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अदालत ने दिल्ली पुलिस को लगाई फटकार, कहा, दंगों के मामले में रवैया लापरवाही भरा

अदालत ने दिल्ली पुलिस को लगाई फटकार, कहा, दंगों के मामले में रवैया लापरवाही भरा

दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के कामकाज और उसके रवैए पर गंभीर टिप्पणी की है। उसने कहा है कि वह दिल्ली पुलिस के 'उदासीन रवैए' से दुखी है। 

दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के कामकाज और उसके रवैए पर गंभीर टिप्पणी की है। उसने कहा है कि वह दिल्ली पुलिस के 'उदासीन रवैए' से दुखी है। 

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली पुलिस के रवैए को 'लापरवाही भरा' बताते हुए कहा कि उसने पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के दौरान मदीना मसजिद में हुई आगजनी की अलग एफ़आईआर की जानकारी तक नहीं दी थी। 

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इसके साथ ही कहा कि नए तथ्य सामने आने से पूरे मामले को देखते हुए नई एफ़आईआर दर्ज की जानी चाहिए। 

जस्टिस विनोद यादव ने कहा, "एफ़आईआर दर्ज किए जाने के मामले में संबंधित अधिकारी को जानकारी नहीं दी गई। जाँच एजेन्सी ने अदालत के सामने इसका जिक्र तक नहीं किया। यह जाँच एजेन्सी के लापरवाही भरे रवैए को ही दर्शाता है।"

जज ने कहा कि वे इससे बहुत ही दुखी हैं। 

क्या हुआ था?

बता दें कि उत्तर पूर्व दिल्ली में 25 फरवरी 2020 को दंगे भड़क उठे दंगे में एक मसजिद के अंदर रसोई गैस के दो सिलिंडरों में विस्फोट करा कर आग लगा दी गई। इसके बाद मसजिद के ऊपर केसरिया झंडा लगा दिया गया। 

दिल्ली पुलिस ने 4 अप्रैल 2020 को मसजिद कमेटी के सदस्य हाशिम अली को ही इस मामले में गिरफ़्तार कर लिया। नरेश चंद नामक एक स्थानीय बाशिंदे की शिकायत पर हाशिम को गिरफ़्तार किया गया। हाशिम की तीन दुकानें आग में नष्ट हो गईं।

पुलिस ने बाद में नरेश चंद की शिकायत को ही एफ़आईआर में तब्दील कर दिया। 

हाशिम अली ने बाद में शिकायत दर्ज कराई और 15 लोगों की पहचान दंगाइयों के रूप में की। जब अदालत ने पुलिस से इस मामले में एफ़आईआर दर्ज करने को कहा तो दिल्ली पुलिस ने नरेश चंद की शिकायत को ही दिखा दिया और कहा कि एफ़आईआर पहले से दर्ज है।

इस पर अदालत ने कहा कि वह पुलिस के लापरवाही भरे रवैए से दुखी है। अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि नई एफ़आईआर दर्ज की जाए। 

याद दिला दें कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल 23 फरवरी को दंगे शुरू हुए थे और ये तीन दिन यानी 25 फ़रवरी तक चले थे। इस दौरान यह इलाक़ा बुरी तरह अशांत रहा और दंगाइयों ने वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी। 

 ज़फराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और न्यू उस्मानपुर आदि इलाक़ों में फैल गए इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 581 लोग घायल हो गए थे। 

काग़ज़ का टुकड़ा!

इसके पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जाँच रिपोर्ट पर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि यह 'आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है।' 

जामिया मिलिया इसलामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तनहा की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, "क्या आप चाहते हैं कि मैं इस जाँच रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दूं, मैं कहूंगी कि यह बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है, बल्कि मैं यह कहूंगी कि यह अदालत की अवमानना है कि अदालत ने आपसे आपकी अपनी रिपोर्ट की जाँच करने को कहा था और आपको लगा था कि यह राष्ट्रीय महत्व की चीज है और देखें कि आपने कैसी रिपोर्ट तैयार की है।"

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