क्या कांग्रेस के लिए समस्या हैं दिग्विजय सिंह?
दिग्विजय सिंह कांग्रेस का बड़ा नाम और चेहरा हैं। अपने अटपटे और चटपटे बयानों से निरंतर वे मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं। राजनीति करने का उनका अपना ‘खास अंदाज’ है। मगर बड़ा सवाल यह बनता जा रहा है, ‘दिग्विजय सिंह कांग्रेस के एसेट हैं या बड़ी समस्या?
मध्य प्रदेश के लगातार दस सालों तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह इन दिनों राज्यसभा के सदस्य हैं। पार्टी में फ़िलहाल राष्ट्रीय स्तर पर कोई बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी उनके पास नहीं है। मगर अपने बयानों से वह प्रदेश और देश के मीडिया का आये दिन हिस्सा बनते हैं। सुर्खियाँ बटोरते हैं।
दिग्विजय सिंह इन दिनों मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के साथ भोपाल में बीच सड़क पर ‘तल्खी भरे वार्तालाप’ के वायरल हुए एक वीडियो को लेकर खासे चर्चाओं में हैं। मसला - भोपाल, विदिशा, राजगढ़ और गुना के किसानों एवं ग्रामीणों से जुड़ा हुआ है। इन चार ज़िलों में सिंचाई की दो परियोजनाओं से प्रभावित किसानों एवं ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलना चाहते थे।
सीएम से समय नहीं मिलने पर वह अपने समर्थकों के साथ पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री निवास की ओर कूच कर गए। प्रशासन ने उन्हें रोक दिया। सड़क पर बैठ गए। भनक लगी तो कमलनाथ भी मौक़े पर पहुँचे। यहीं दोनों के बीच ‘दिलचस्प वार्तालाप’ हुआ। अब दोनों के बीच हुआ ‘वार्तालाप’ का वीडियो वायरल हो गया है।
वायरल हुए वीडियो में कमलनाथ बुरी तरह चिड़चिड़ाते हुए प्रभावित किसानों से कह रहे हैं, ‘दिग्विजय सिंह जी - चार दिन पहले उनसे मिले, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मुलाकात के प्रयास, और उनसे समय नहीं मिल पाने के बारे में उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं!’
दिग्विजय सिंह का जवाब आ रहा है, ‘आपको बताने की इसलिए ज़रूरत नहीं थी...!’
दिग्विजय सिंह के वाक्य के आगे बढ़ने के पहले, किसानों से मुखातिब होते हुए कमलनाथ फिर दोहराते हैं, ‘ये बात मुझे नहीं बताई, चार दिन पहले हम तो मिले थे - उसके बाद मैं छिंदवाड़ा चला गया।’ इस वीडियो में दिग्विजय सिंह आगे कहते हैं, ‘बात ये है, कि हम तो डेढ़ महीने से मुख्यमंत्री से मिलने के लिए समय मांग रहे थे। अब मुख्यमंत्री से मिलने के लिए क्या आपके थ्रू समय मांगें, हम लोग?’
सिंह के इस सवाल पर कमलनाथ का जवाब आता है, ‘देट इज ट्रू।’
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच कथित टकराव का यह पहला मौक़ा नहीं है। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद विधानसभा की 24 सीटों के उपचुनावों में टिकटों के वितरण के दौरान भी दोनों के बीच खासी खींचतान होती दिखी थी।
कमलनाथ समर्थक दबी जुबान में कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश कांग्रेस का बड़ा एसेट रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कमलनाथ से संबंधों में ज़्यादा खटास और सरकार गिरने की असल वजह भी दिग्विजय सिंह रहे।’
कमलनाथ समर्थकों का सिंधिया से खटास वाला आरोप कितना सच्चा है, यह कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन यह सही है सिंधिया की अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत के पहले - खटास बढ़ाने और आग लगाने वाले कई तल्ख़ बयान दिग्विजय सिंह के आते रहे थे।’
दिग्विजय सिंह की राजनीति करने के जिस ‘अंदाज़’ पर इशारों में कमलनाथ आपत्ति जतला रहे हैं कुछ वैसी ही कठिनाइयों का सामना पूर्व के कई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों ने किया है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी के कार्यकाल में भी इस तरह की आपत्तियाँ (पीसीसी को नज़रअंदाज़ करते हुए दिग्विजय सिंह समांतर संगठन चलाते हैं/कार्यक्रम करते हैं) दिल्ली दरबार तक पहुँची थीं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए अरुण यादव भी दिग्विजय सिंह के इसी अंदाज से हलाकान रहा करते थे। उन्होंने भी कई बार दिग्विजय सिंह के सामने लाचारी जताई थी। केन्द्र तक मामले पहुंचे थे।
एक अवसर पर तो दिग्विजय सिंह की एक स्वयंभू यात्रा को मध्य प्रदेश में आलाकमान के निर्देशों के बाद रोका भी गया था।
दिग्विजय सिंह पार्टी के लिए एसेट हैं या समस्या, इस सवाल का सही जवाब कांग्रेस के नेता दे सकते हैं, लेकिन यह तथ्य सोलह आने सही है कि वे अपने बयानों से राज्य सरकार, भोपाल से लेकर दिल्ली तक की बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद सहित अन्य कट्टरपंथियों की नाक में दम किए रहते हैं।
अनेक बार पार्टी को उनके तल्ख और विवादित बयानों से किनारा करना पड़ता है। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने पिछले दिनों में कई अवसरों पर अधिकारिक तौर पर दिग्विजय सिंह के बयानों को निजी विचार करार देते हुए किनारा किया भी है।
बीजेपी भले ही दिग्विजय सिंह को यह कहते हुए दरकिनार करे कि उनके बयान फौरी होते हैं, मुसलिम प्रेमी हैं। मगर सिंह के बयानों पर निरंतर प्रतिक्रियाएँ भाजपा-संघ के लोगों को व्यक्त करना पड़ती हैं।
प्रदेश में कोई भी चुनाव हो कांग्रेस के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह की सभाएं कराने से कतराते हैं। कई मौकों पर इस बात का खुलासा भी हुआ है। कांग्रेसी दबी जुबान में यह कहते सुने गए हैं, ‘सिंह की सभा वोट बढ़ाने की बजाय घटा देगी!’ ठहाका लगाते हुए दिग्विजय सिंह ने भी इस तरह की कांग्रेस प्रत्याशियों की ‘आशंकाओं’ को मीडिया के बीच ‘स्वीकारा’ भी है कि कई कांग्रेसी मानते हैं, वे प्रचार करेंगे तो वोट कम हो जायेंगे।
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच बातचीत के ताज़ा वायरल वीडियो पर मध्य प्रदेश भाजपा जमकर चुटकियाँ ले रही है। दिग्विजय सिंह को जमकर ट्रोल भी किया जा रहा है।
सरकार के प्रवक्ता और सूबे के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने चुटकी लेते हुए आज कहा है, ‘कमलनाथ जी ने वास्तव में दिग्विजय सिंह को बता दिया है कि इंदिरा गांधी जी के वे तीसरे पुत्र यूँ नहीं कहलाते हैं।’
मिश्रा ने आगे कहा, ‘नाथ-सिंह के बीच बातचीत का वायरल वीडियो बताता है कि डेमोक्रेसी नाम की चीज कांग्रेस में बची नहीं है। दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के मध्य, कार्यकर्ताओं के सामने और बीच सड़क पर हास्यास्पद वार्तालाप, मध्य प्रदेश कांग्रेस का आगे क्या भविष्य बचा है, इस बात को स्पष्ट कर रहा है।’
कुछ लोग कह रहे हैं, ‘पुराने दोस्तों में दरार की बड़ी वजह पुत्र मोह है। कमलनाथ अपने पुत्र, और दिग्विजय सिंह अपने बेटे को सूबे की कांग्रेस की राजनीति का भविष्य बनाने के कार्ड खेल रहे हैं। मगर इसके चलते यूपी की तरह एमपी में भी कांग्रेस गर्त की ओर जाने को मजबूर हो रही है।’
उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए कांग्रेस द्वारा जारी की गई स्टार प्रचारकों की सूची में मध्य प्रदेश नदारत हैं। मध्य प्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह और अरुण यादव सरीखे के नेताओं के होते हुए यूपी के स्टार प्रचारकों की कांग्रेस की सूची में जगह ना मिल पाना समर्थक एवं पार्टीजनों को रास नहीं आ रहा है।
ऐसा माना जा रहा है कि आपसी खींचतान और एकला चलो की नीति की वजह से सबक़ सिखाने के लिए आलाकमान ने यूपी चुनाव प्रचार में मध्य प्रदेश को तवज्जो न देकर सीख लेने की नसीहत दी है।