कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनाव में अकेले उतरेगी और सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। इसका साफ़ मतलब है कि कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी तो होगी ही, सपा-बसपा गठबंधन भी होगा। यह बात राहुल गाँधी के उस बयान से साफ़ हुई जिसमें उन्होंने अपने पार्टी जनों से कहा कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक और जातिवादी ताक़तों से लड़ेगी। राहुल ने कहा कि हमारा लक्ष्य कांग्रेस की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाना है। इसके लिए उन्होंने प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पूरी ताक़त झोंकने के निर्देश दिये हैं।
राहुल गाँधी के इस बयान के गहरे राजनीतिक अर्थ हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बहुत ही ख़राब दौर से गुजर रही है। उसके पास न तो संगठन है और न ही कैडर। प्रदेश के राजनीतिक कैनवस पर कांग्रेस लगभग अप्रासंगिक हो चुकी है। राहुल शायद यह समझ रहे हैं कि चुनाव में कांग्रेस के बहुत अच्छा कर पाने की कोई ख़ास संभावना नहीं है। ये संभावनाएँ तब तक नहीं बनेंगी जब तक बीजेपी, बीएसपी और सपा में से किसी को पटखनी देकर अपनी जगह न बना ले। शायद इसीलिये वह साम्प्रदायिक और जातीवादी ताक़तों से लड़ने की बात कह रहे हैं।
राहुल कांग्रेस महासचिवों और राज्यों के स्वतंत्र प्रभारियों की बैठक को संबोधित कर रहे थे। इस बैठक के बाद यह साफ़ हो गया है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में आक्रामक रहेगी। यही फॉर्मूला हर उस राज्य में लागू होगा जहाँ कांग्रेस को गठबंधन करने में दिक्कत आ रही है। इस बैठक के ज़रिए राहुल ने तमाम क्षेत्रीय दलों को यह संदेश दे दिया है कि या तो वे कांग्रेस के साथ समझौता करें या फिर चुनाव में अकेले लड़ने को तैयार रहें।
क़रीब 3 घंटे चली कांग्रेस महासचिवों और राज्यों के स्वतंत्र प्रभारियों की इस बैठक में राहुल ने सभी को निर्देश दिया कि वह बैकफ़ुट पर खेलने के बजाय फ्रंटफ़ुट पर खेलें।
सात बिंदुओं में समझें राहुल की चुनावी रणनीति
- तजुर्बा और युवा जोश का तालमेल कांग्रेस का रास्ता भी है और ताक़त भी। लिहाज़ा उम्मीदवारों के चयन में तजुर्बे और युवा जोश के तालमेल का ध्यान रखा जाए।
- उम्मीदवारों के चयन में नौजवानों, महिलाओं और शोषित-पिछड़े वर्गों के साथ ही अल्पसंख्यकों को तरजीह दी जाए।
- दो या तीन बार चुनाव हारने वालों की जगह नए चेहरों को मौक़ा दिया जाए। उम्मीदवार चयन प्रक्रिया फ़रवरी के आख़िर तक पूरी कर ली जाए।
- न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना को कांग्रेस के बड़े विचार के रूप में पेश करके उसे जन-जन तक पहुँचाया जाए।
- जनता के बीच मोदी सरकार के देश के संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करने वाले चरित्र को बेनकाब किया जाए।
- जनता को यह बताया जाए कि बीजेपी और संघ परिवार की राजनीति समाज के बँटवारे पर आधारित है जबकि कांग्रेस समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की राजनीति करती है।
- देश की जनता और खासकर उत्तर पूर्वी राज्यों की जनता के बीच मोदी सरकार को नागरिकता संशोधन विधेयक पर पूरी तरह बेनकाब किया जाए। कांग्रेस इसे किसी भी सूरत में क़ानून नहीं बनने देगी।
ख़ुद सीमा लांघते दिखे, दूसरों को सभ्य भाषा की नसीहत
राहुल ने सभी महासचिवों और राज्यों के स्वतंत्र प्रभारियों को निर्देश दिया कि चुनाव प्रचार के दौरान सभ्य भाषा और शालीन व्यवहार अपनाएँ। कांग्रेस का प्रचार अभियान बीजेपी की तरह नहीं होना चाहिए। हालाँकि राहुल की यह हिदायत गुरुवार को अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय सम्मेलन में दिए गए उनके भाषण में अपनाई गई भाषा के विपरीत थी। कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब रणदीप सुरजेवाला से इस पर सवाल किया गया कि क्या राहुल का भाषण इस हिदायत के अनुरूप था तो इस पर रणदीप सुरजेवाला ने आक्रामक लहज़े में बोला कि जिस प्रधानमंत्री के शासनकाल में 16 बड़े आतंकी हमले और 5000 से ज़्यादा बार पाकिस्तान की तरफ़ से सीजफ़ायर का उल्लंघन हुआ हो, चीन के सामने प्रधानमंत्री लाचार नज़र आए होंं, पूर्व सैनिकों पर लाठीचार्ज हुआ हो, तो ऐसे प्रधानमंत्री को अगर कायर और डरपोक ना कहा जाए तो क्या कहा जाए।
11 फ़रवरी से प्रियंका लखनऊ में
राहुल 11 फ़रवरी को प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ लखनऊ में जाएँगे। उसके बाद प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया लखनऊ के कांग्रेस दफ़्तर में लगातार तीन दिन बैठेंगे। 12 से 14 फ़रवरी तक ये दोनों महासचिव अपने-अपने प्रभार वाले इलाक़ों के स्थानीय नेताओं से मिलकर राज्य के सियासी हालात पर चर्चा करेंगे। 11 फ़रवरी को राहुल, प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया लखनऊ एयरपोर्ट से पार्टी कार्यालय तक बाक़ायदा जुलूस की शक्ल में जाएँगे। राहुल गाँधी की हिदायत के बाद प्रियंका गाँधी ने बैठक में भरोसा दिलाया कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस विचारधारा का परचम लहराने तक वह चैन से नहीं बैठेंगी।