हरियाणा विधानसभा चुनाव में हुई चुनावी धांधली पर केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की सफाई को कांग्रेस ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। कांग्रेस ने कहा कि आयोग ने उसके नेताओं और पार्टी पर हमला किया है। अब उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में हुई धांधली को लेकर चुनाव आयोग पर तमाम आरोप लगे। कांग्रेस ने भी तमाम सवाल किये। पार्टी ने आयोग को ज्ञापन भी दिया। उसके कुछ दिन बाद केंद्रीय चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों को न सिर्फ खारिज किया, बल्कि उसके नेताओं का मजाक उड़ाया। कांग्रेस ने शुक्रवार को कड़े शब्दों में आयोग को पत्र लिखकर जवाब दिया। कांग्रेस ने कहा कि ईसीआई के साथ उसके संवाद सिर्फ मुद्दों तक ही सीमित हैं। लेकिन चुनाव आयोग का जवाब जिन शब्दों में आया है, वो उसके तटस्थता का अंत है।
चुनाव आयोग ने मंगलवार को कांग्रेस की शिकायत का जवाब देते हुए कहा था कि जब कांग्रेस असुविधाजनक चुनावी नतीजों का सामना करती है तो निराधार आरोप लगाती है। कांग्रेस को "निराधार और सनसनीखेज शिकायतें" करने की आदत हो गई है। आयोग ने आरोपों को "गैर-जिम्मेदाराना" करार दिया था और पार्टी से "मामूली शिकायतों की आदत" बदलने के लिए कदम उठाने को कहा था। आयोग ने दावा किया था कि हरियाणा में चुनावी प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी।
कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि वह इस बात से हैरान नहीं है कि चुनाव आयोग ने खुद को क्लीन चिट दे दी है, लेकिन कहा कि "ईसीआई की प्रतिक्रिया के लहजे और भाव, इस्तेमाल की गई भाषा और पार्टी के खिलाफ लगाए गए आरोपों" ने उसे जवाब देने के लिए मजबूर किया है।
कांग्रेस ने कहा कि चुनाव आयोग ने उठाए गए मुद्दों पर जिस तरह से जवाब दिया है वो "असाधारण" है। ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग भूल गया है कि ऐसा करना उसका कर्तव्य है। चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र पर कांग्रेस के 9 नेताओं के हस्ताक्षर हैं, जिसमें जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत और अजय माकन प्रमुख हैं। पत्र में कहा गया है कि "कांग्रेस को आयोग के जवाब का हालिया लहजा एक ऐसा मामला है जिसे हम अब हल्के में लेने से इनकार करते हैं। ईसीआई का हर जवाब अब या तो व्यक्तिगत नेताओं या पार्टी पर हमलों से भरा हुआ होता है। जबकि कांग्रेस के आरोप उसके मुद्दों तक ही सीमित होते हैं। "
कांग्रेस ने कहा कि "हालांकि, ईसीआई का जवाब कांग्रेस पार्टी को नीचा दिखाने के लिए लिखा गया है। लेकिन अगर वर्तमान ईसीआई का लक्ष्य अपनी तटस्थता के बचे अवशेषों को खत्म करना है, तो यह उस धारणा को बनाने में शानदार काम कर रहा है। कोर्ट में फैसला लिखने वाले जज हमला नहीं करते हैं या मुद्दों को उठाने वाली पार्टी को बदनाम नहीं करते हैं। अगर ईसीआई का यही रवैया रहता है तो हमारे पास ऐसी टिप्पणियों को हटाने के लिए कानूनी सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।“ यानी कांग्रेस का कहना है कि जिस तरह अदालत अपना फैसला या टिप्पणी देते हुए रवैया रखती है, वही लहजा चुनाव आयोग का होना चाहिए। लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहा है।
कांग्रेस ने दावा किया कि चुनाव आयोग ने लगभग हमेशा पारदर्शिता के लिए लड़ाई लड़ी है। हरियाणा चुनाव प्रक्रिया पर उसकी शिकायतें खास थीं, लेकिन चुनाव आयोग की टिप्पणियाँ "सामान्य थीं और शिकायतों और याचिकाकर्ताओं का मजाक उड़ाने पर केंद्रित थीं"।
बता दें कि जब 8 अक्टूबर को वोटों की गिनती हुई, तो कांग्रेस की शुरुआती बढ़त अचानक कम होती चली गई। इसके बाद भाजपा आगे बढ़ गई और राज्य की 90 सीटों में से 48 सीटों के साथ रिकॉर्ड तीसरी बार जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने शिकायत की थी कि नतीजों को रोका गया या देर से जारी किया किया जा रहा था और उसके स्पष्ट कारण नहीं बताये जा रहे थे। चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया था। चुनाव नतीजों को मानने से बाद में कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया। यहां बताना जरूरी है कि हर एग्जिट पोल में कांग्रेस को जीता हुआ दिखाया गया था। एग्जिट गलत साबित होते रहे हैं। लेकिन हरियाणा में तो हर एग्जिट पोल कांग्रेस के जीतने की भविष्यवाणी कर रहा था।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उस समय कहा, "आज हमने हरियाणा में जो देखा वह चालाकी की जीत है, लोगों की इच्छा को खत्म करने की जीत है और यह पारदर्शी, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की हार है। हरियाणा पर अध्याय पूरा नहीं हुआ है।"