पंजाब की 13 और चंडीगढ़ की एक लोकसभा सीट के लिए मतदान सातवें और आख़िरी चरण में 19 मई को होना है। चुनाव प्रचार के दौरान सभी दलों और प्रत्याशियों ने पूरा दम-ख़म दिखाया। बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व दूसरे दलों ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी।
पंजाब में मुख्य मुक़ाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी शिरोमणि अकाली दल के बीच सिमट कर रह गया है। हालाँकि कैप्टन के ख़िलाफ़ इन दिनों उनकी ही सरकार के कबीना मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू मुखर होकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं, आपसी लड़ाई के बावजूद यहाँ कांग्रेस का पलड़ा भारी है।
कैप्टन की साख दाँव पर
कैप्टन अमरेन्दर सिंह के लिये यह चुनाव काफ़ी अहम हैं। इस बार उन्हीं के कहने पर पार्टी ने टिकट दिये हैं। लिहाज़ा, अगर कांग्रेस को बढ़त मिलती है,तो उसका सारा श्रेय कैप्टन को ही जायेगा। बीजेपी ने 84 के दंगों के मुद्दे को उछाल कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की, पर यह रणनीति ख़ास असर नहीं दिखा सकी।
चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी हैं। कांग्रेस के लिये सुखद बात यह है कि इस बार शिरोमणि अकाली दल बिखर चुका है। बग़ावत की वजह से आम आदमी पार्टी कई गुटों में बँट चुकी है।
बादल अकाली दल और बीजेपी यहाँ मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं। अकाली दल दस सीटों पर तो बीजेपी ने तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। लेकिन बादल परिवार को मौजूदा चुनाव में अपनों से ही कड़ी चुनौती मिल रही है। अंदरूनी कलह से अलग होकर बने टकसाली समूह से पार्टी में खलबली है। वहीं, पवित्र धर्मग्रंथ को अपवित्र करने को लेकर नाराज़गी और इसके बाद प्रदर्शनकारियों पर अकाली शासन के दौरान पुलिस फायरिंग को लेकर सिख मतदाताओं में अभी भी गुस्सा है। यही वजह है कि बादल परिवार इस बार पंजाब में खुल कर चुनाव प्रचार नहीं कर पाया। उनका सारा ध्यान बठिंडा और फिरोजपुर पर ही केन्द्रित रहा। बठिंडा में हरसिमरत कौर बादल तो फिरोजपुर में सुखबीर सिंह बादल मैदान में हैं।
'आप' की बढ़त रुकी
पिछले चुनावों में पंजाब में मोदी लहर नहीं चल पाई थी। पंजाब एकमात्र प्रदेश था, जहाँ आम आदमी पार्टी (‘आप’) को सिर्फ़ चार सीटें मिली थीं। ‘आप’ कांग्रेस की क़ीमत पर आगे बढ़ी थी। कांग्रेस 13 सीटों में से सिर्फ़ तीन सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को छह सीटें मिली थीं। अबकी बार हालात अकाली दल-बीजेपी गठबंधन के अनूकूल नहीं हैं।आप में बग़ावत और पार्टी के ज़्यादातर बड़े चेहरों व मौजूदा सांसद पटियाला से धर्मवीर गांधी व फ़तेहपुर साहिब से हरिंदर सिंह ख़ालसा के पार्टी छोडऩे से अकाली दल व कांग्रेस दोनों निश्चिंत हैं। वे त्रिकोणीय लड़ाई के बजाय सीधे मुक़ाबले को लेकर खुश हैं। ‘आप’ ने भी अपना पूरा ध्यान संगरूर सीट पर चुनाव लड़ रहे भगवंत मान पर ही लगाया हुआ है।
पंजाब के राजनीतिक हालात को देखते हुए कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है, लेकिन कई तरह के समीकरणों के कारण उसे हर सीट पर कड़ी टक्कर मिल रही है।
कुछ इलाक़ों में राज्य सरकार के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर है और बीजेपी को भरोसा है कि हिंदू वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाएँगे। कम से कम अमृतसर व लुधियाना जैसे बड़े शहरों में.गरीबों के लिए पिछली सरकार की कई योजनाओं को रोकने के लिए राज्य सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी है।
बेरोज़गारी का मुद्दा
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज्य में अनियंत्रित ड्रग्स कारोबार पर रोक लगाने का वादा किया था, जो अधूरा है। बेरोज़गारी का मुद्दा केंद्र व राज्य, दोनों सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रहा है। कई स्थानीय मुद्दे भी प्रमुखता से उठ रहे हैं। जैसे पाकिस्तान के साथ मौजूदा तनाव के कारण सीमा व्यापार बंद होने से क़रीब 40,000 लोगों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। सीमाई इलाक़ों के गावों के किसान सीमा पर बाड़ लगने से समस्या का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनके खेतों तक पहुँचने में उन्हें दिक्क़त होती है।उधर, चंडीगढ़ में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। चंडीगढ़ में दो पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद किरण खेर समेत 36 प्रत्याशी मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार दोगुने प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों में कांग्रेस के उम्मीदवार पवन बंसल और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हरमोहन धवन मैदान में हैं। लेकिन किरण खेर अभी तक अपने विरोधियों को शांत कराने में नाकाम रही हैं।