यदि राजस्थान कांग्रेस के बाग़ी विधायकों को अदालत से राहत मिल गई और उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया गया तो पार्टी क्या करेगी? यह सवाल अहम इसलिए है कि राजस्थान की राजनीति अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच गई है और आर-पार की लड़ाई टाली नहीं जा सकती। सचिन पायलट की अगुआई में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनौती देने वाले विधायक अब उस बिन्दु पर पहुँच चुके हैं, जहाँ से वे वापस नहीं लौट सकते।
इसे ध्यान में रखते हुए राजस्थान कांग्रेस ने हर स्थिति से निपटने की तैयारी की है और 'प्लान बी' भी बना रखा है। यानी, यदि बाग़ी विधायकों को अयोग्य घोषित नहीं किया गया तो पार्टी आगे की रणनीति पर चलेगी।
फ़्लोर टेस्ट की चाल
राजस्थान की सियासत की बिसात पर कांग्रेस पार्टी की अगली चाल विधानसभा का सत्र बुलाने की होगी। सरकार सत्र बुलाने की माँग करेगी ताकि वह बहुमत साबित कर सके। शनिवार को राज्यपाल कलराज मिश्र से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुलाक़ात से यही संकेत मिल रहा हैहालांकि इसे शिष्टाचार मुलाक़ात कहा जा रहा है, पर यह महज शिष्टाचार नहीं है, यह बिल्कुल साफ़ है। दिलचस्प बात यह है कि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने न तो विधानसभा का सत्र बुलाने की माँग की है न ही उसने सरकार से बहुमत साबित करने को कहा है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बाग़ी विधायकों को घेरने के लिए सरकार फ़्लोर टेस्ट करने पर ज़ोर देगी। इस फ़्लोर टेस्ट के लिए मुख्य सचेतक महेश जोशी व्हिप जारी कर देंगे। व्हिप में विधायकों से कहा जाएगा की वे विधानसभा में मौजूद रहें और सरकार के पक्ष में मतदान करें।
ख़ास बात यह है कि जिस किसी ने व्हिप का उल्लंघन किया, यानी सदन में मौजूद नहीं हुआ या सरकार के पक्ष में वोट नहीं डाला, उसके ख़िलाफ़ अनुशासन की कार्रवाई हो जाएगी। ख़ास बात यह है कि जिस किसी ने व्हिप का उल्लंघन किया, यानी सदन में मौजूद नहीं हुआ या सरकार के पक्ष में वोट नहीं डाला, उसके ख़िलाफ़ अनुशासन की कार्रवाई हो जाएगी। संविधान की 10वीं अनुसूची की धारा 21 (1) (ए) के अनुसार यह कार्रवाई की जा सकेगी।
व्हिप
पार्टी ने ऐसे विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफ़ारिश स्पीकर से कर दी, तो वह उसे मानने को बाध्य होंगे। यानी यदि बाग़ी विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया तो वे अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे।
यह घटनाक्रम इसलिए अहम है कि सोमवार को राजस्थान हाई कोर्ट की सुनवाई शुरू होगी। बाग़ी विधायकों का कहना है कि उन्होंने पार्टी के ख़िलाफ़ कोई काम नहीं किया है, इसलिए उनके ख़िलाफ़ अनुशासन की कोई कार्रवाई वैध नहीं है।
स्पीकर के नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए इन विधायकों ने कहा है कि विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लेने के आधार पर किसी को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
लेकिन इन विधायकों को यदि हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली और स्पीकर ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया तो विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए ज़रूरी सदस्यों की संख्या कम हो जाएगी और इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अधिक सहूलियत होगी।