गुजरात निकाय चुनाव: हार को लेकर निशाना बनाने पर हार्दिक का पलटवार
G23 गुट के नेताओं के हमलों से जूझ रही कांग्रेस को गुजरात के निकाय चुनाव के नतीजों से निराशा हाथ लगी है। इसके साथ ही गुजरात कांग्रेस में भी घमासान खड़ा होता दिख रहा है क्योंकि 26 साल की छोटी उम्र में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हार्दिक पटेल निगम चुनाव में मिली हार के बाद गुजरात कांग्रेस के नेताओं के निशाने पर हैं।
हार्दिक की आलोचना इस बात को लेकर हो रही है पटेलों की घनी आबादी वाले इलाक़ों में भी कांग्रेस निगम चुनाव में नहीं जीत सकी। नगर निगम के चुनाव में बीजेपी ने सभी छह नगर निगम जीत लिए थे और कांग्रेस को बुरी हार मिली थी।
निकाय चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा है जबकि कांग्रेस की बुरी गत हो गई है। जिला पंचायत से लेकर तालुका और नगर पालिकाओं में बीजेपी ने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है। बीजेपी ने राज्य की सभी 31 जिला पंचायतों में जीत हासिल की है और 81 नगर पालिकाओं में से 75 अपनी झोली में डाली हैं।
पाटीदार आंदोलन से देश भर में चर्चा बटोरने वाले हार्दिक पटेल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि उनकी पार्टी उनका पूरा इस्तेमाल नहीं कर रही है और उनकी पार्टी के ही नेता उन्हें पीछे खींचने पर आमादा हैं।
हार्दिक ने कहा कि निकाय चुनाव में गुजरात कांग्रेस ने उनकी एक भी रैली नहीं रखी जबकि उन्होंने अपने दम पर 27 रैलियां की। वह कहते हैं कि अहमद पटेल जीवित होते तो चुनाव नतीजे कुछ और ही होते। इस युवा नेता ने कहा कि उन्होंने पार्टी से कई बार कहा कि वह उन्हें कुछ काम दे लेकिन कुछ नहीं हुआ।
हार्दिक ने कहा कि वे आज भी पार्टी को मजबूत करने के लिए दौरे कर रहे हैं चाहे कोई और मैदान में निकले या न निकले। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के चेहरे बन चुके हार्दिक ने कहा कि कांग्रेस के नेता उन्हें धक्का देकर गिराना चाहते हैं। हार्दिक को जुलाई, 2020 में प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।
सूरत में ख़राब प्रदर्शन
सूरत नगर निगम में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी है और आम आदमी पार्टी को 27 सीटें मिली हैं। इसे लेकर हार्दिक कहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस ने अगर उन्हें पहले बता दिया होता कि सूरत में 25 रैलियां करनी हैं तो ऐसे नतीजे नहीं आते। हार्दिक ने कहा कि उनका लक्ष्य 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाना है।
सूरत में आम आदमी पार्टी की जीत के पीछे एक कारण यह भी रहा कि हार्दिक के साथ पटेल आरक्षण आंदोलन में जुड़े कई नेता इस पार्टी में चले गए।
प्रदेश अध्यक्ष का इस्तीफ़ा
निगम व निकाय चुनाव के अलावा इससे पहले आठ विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी और अब निकाय चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के अंदर आपसी सिर फुटव्वल शुरू हो गयी है। कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी ने इस्तीफ़ा दे दिया है।
दूसरी ओर एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी गुजरात में कांग्रेस को नुक़सान पहुंचाती दिख रही हैं। एआईएमआईएम ने गोधरा और मोडासा नगर पालिका में अच्छा प्रदर्शन किया है तो आम आदमी पार्टी ने भी नगर पालिकाओं में कुछ सीटें झटकी हैं।
असरदार हैं हार्दिक पटेल
हार्दिक पटेल का पटेल समुदाय में अच्छा असर माना जाता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पटेलों के विरोध के कारण ही बीजेपी को चुनाव जीतना मुश्किल हो गया था जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को अपने गृह राज्य में ही पूरा जोर लगाना पड़ा था। सौराष्ट्र के इलाक़े में तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था और इस इलाक़े के पटेलों ने बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट डाला था। इसके पीछे बड़ा कारण हार्दिक ही थे।
लेकिन अब अगर हार्दिक अपनी ही पार्टी के नेताओं पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वे उन्हें आगे नहीं बढ़ने देना चाहते तो निश्चित रूप से गुजरात में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि बीते दो साल में पार्टी के कई विधायक बीजेपी में जा चुके हैं और हार्दिक जैसा बड़ा और युवा चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है। ऐसे में G23 गुट के नेताओं की बग़ावत से जूझ रहे कांग्रेस आलाकमान के लिए गुजरात कांग्रेस का झगड़ा एक और सिरदर्द साबित हो सकता है।