देश के किसी राज्य में पहले गाय मंत्री देवाराम ओटासी राजस्थान विधानसभा चुनाव हार गए। यह देश के उस इकलौते राज्य का मामला है जहां गोपालन मंत्रालय है। राज्य में गायों के नाम पर लिंचिंग की घटनाएँ तक हुईं। उनकी हार से यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या गाय की सियासत अब वोट बटोरू नहीं रही
सिरोही विधानसभा से चुनाव लड़ रहे गाय मंत्री यानी गोपालन मंत्री ओटाराम हारे भी तो किससे, निर्दलीय उम्मीदवार संयम लोढ़ा से। लोढ़ा कांग्रेस से दो बार विधायक रहे थे और इस बार वे पार्टी से बाग़ी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे।
देवासी की क़रीब 10 हज़ार वोटों से हार हुई। इससे पहले 2013 में देवासी को 82098 वोट मिले थे और उन्होंने लोढ़ा को 24439 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। 2008 के चुनाव में भी ओटाराम को 56400 वोट मिले थे और लोढ़ा को 47830 वोट मिले थे। वह चुनाव ओटाराम ने 8570 वोटों के अंतर से जीता था।
बीजेपी का 'गाय मंत्रालय'
2013 में बीजेपी ने चुनाव के वक़्त घोषणा-पत्र में वादा किया था कि वह गायों के लिए अलग मंत्रालय बनाएगी। सरकार बनी तो मंत्रालय भी बना दिया गया। राज्य सरकार का कहना था कि गोकशी को रोकने और गोशालाओं की स्थिति बेहतर बनाने के लिए इस मंत्रालय को बनाया था।
गाय पर शोर को नकारा
राजस्थान की 199 सीटों पर बीजेपी केवल 73 सीटों पर ही जीत दर्ज़ कर पाई है। हालाँकि बीजेपी की हार के कई कारण बताए जाते हैं, लेकिन चुनाव विश्लेषकों का यह भी मानना है कि बीजेपी का सॉफ़्ट हिंदुत्व इस बार नहीं चला। गो-रक्षा और गोकशी पर रोक और गोपालन जैसे मुद्दे भी इसी का हिस्सा रहे हैं। यही कारण है कि चुनावी हार के पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि मतदाता अब गाय पर होने वाली सियासत को समझने लगी है। तो ऐसे में सवाल यह है कि जब देश भर में गाय पर शोर था, तो उसी दौरान एक गाय मंत्री को मतदाताओं ने क्यों नकार दिया
अलवर में ही 'लिंचिंग' के दो मामले
इसी साल जुलाई में अलवर में गो-तस्करी के शक में अकबर नाम के एक शख्स की पीट-पीटकर हत्या का मामला सामने आया था। बता दें कि इससे पहले 2017 में भी अलवर में ही 55 साल के पहलू खान की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड के बाद देशभर में जबर्दस्त आक्रोश फैला था। जिस वक्त पहलू पर हमला हुआ उस वक्त वह राजस्थान में गाय खरीदने के बाद हरियाणा जा रहे थे। पहलू खान डेयरी का बिज़नस करते थे।