दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत अप्रत्याशित नहीं है, बल्कि पर्यवेक्षकों को इसका अनुमान पहले से ही था। अमित शाह भले ही चौंकाने वाले नतीजे की बात कहते रहे हों और मनोज तिवारी को छठी इंद्रिय बता रही हो कि उनकी पार्टी जीत रही है, जनता ने फ़ैसला सुना दिया। यह फ़ैसला चौंकाने वाला इस मामले में ज़रूर था कि जितनी बड़ी जीत की संभावना थी, आम आदमी पार्टी को उससे बड़ी जीत मिली है। आइए, जानते हैं कि इस जीत के पीछे क्या वजहें रही हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी क्यों हारी, आइए जानते हैं, इसके 10 बड़े कारण :
1.आम आदमी पार्टी ने इस पूरे चुनाव को अरविंद केजरीवाल बनाम बीजेपी कर दिया। अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के तर्ज पर उन्होंने ऐसा किया और पार्टी का प्रचार अभियान उनके इर्द-गिर्द घूमने लगा। बीजेपी इस जाल में फँस गई और केजरीवाल पर निजी हमले तेज़ कर दिए। इसी नीति के तहत मुख्यमंत्री को आतंकवादी तक कहा गया। लेकिन अरविंद केजरीवाल पर जैसे-जैसे हमले होते गए, आम आदमी पार्टी को लोगों की सहानुभूति मिलती गई।
2. बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर बीजेपी को घेर लिया और उसे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की चुनौती दी। आम आदमी पार्टी ने यह भी कहा कि वह आदमी अरविंद केजरीवाल से बहस करे। बीजेपी इस मुद्दे पर बैकफुट पर ही रही, उसके पास कोई जवाब नहीं था।
3. आम आदमी पार्टी ने 2017 में नगर निगम के चुनाव हारने के बाद ही विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। बीजेपी ने इसमें बहुत देर कर दी। इस पार्टी ने चुनाव की तारीख़ों का एलान होने के बाद इस पर काम शुरू किया। इस मामले में आम आदमी पार्टी बीजेपी से बहुत आगे थी और काफी तैयार थी।
4. मुफ़्त पानी और मुफ़्त बिजली देने का आम आदमी पार्टी का फ़ैसला काफी कारगर था। पार्टी को इससे पहले 2015 में फ़ायदा मिला था और इस बार भी उसे लाभ हुआ। निम्न वर्ग और निम्न-मध्यवर्ग के लोगों को इन फ़ैसलों से राहत थी और लोगों में यह संदेश गया कि केजरीवाल और उनकी पार्टी ग़रीबों की हितैषी है।
5. आम आदमी पार्टी ने पानी और बिजली के अलावा दूसरे लोक-लुभावन वायदे भी किए। महिलाओं को डीटीसी की बसों में मुफ़्त यात्रा का फ़ैसला बहुत ही कारगर साबित हुआ। एक तो महिलाओं यानी आधी आबादी में संकेत गया कि पार्टी उनके साथ है, दूसरे ग़रीबों को पहले से मिल रही छूटों में और बढ़ोतरी हुई। इससे पार्टी की ग़रीब-हितैषी छवि और मजबूत हुई।
6. आम आदमी पार्टी महिलाओं के बीच अधिक लोकप्रिय हुई और महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट इस दल को दिए। इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया ने भी अपने एग़्जिट पोल में पाया था कि यदि 53% पुरुष मतदाता आम आदमी पार्टी को वोट देंगे तो 59% प्रतिशत महिलाएं उसे वोट देंगी। यह 6 प्रतिशत अधिक वोट बहुत कारगर साबित हुआ। सीसीटीवी कैमरा लगाने से महिलाओं में यह संकेत गया कि यह पार्टी उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर है। कुल मिला कर पार्टी की छवि महिलाओं का ख्याल रखने वाले की बन गई।
7. अल्पसंख्यक और ख़ास कर मुसलमानों में एकमुश्त वोट देने की प्रवृत्ति रही है। इस बार बीजेपी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ जिस तरह का माहौल बनाया, वे बहुत ही ख़फ़ा थे। नागरिकता संशोधन क़ानून और शाहीन बाग जैसे मुद्दे तो थे ही, कुल मिला कर यह स्थिति बनी की किसी भी सूरत में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना है। मुसलमान कांग्रेस को वोट देते रहे हैं, पर इस बार कांग्रेस को मिलने वाला वोट आम आदमी पार्टी को शिफ़्ट हो गया क्योंकि मुसलिमों को लगा कि बीजेपी को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी को वोट करना ज़रूरी है, इस काम के लिए यह कांग्रेस के मुक़ाबले अधिक सक्षम है। मुसलमान सिर्फ़ 14 प्रतिशत वोटर हैं, पर उनका एक जगह वोट पड़ना भी अहम कारण साबित हुआ।
8. बीजेपी का बहुत ही अधिक नकारात्मक प्रचार अभियान उसके ख़िलाफ़ गया। उन्होंने जिस तरह का माहौल बनाया और जिस तरह सांप्रदायिक और उत्तेजक बयान दिए, उससे मध्यवर्ग का मतदाता नाराज़ हो गया। ‘गोली मारो सालों को’, ‘बिरियानी’, ‘पाकिस्तान’, और सबसे बढ़ कर ‘आतंकवादी केजरीवाल’ जैसे मुद्दों को लोग पचा नहीं पाए। कहा जा सकता है कि यह बूमरैंग कर गया, यानी उल्टे बीजेपी को ही भारी पड़ा, उसे ही नुक़सान हुआ।
9. अरविंद केजरीवाल का सॉफ़्ट हिन्दुत्व बीजेपी के जुमलेबाजी पर भारी पड़ा। केजरीवाल ने जिस तरह हनुमान चालीसा पढ़ कर सुनाया और हनुमान मंदिर जाकर दर्शन किए, उससे उन्हें जानने वाले लोग भी चौंके। यह केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति से कहीं मेल नहीं खाता है और उनके लिए बिल्कुल नई बात थी। पर इसने बीजेपी के हिन्दुत्व की हवा निकाल दी। बीजेपी जिस आधार पर हिन्दुओं को आकर्षित करना चाहती थी, केजरीवाल ने उसमें भी सेंध लगा दी। इससे यह भी साफ़ हो गया कि हिन्दू सिर्फ बीजेपी की संपत्ति नहीं है न हिन्दुत्व पर बीजेपी की कॉपीराइट है।
10. बीजेपी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। लोकसभा चुनाव की वजह से उसमें यह आत्मविश्वास आ गया। उसने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 में संशोधन किया, तीन तलाक़ अधिनियम पारित कराया, नागरिकता संशोधन क़ानून और एनसीआर ले आई। नागरिकता क़ानून के अलावा किसी पर ज़ोरदार विरोध नहीं हुआ। इससे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को लगा कि वह अपराजेय तो है ही, उसका कारगर विरोध भी नहीं होता है। सत्तारूढ़ दल को लगा कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इस वजह से ही वह नागरिकता क़ानून पर अड़ गई और शाहीन बाग पर एक के बाद एक लगातार हमले करती रही। यह उसे महँगा पड़ा।