पिंकी चौधरी की अग्रिम जमानत रद्द; कोर्ट ने कहा- हम तालिबान में नहीं हैं
दिल्ली की एक अदालत ने जंतर मंतर पर मुसलिम विरोधी नारेबाज़ी मामले में हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष पिंकी चौधरी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही इसने कहा कि 'हम तालिबान राज्य में नहीं हैं'। कोर्ट का यह फ़ैसला पिछले हफ़्ते शनिवार को आया है।
यह मामला अगस्त महीने की शुरुआत में जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम 'औपनिवेशिक युग के क़ानूनों के ख़िलाफ़' से जुड़ा है। उस कार्यक्रम के कई वीडियो सामने आए थे। संसद से कुछ ही मीटर की दूरी पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए उस मार्च के दौरान कथित तौर पर मुस्लिम विरोधी और उनके ख़िलाफ़ हिंसा के लिए उकसाने वाले नारे लगाए गए थे। इस कार्यक्रम में दिल्ली प्रदेश बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय भी शामिल हुए थे। काफ़ी आलोचनाओं के बाद मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने अश्विनी उपाध्याय समेत 6 लोगों को गिरफ़्तार किया था। अधिकतर लोगों को ज़मानत मिल गई है। लेकिन हिंदू रक्षा दल का अध्यक्ष पिंकी चौधरी पुलिस की पकड़ से दूर है।
इस मामले में पुलिस की गिरफ़्तारी से बचने के लिए पिंकी चौधरी ने अग्रिम ज़मानत याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने 21 अगस्त को आदेश पारित करते हुए कहा, 'हम तालिबान राज्य में नहीं हैं। क़ानून का शासन हमारे बहु और विविध सांस्कृतिक समाज में पवित्र शासन का सिद्धांत है। जबकि पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, कुछ लोगों के विचार अभी भी असहिष्णु और आत्मकेंद्रित विश्वासों से बंधे हैं।'
दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद का रहने वाला पिंकी चौधरी वह शख़्स है, जो इस घटना के बाद से ही लगातार टीवी चैनलों पर आकर इन नफ़रती बयान देने वालों का समर्थन कर रहा था। उसके जेहन में जो कुछ है, वही सब वह बेख़ौफ़ होकर इन टीवी चैनलों पर बोल रहा था।
पिंकी चौधरी के इन साक्षात्कारों को लेकर भी अदालत ने टिप्पणी की। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पिंकी चौधरी के साक्षात्कार सांप्रदायिक नफ़रत से भरे हुए हैं, अपमानजनक और धमकी देने वाले हैं। इसने कहा कि एक नज़र में उसके साक्षात्कार समाज के अन्य वर्गों के बीच घृणा और दुर्भावना को बढ़ावा देने का संकेत देते हैं।
अदालत ने कहा कि 'यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत निहित सबसे प्राकृतिक अधिकारों में से एक है, लेकिन इसी के साथ मुझे यह कहना चाहिए कि यह एक निरंकुश अधिकार नहीं है।'
अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा की आड़ में आरोपी को संवैधानिक सिद्धांतों को रौंदने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अदालत ने माना कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और इतिहास गवाह है जहाँ ऐसी घटनाओं ने सांप्रदायिक तनाव को भड़काया है जिससे दंगे हुए हैं और आम जनता में जान-माल का नुक़सान हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि चौधरी हिंदू रक्षा दल का अध्यक्ष है, उसके भाषण का स्वर, उसका कद और प्रभाव यह बताने के लिए काफ़ी है कि अगर ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो वह मामले में गवाहों को प्रभावित कर सकता है।
इस मामले में गिरफ़्तार किए गए तीन लोगों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अदालत ने 13 अगस्त को कहा था कि वीडियो में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जो अलोकतांत्रिक है और इस देश के किसी भी नागरिक से अपेक्षित नहीं है। इससे पहले इसी मामले में अदालत ने आरोपी बीजेपी सदस्य अश्विनी उपाध्याय को ज़मानत दे दी थी।