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<span>CSDS-लोकनीति सर्वे: </span>क्या गुजरात में 'डबल इंजन' नारा काम करेगा?

CSDS-लोकनीति सर्वे: क्या गुजरात में 'डबल इंजन' नारा काम करेगा?

गुजरात में चुनाव की घोषणा हो गई है तो सवाल है कि आख़िर किसकी चलेगी? बीजेपी, कांग्रेस या आप की? जानिए सीएसडीएस के सर्वे में क्या सामने आया है।

राज्यों के चुनावों में बीजेपी 'डबल इंजन सरकार' के नारे का ख़ूब इस्तेमाल करती रही है। कहा जाता है कि इसका बीजेपी को लाभ भी होता है। तो क्या बीजेपी का यह नारा गुजरात में काम करेगा? जहाँ बीजेपी ही 27 साल से सत्ता में है क्या वहाँ यह नारा वोटरों को लुभाने वाला साबित होगा?

माना जा रहा है कि 'डबल इंजन सरकार' के नारे को बीजेपी गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भुनाने के लिए मजबूर होगी। यह नारा लोगों को आकर्षिक करता है क्योंकि इसके हवाले से यह दावा किया जाता है कि चूँकि केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर एक पार्टी की सरकार होगी तो उनके बीच बेहतर समन्वय होगा और इस तरह तेजी से विकास होगा। सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण ने यह समझने की कोशिश की कि गुजरात के मतदाताओं के मन में यह नारा कितना व्यावहारिक है।

तो सवाल है कि गुजरात में बीजेपी का यह नारा कितना कारगर हो सकता है? सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार गुजरात में डबल इंजन सरकार के लिए समर्थन 2017 में 16% था जो अब बढ़कर 2022 में 27% हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार डबल इंजन के फॉर्मूले का विरोध काफी कम हो गया है। यहाँ तक ​​कि जो लोग (17%) केंद्र सरकार से पूरी तरह से असंतुष्ट हैं, वे अभी भी डबल इंजन वाली सरकार के विचार का समर्थन करना पसंद करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पहले के सर्वेक्षण एक दिलचस्प पैटर्न का संकेत देते हैं। जहाँ कहीं भी बीजेपी की मौजूदा सरकार थी, उसे डबल इंजन वाली सरकार के लिए पर्याप्त समर्थन मिला। गुजरात (27%), असम (41%), गोवा (34%), उत्तर प्रदेश (31%) और उत्तराखंड में (33%) मतदाता 'डबल इंजन' की ओर झुकाव दिखाते हैं। केरल (54%), तमिलनाडु (40%) और पश्चिम बंगाल (33%) जैसे राज्यों में मतदाता, जहां सत्तारूढ़ दल अलग हैं, नागरिक ज़्यादातर असहमत हैं।

आक्रामक प्रचार का असर कितना?

पिछले कुछ महीनों में आम आदमी पार्टी गुजरात में आक्रामक रूप से प्रचार कर रही है। लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज यानी सीएसडीएस के सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि आप राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के निरंतर अभियान के माध्यम से ग्रामीण और शहरी गुजरात में अपनी छाप छोड़ने में सक्षम है। लेकिन क्या स्कूल, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर आप बीजेपी के लिए चुनौती पेश करेगी?

सर्वेक्षण में 54% उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि सरकारी स्कूलों में सुविधाओं में सुधार हुआ है, जबकि केवल 16% ने ऐसा नहीं माना। रिपोर्ट के अनुसार एक धारणा है कि न केवल शिक्षा की गुणवत्ता, बल्कि अन्य सुविधाओं जैसे कि मध्याह्न भोजन, कक्षाओं और खेल-सुविधाओं में भी सुधार हुआ है।

सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार गुजरात के सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली सुविधाओं से लोग भी खुश नजर आ रहे हैं। उत्तरदाताओं के बहुमत (60%) का मानना है कि पिछले पांच वर्षों में सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं में सुधार हुआ है; केवल 15% इस पर विश्वास नहीं करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार लोगों ने कहा कि पीने के पानी और बिजली की व्यवस्था में सुधार हुआ है, लेकिन सीवर की सफाई और सड़कों की स्थिति पर उनके अलग-अलग मत थे।

लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए सर्वेक्षण में गुजरात में मतदाताओं के लिए मूल्य वृद्धि यानी महंगाई प्रमुख मुद्दा है। लेकिन क्या यह चुनावी मुद्दा बनेगा? जब उत्तरदाताओं से आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उनके मतदान संबंधी विचारों के बारे में पूछा गया, तो उनमें से लगभग आधे ने मूल्य वृद्धि यानी महंगाई को एक महत्वपूर्ण मुद्दा के रूप में बताया। औसतन, लगभग 5% उत्तरदाताओं ने इस साल की शुरुआत में हुए चार विधानसभा चुनावों में मूल्य वृद्धि को एक मुद्दा बताया। 

अलग-अलग प्रश्नों में, जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या पिछले दो वर्षों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं या घटी हैं, तो प्रत्येक 10 में से नौ ने कहा कि बढ़ी हैं। पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और यू.पी. में हुए विधानसभा चुनावों में भी, मतदाताओं के चार-पाँचवें हिस्से से कुछ अधिक ने कहा था कि आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ गई हैं। लेकिन ख़ास बात यह है कि महंगाई को स्वीकार करने के बावजूद, उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा नहीं माना।

रिपोर्ट के अनुसार जब मतदाताओं से पूछा गया कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कौन सी सरकार जिम्मेदार है, तो हर पांच में से तीन उत्तरदाताओं ने कहा कि इस मुद्दे को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से हल किया जाना चाहिए। 

दूसरी ओर, जो लोग मानते हैं कि पिछले दो वर्षों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं, उनमें से आधे से भी कम ने संकेत दिया कि वे भाजपा को वोट देंगे, एक चौथाई ने कहा कि वे आप को वोट देना पसंद करेंगे, और हर 10 में से दो ने कांग्रेस का पक्ष लिया।

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