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सवर्ण छात्रों का दलित भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से इनकार

सवर्ण छात्रों का दलित भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से इनकार

दलित भोजन माता सुनीता देवी के हाथ का बना खाना खाने से सवर्ण समुदाय के बच्चों के द्वारा इनकार करने की घटना समाज में फैले जातिवाद के दंश को उजागर करती है। 

उत्तराखंड के एक सरकारी स्कूल में फिर से सवर्ण छात्रों द्वारा दलित भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से इनकार किए जाने का मामला सामने आया है। यह स्कूल उत्तराखंड के चंपावत जिले में है जहां कुछ महीने पहले भी यह विवाद हो चुका है। 

यह स्कूल जौल नाम के गांव में है और इसका नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री रामचंद्र सरकारी इंटर कॉलेज है। 

स्कूल के प्रधानाचार्य प्रेम सिंह का कहना है कि स्कूल के 7 से 8 छात्रों ने एक बार फिर से भोजन माता सुनीता देवी के हाथों बना खाना खाने से इनकार कर दिया है। उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में भोजन माता मिड डे मील योजना के तहत स्कूल में बच्चों के लिए भोजन बनाने का काम करती हैं। 

सुनीता देवी को बीते साल दिसंबर में हुए विवाद के बाद नौकरी से हटा दिया गया था लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें नौकरी पर बहाल किया था।

इस मामले में चंपावत के जिला अधिकारी नरेंद्र सिंह भंडारी ने खाना खाने से इनकार करने वाले बच्चों के माता-पिता के साथ बैठक की और उन्हें नियमों के मुताबिक चलने को कहा।

स्कूल के प्रधानाचार्य का कहना है कि खाना खाने से इनकार करने वाले छात्रों ने कहा है कि वे चावल नहीं खाते हैं। प्रधानाचार्य ने भी इन बच्चों के माता-पिता के साथ बैठक की है और उन्हें चेताया है कि ऐसा जारी रहने पर बच्चों को स्कूल से निष्कासित कर दिया जाएगा। इसके बाद माता-पिता ने बच्चों को समझाने की बात कही थी।

दलित छात्रों ने किया था इनकार 

बीते साल जब यह विवाद हुआ था तो सवर्ण छात्रों के जवाब में 23 दलित छात्र-छात्राओं ने भी सामान्य भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से इनकार कर दिया था। 

दलित छात्र-छात्राओं ने कहा था कि यदि दलित भोजन माता के पकाए खाने से सामान्य वर्ग के छात्रों को नफरत है तो वह भी सामान्य वर्ग की भोजन माता के हाथों से बना खाना नहीं खाएंगे और अपना खाना घर से लेकर आएंगे। 

तब इस मामले में सुनीता देवी ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया था।

निश्चित रूप से इस तरह की घटनाएं इस बात को सच साबित करती हैं कि समय भले ही बदल गया हो, लोग आधुनिक हो गए हों लेकिन जातिवाद का ज़हर अभी भी समाज में जिंदा है। 

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