ख़ास ऑफ़र कुछ समय के लिए आया है और बाद में कहीं बंद न हो जाए। यही वजह है कि लोगों ने सस्ती शराब कई-कई दिनों या महीनों के लिए खरीद कर रख ली। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के आसपास शहरों से भी लोग शराब खरीदने दिल्ली आ रहे हैं। अलीगढ़ जैसे शहरों से झुंड में दिल्ली आने वाले लोग भी कारों में शराब की पेटियाँ भर कर ले जा रहे हैं।
नई नीति के तहत दिल्ली सरकार ने शराब ब्रांडों के लिए अधिकतम मूल्य सीमा निर्धारित की है और इसका मतलब है कि शराब विक्रेता इस मूल्य से कम पर शराब बेच सकते हैं, लेकिन इससे अधिक नहीं। पुरानी आबकारी नीति के कारण पहले ऐसी प्रतिस्पर्धी दरों का प्रयोग नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब सभी कंपनियां अपने-अपने ब्रांड के दाम कम कर एक-दूसरे को टक्कर दे रही हैं।
शहर में शराब का कारोबार पूरी तरह से निजी कंपनियों को सौंप दिया गया जिसमें वे नई नीति के लागू होने के बाद कम से कम 500 वर्ग मीटर के 32 क्षेत्रों में 849 ठेके खोल सकते हैं। दिल्ली सरकार ने अब प्रत्येक शराब ब्रांड और उसके सामान का अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारित किया है। खुदरा विक्रेता उस एमआरपी के भीतर कुछ भी वसूलने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उससे ज़्यादा नहीं।
नई शराब की दुकानों में वॉक-इन होगा और खरीदार अपनी पसंद का ब्रांड चुन सकते हैं जैसे वे मॉल में करते हैं। एक रिटेल लाइसेंसधारी के पास प्रति जोन 27 शराब की दुकानें हो सकती हैं। एल-17 लाइसेंसधारियों में स्वतंत्र रेस्तरां या गैस्ट्रो-बार शामिल हैं जो बालकनी, छत, रेस्तरां के निचले हिस्से में भारतीय या विदेशी शराब परोस सकते हैं।
सड़कों और फुटपाथों पर लोगों की भीड़ के साथ ग्रिल्ड दुकानों के माध्यम से विक्रेता या दुकानें शराब नहीं बेच सकती हैं।