दिल्ली-एनसीआर में स्थिति भयावह है। यहां कोरोना के संक्रमण के कारण जितनी अफरा-तफरी है, उससे ज़्यादा तरह-तरह की अफ़वाहों के कारण ग़रीब लोग परेशान हो रहे हैं। पिछले तीन दिनों से दिल्ली-एनसीआर से हज़ारों लोग अपने बच्चों, परिवार के साथ भागे चले जा रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार अंजीत अंजुम ने जब इन लोगों से पूछा कि जब बसें बंद हैं, जाने का कोई साधन नहीं है तो वे किसके भरोसे घर से निकल पड़े हैं, तो जो जवाब उन्हें मिला, वह पहले से ही ख़राब चल रहे माहौल में चिंता को बढ़ाने वाला है।
अजीत अंजुम को जवाब मिला कि ग़ाज़ियाबाद के आगे लालकुआं बॉर्डर पर सरकार ने बसों की व्यवस्था की हुई है और लोगों को बस किसी तरह वहां तक पहुंचना है। यह अफ़वाह उड़ने के बाद हज़ारों लोग जो कुछ अपने साथ ले जा सकते थे, पोटलियों में बांधकर अपने परिवार के साथ रफ्तार से निकल पड़े। ऐसा लग रहा था कि मानो कोई आपदा आ गयी हो और उससे बचने के लिये लोग भागे चले जा रहे हैं। इनमें से अधिकतर परिवारों के पास छोटे-छोटे बच्चे भी हैं।
इन ग़रीब लोगों का दर्द बहुत बड़ा है। ये वे लोग हैं जो दिहाड़ी पर काम करते हैं या कंपनियों में मामूली सी तनख्वाह पाते हैं। अपने गांवों से निकलकर वे इन महानगरों में इस उम्मीद के साथ आये कि यहां उन्हें दो वक्त की रोटी खाने लायक काम मिल जायेगा। सब ठीक चल रहा था लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण कंपनियां बंद हो गयीं और छोटे-मोटे काम-धंधे चौपट हो गये।
इन लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि अगर लॉकडाउन तीन-चार महीने खिंचा तो वे दिल्ली-एनसीआर में अपना और परिवार का पेट पाल पायेंगे। उनके पास कोई पक्का आशियाना भी नहीं है। सो, अगर वे कमायेंगे ही नहीं तो कहां से मकान का किराया देंगे और कहां से अपना और परिवार का पेट भरेंगे।
गांव चले जायेंगे तो कम से कम किराये का टेंशन नहीं रहेगा और दूसरा उन्हें डर है कि यहां रहे तो कोरोना वायरस उन्हें नहीं छोड़ेगा। ग़रीब आदमी के पास ज़्यादा विकल्प नहीं होते। ऐसे हालात में वे बसों के इंतजाम की अफ़वाह में तेज़ी से निकल पड़े। इनकी कोशिश है कि किसी तरह अपने गांव, अपने लोगों के बीच पहुंच जाएं तो इस वायरस से जान बचे।
ख़ैर, लोग भागे चले जा रहे हैं। लेकिन जब उन्हें लालकुआं बॉर्डर पर जाकर पता चलेगा कि बस की व्यवस्था होने की बात सिर्फ़ कोरी अफ़वाह है, तब वे क्या करेंगे। उनके गांव दिल्ली-एनसीआर से 200-300-400 किमी. दूर हैं। ऐसे में पूरी रात भूखे-प्यासे वे कब तक चलेंगे। कुछ अन्य वीडियो में लोगों ने कहा कि वे हर हाल में गांव पहुंचना चाहते हैं और तब तक चलते रहेंगे।
लेकिन यहां सवाल यह है कि आख़िर किस शख़्स ने ऐसी अफ़वाह उड़ा दी। उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। अफ़वाह उड़ाने वालों ने इन हज़ारों परिवारों को नाहक परेशान किया है। पुलिस-प्रशासन को इस संकट की घड़ी में ऐसे ग़रीब परिवारों का दर्द समझते हुए इनकी जो मदद बन सके, वह करनी चाहिए और अफ़वाह उड़ाने वालों को सलाखों के पीछे भेज देना चाहिए।