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गांधी परिवार के सामने अपनी बात क्यों नहीं रखते G-23 के नेता?

गांधी परिवार के सामने अपनी बात क्यों नहीं रखते G-23 के नेता?

कांग्रेस की हार के बाद G-23 गुट के नेता मुखर हो जाते हैं और पार्टी की दुर्दशा होने की बात को लेकर मीडिया में बयान जारी करते हैं लेकिन वे गांधी परिवार के सामने अपनी बातों को कहने से पीछे हट जाते हैं। 

बीते 3 सालों में कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं का एक गुट बना है। इस गुट को पत्रकारिता की दुनिया में G-23 कहकर पुकारा गया। जैसा कि नाम से साफ लगता है कि यह 23 नेताओं का एक गुट है। इसके नेता जब-जब कांग्रेस किसी राज्य में चुनाव हारती है उस दौरान सक्रिय होकर पार्टी हाईकमान के खिलाफ मीडिया में आकर आवाज बुलंद करते हैं। लेकिन वे गांधी परिवार के सामने अपनी बातों को कहने से पीछे हट जाते हैं। 

यह वही G-23 गुट है जिसने साल 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी नेतृत्व के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल उठाए थे। 

इस गुट के प्रमुख नेताओं में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, शशि थरूर आदि शामिल हैं।

पांच राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद यह गुट एक बार फिर से मुखर हुआ है। इस गुट के नेताओं ने मीडिया में भी कुछ बयान जारी किए हैं और कहा कि वे पार्टी को इस तरह डूबते हुए नहीं देख सकते। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक इस गुट के कुछ नेताओं ने कांग्रेस की हार के बाद दिल्ली में गुलाम नबी आजाद के आवास पर हुई बैठक में कहा कि उन्हें राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है।

लेकिन जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई तो उसमें ये नेता अपनी बात को रखने से पीछे हट गए।

अब सवाल यह है कि G-23 के नेता अपनी बात को खुलकर गांधी परिवार से क्यों नहीं कहते। मीडिया में सूत्रों के हवाले से इस तरह की भी खबरें आई हैं कि गांधी परिवार ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले इस्तीफा देने की बात कही। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी शामिल रहे।

ऐसे में इस गुट के नेताओं पर सवाल खड़े होते हैं। अगर वे लोग निश्चित रूप से पार्टी का भला चाहते हैं तो उन्हें अपनी मांग को मीडिया के बजाए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में या पार्टी के किसी और फोरम पर मजबूती से रखना चाहिए और बताना चाहिए कि कांग्रेस किस तरह फिर से जिंदा हो सकती है। 

लेकिन बीते 3 साल में इतने राज्यों में चुनाव हुए तब ये नेता कांग्रेस को जिताने या इसके प्रदर्शन को बेहतर करने की दिशा में कुछ खास करते नहीं दिखाई दिए। लेकिन कांग्रेस की हार के बाद ये नेता मुखर हो जाते हैं और पार्टी की दुर्दशा होने की बात को लेकर मीडिया में बयान जारी करते हैं। 

ये नेता खुद को कांग्रेस का कट्टर समर्थक भी बताते हैं और कहते हैं कि वे पार्टी के हितैषी हैं लेकिन उनके द्वारा मीडिया में की जा रही बयानबाजियों को देखकर ऐसा नहीं लगता। 

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