कोरोना की तीसरी लहर बच्चों पर पड़ सकती है भारी!
कोरोना की दूसरी लहर धीमी पड़ रही है, लेकिन इसी के साथ ही तीसरी लहर की आहट भी सुनाई पड़ने लगी है। आशंका जताई जा रही है कि तीसरी लहर सितंबर से अक्टूबर माह के बीच आ सकती है। दूसरी लहर ने हमें तैयारी के लिये क़रीब एक साल का समय दिया था लेकिन इसे शेखी बघारने में ही गँवा दिया गया। अब कोरोना की अगली लहर इतना मौक़ा नहीं देने वाली है। ऐसे में इसके लिये युद्धस्तर के तैयारियों की ज़रूरत है |
कहा जा रहा है कि अगली लहर बच्चों को ज़्यादा और गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। हालाँकि इसको लेकर मतभेद भी हैं। इंडियन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स का मानना है कि तीसरी लहर के विशेष रूप से बच्चों को प्रभावित करने की संभावना कम है लेकिन यह वायरस जिस हिसाब से अभी तक अपने स्वरूप और प्रभाव में बदलाव लाया है उसे देखते हुए किसी भी संभावना को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
सामान्य तौर पर भी बच्चों को वयस्कों की तरह कोविड से प्रभावित होने का ख़तरा तो बना ही रहता है। इस लिहाज से भी अगर तीसरी लहर में अधिक लोग प्रभावित होंगे तो उसमें बच्चों की संख्या भी अधिक हो सकती है।
भारत में बच्चों की तीस करोड़ से अधिक की आबादी है जिनमें क़रीब 14 करोड़ बच्चे 0 से 6 वर्ष के बीच के हैं। इसलिये अगर अगली लहर में बच्चों के लिये अतिरिक्त जोखिम नहीं भी हो तो भी हमें बच्चों को ध्यान में रखते हुए विशेष तैयारी करने की ज़रूरत है।
बच्चों की स्वास्थ्य सेवाएँ वयस्कों के मुक़ाबले थोड़ी अलग होती हैं, मिसाल के तौर पर बच्चों का आईसीयू जिसे पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) कहा जाता है, वयस्कों के आईसीयू से अलग होता है।
इसी प्रकार से बच्चों का ऑक्सीजन मास्क भी पूरी तरह अलग होता है, इसलिये अगर बच्चों में बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलता है तो इसके लिये हमारी व्यवस्था को वयस्कों के मुक़ाबले और भी बेहतर करना होगा। लेकिन अभी व्यवस्था खस्ताहाल ही दिखती हैं। इसे हम मध्यप्रदेश के उदाहरण से समझ सकते हैं।
आज हालत यह है कि मध्यप्रदेश के कुल 52 में से मात्र 20 ज़िला अस्पतालों में ही बच्चों के आईसीयू हैं। इन बीस ज़िला अस्पतालों में बच्चों के लिए सिर्फ़ 2,418 बेड उपलब्ध हैं, इसमें भी मात्र 1,078 पीडियाट्रिक वार्ड के बेड हैं।
इसके मुक़ाबले मध्यप्रदेश में बच्चों की आबादी देखें तो यहाँ 18 साल से कम उम्र के बच्चों की क़रीब 3 करोड़ 19 लाख की आबादी है। बच्चों के लिहाज से स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में कमोबेश देश के सभी राज्यों के यही हालात हैं। आज की तारीख़ में देश के चुनिन्दा बड़े शहरों में ही बच्चों के लिये पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) उपलब्ध हैं, छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों में इस तरह की सुविधाएँ नहीं उपलब्ध हैं।
दूसरी लहर के तूफ़ान ने हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था और सत्ताधारियों के खोखले जुमलों की पोल खोल दी है, ऐसे में महामारी विशेषज्ञ तीसरी लहर से बचने का सिर्फ़ एक ही रास्ता सुझा रहे हैं टीकाकरण, लेकिन बच्चों के लिये टीका अभी उपलब्ध नहीं है और इसको लेकर अभी पक्के तौर पर कुछ कहा भी नहीं जा सकता है कि बच्चों के लिए टीका कब तक बनेगा।
चूँकि हमारे देश के अधिकतर हिस्सों में बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये बुनियादी ढाँचा ही उपलब्ध नहीं है, ऐसे में कम से कम प्रत्येक ब्लॉक या ज़िले स्तर पर बच्चों को ध्यान में रखते हुए बुनियादी हेल्थकेयर ढाँचे के निर्माण की पहली और तात्कालिक ज़रूरत है। जिसके अंतर्गत पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू), आपातकालीन कक्ष, ऑक्सीजन, एंबुलेंस, प्रशिक्षित डॉक्टर और कोविड वार्ड और बिस्तरों की सुविधा उपलब्ध हो।
स्थानीय निकाय स्तर पर भी बच्चों को ध्यान में रखते हुए विशेष तैयारियों की ज़रूरत है जिसके अंतर्गत पंचायत व वार्ड स्तर पर कोविड के प्रबंधन की योजना बनाने, अभिभावकों में जागरूकता, उनका टीकाकरण जैसे उपाय किये जाने की ज़रूरत है।
कोविड की वजह से बच्चे अप्रत्यक्ष तौर पर भी प्रभावित हुए हैं जिसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर बच्चों ने अपने मां-पिता या फिर दोनों को खो दिया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है कि राज्यों की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक़ बीते 29 मई तक 9,346 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। जाहिर है यह आँकड़े अधिक हो सकते हैं और आगे आने वाली लहरों में महामारी के कारण और अधिक बच्चों के अनाथ हो जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने इस दिशा में कुछ क़दम उठाये हैं।
लेकिन जैसा कि एनसीपीसीआर ने कहा है कि इस दिशा में और ठोस क़दम उठाये जाने की ज़रूरत है जिसके तहत सभी राज्यों में कोविड 19 महामारी की वजह से अनाथ हुए बच्चों की जानकारी इकठ्ठा करने के लिए एक मज़बूत और विश्वसनीय व्यवस्था विकसित करने की ज़रूरत है। साथ ही ऐसे सभी बच्चों के पालन पोषण और शिक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी सरकार द्वारा उठायी जाए। कोविड-19 की वजह से जो बच्चे एकल माता या पिता के सहारे रह गये हैं उन्हें भी आवश्यकता अनुसार मदद दिए जाने की ज़रूरत है।