भ्रष्टाचार भारत में अब रोजमर्रा जिन्दगी का हिस्सा बन गया है। लोग भ्रष्टाचार से छुटकारा तो चाहते हैं लेकिन अपना काम निकलवाने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाने से नहीं हिचकते। चुनावों में खुलकर भ्रष्टाचार मुद्दा बनता है। सत्ता पक्ष पूरी शिद्दत के साथ विपक्ष के हमलों का बचाव करने की कोशिश करता है। अभी हम लोगों ने चुनावी बांड जैसे भ्रष्टाचार के बड़े मामले को देखा। यह भी देखा कि सत्तारूढ़ पार्टी ने किस तरह इसका बचाव करते हुए विपक्ष को ही उल्टा घेरने की कोशिश की। सबसे ज्यादा चुनावी चंदा पाने वाली भाजपा ने कहा कि विपक्ष को ज्यादा चंदा मिला लेकिन यह बात पूरी तरह से झूठ है। लेकिन सीएसडीएस लोकनीति सर्वे में मतदाताओं से भारत में फैले करप्शन पर पूछा गया था।उनसे सवाल था कि मतदाता भ्रष्टाचार के बारे में क्या सोचते हैं? क्या पिछले पाँच वर्षों में भ्रष्टाचार का अनुमानित स्तर बढ़ा है या घटा है? स्थानिक संदर्भों और समाज में भ्रष्टाचार की धारणा कितनी व्यापक है?
लोकसभा चुनाव से पहले किए गए इस सर्वे में आधे से अधिक लोगों (55%) ने कहा है कि पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी हुई है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2019 के सीएसडीएस-लोकनीति चुनाव पूर्व सर्वे की तुलना में यह संख्या लगभग 15 फीसदी अंक बढ़ गई है। यह वाकई एक महत्वपूर्ण बढ़ोतरी है। इसको इस तरह भी कह सकते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सिर्फ 40 फीसदी लोग मान रहे थे कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। यानी यह बढ़ोतरी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद की थी। 2014 में पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोलकर मोदी केंद्र की सत्ता में आए थे। लेकिन आज जब देश अगले लोकसभा चुनाव का सामना कर रहा है तो 55 फीसदी कह रहे हैं कि देश में करप्शन बेतहाशा बढ़ गया है। यह वृद्धि खतरनाक है।
2014 के बाद देश में ऐसा कहने वालों की तादाद अचानक बढ़ गई थी कि मोदी राज में भ्रष्टाचार कम हो गया है। लेकिन लोगों का मोहभंग होता जा रहा है। सीएसडीएस लोकनीति सर्वे के मुताबिक 2019 में 37% लोग कह रहे थे भ्रष्टाचार कम हो गया है। लेकिन 2024 में सिर्फ 19% लोग कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। हालांकि ऐसे लोग कौन हो सकते हैं जो चुनावी बांड घोटाले के बावजूद करप्शन को कम बता रहे हैं, इन पर अध्ययन की जरूरत है। भ्रष्टाचार को लेकर शहर, कस्बे, गांवों में प्रतिक्रियाएं एक जैसी ही होती हैं। इन सभी हिस्सों में लोग खुलकर कह रहा हैं कि भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है, बल्कि बढ़ा है।
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सर्वे के मुताबिक गांवों में 55%, कस्बों में 53% और शहरों में 57% लोग मानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में करप्शन बढ़ा है। लेकिन इन तीनों ही इलाकों में ऐसा कहने वाले महज 19% लोग है जो कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। लगता है कि ऐसे लोग शायद चुनावी बांड के भ्रष्टाचार से वाकिफ नहीं हैं।
अमीर-गरीब कैसे सोचते हैंः हालांकि आर्थिक आधार अलग-अलग होने के बावजूद, सभी उत्तरदाता भ्रष्टाचार की स्थिति पर एक ही विचार रखते हैं। अमीर और गरीब दोनों में 10 में से लगभग छह लोगों ने माना कि पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी हुई है। भले ही यह कहने वालों की संख्या बहुत कम है कि भ्रष्टाचार कम हुआ है, फिर भी एक व्यवस्थित वर्ग पैटर्न है। यानी अमीर मानते हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है जबकि गरीब तबका मानता है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक अमीर उत्तरदाताओं में, यह कहने वालों का हिस्सा कि भ्रष्टाचार में गिरावट आई है, गरीब उत्तरदाताओं की तुलना में सात प्रतिशत अंक अधिक है। यानी गरीब लोगों की तुलना में अमीर वर्ग मानता है कि भ्रष्टाचार में गिरावट आई है और ऐसे लोगों की तादाद 7 फीसदी ज्यादा है। यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है। इसमें राजनीतिक संकेत भी छिपे हैं। किसी के लिए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
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सर्वे में शामिल 58 फीसदी लोग मानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार बढ़ा है। निम्न मध्यवर्ग के 54% लोग, मध्य वर्ग के 53% लोग और 57% अमीर लोग मानते हैं कि देश में भ्रष्टाचार में बढ़ा है। लेकिन गरीब तबके के 16%, निम्न मध्यवर्ग के 19%, मध्य वर्ग के 20% और 23% अमीर मानते हैं कि भ्रष्टाचार घटा है।
भ्रष्टाचार के लिए केंद्र-राज्य दोनों जिम्मेदार
सीएसडीएस लोकनीति सर्वे के मुताबिक यह पूछे जाने पर कि भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी के लिए वे किसे जिम्मेदार मानते हैं, अधिकांश उत्तरदाताओं (56%) ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। हालाँकि, जब केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अंतर स्पष्ट करने को कहा गया तो ज्यादातर जवाब देने वालों ने बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
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सर्वे के मुताबिक 25% लोगों ने कहा कि भ्रष्टाचार के लिए केंद्र जिम्मेदार है। सिर्फ 16% लोगों ने कहा कि राज्य सरकार जिम्मेदार है। लेकिन 56% लोग ऐसे भी हैं जो भ्रष्टाचार के लिए केंद्र-राज्य दोनों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
बहरहाल, यह अब आम धारणा है कि पिछले पांच वर्षों में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। मतदाताओं ने भी यही बात कही। चाहे वे कहीं भी और किसी भी वर्ग या आर्थिक स्थिति के मतदाता हों। साथ ही, यह भी सच है कि शायद ही कोई एक मुद्दा राजनीतिक प्राथमिकता को असमान रूप से प्रभावित करता है और चुनावी नतीजे. ऐसे में यह देखना बाकी है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा किस हद तक मतदान के रुख को प्रभावित करेगा।