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चिंतन शिविर: उदयपुर में जुटे कांग्रेस नेता; निराशा से उबरेगी पार्टी?

चिंतन शिविर: उदयपुर में जुटे कांग्रेस नेता; निराशा से उबरेगी पार्टी?

2014 के बाद से मिल रही चुनावी हार से पस्त कांग्रेस को क्या चिंतिन शिविर से ऑक्सीजन मिलेगी? 

लगातार चुनावी हार से जूझ रही कांग्रेस शुक्रवार से राजस्थान के उदयपुर में आयोजित हो रहे चिंतन शिविर में खुद को जिंदा करने की कोशिश करेगी। यह चिंतन शिविर 13 मई से 15 मई तक चलेगा और इसमें केंद्रीय व प्रदेशों की कांग्रेस कमेटियों से जुड़े 400 नेता शिरकत कर रहे हैं। इनमें सीडब्ल्यूसी के सदस्यों के अलावा लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद, राज्यों के प्रभारी महासचिव, प्रदेश अध्यक्ष और कई आला नेता शामिल हैं। 

राजस्थान चूंकि कांग्रेस शासित राज्य है इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राजस्थान कांग्रेस के नेता बीते कई दिनों से शिविर की तैयारियों में जुटे रहे। 

इससे पहले 1998 में पचमढ़ी, 2003 में शिमला और 2013 में जयपुर में चिंतन शिविर आयोजित किया गया था।  

चिंतन शिविर में शामिल होने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ट्रेन से उदयपुर पहुंचे।

कुछ दिन पहले हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सोनिया गांधी ने कहा था कि वह सभी नेताओं से पूरा सहयोग देने का अनुरोध करती हैं जिससे उदयपुर के चिंतन शिविर से पार्टी की एकजुटता, दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता का संदेश साफ और जोरदार ढंग से सामने आए।

 - Satya Hindi

राहुल फिर बनेंगे अध्यक्ष?

चिंतन शिविर में सबसे अहम बात यह होगी कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को री-लांच किया जाएगा और उन्हें एक बार फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाने का रास्ता चिंतन शिविर से निकलेगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीते दिनों इस काम में जुटे रहे और पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से उन्होंने इस मसले पर बातचीत की। 

साल 2019 के आम चुनाव में मिली करारी हार के बाद सोनिया गांधी ही अध्यक्ष पद संभाल रही हैं। कांग्रेस की हालत बेहद पतली है और 2022 व 2023 के चुनावी राज्यों व 2024 के आम चुनाव के लिए पार्टी को पूरी ताकत झोंकनी होगी वरना उसके लिए यूपीए का नेतृत्व करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।

कांग्रेस को जितनी बड़ी चुनौती बीजेपी से मिल रही है इससे ज्यादा बड़ी चुनौती ममता बनर्जी और केसीआर उसके लिए खड़ी कर रहे हैं। ममता बनर्जी और केसीआर 2024 के चुनाव के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन की कयादत करना चाहते हैं और यह निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए गंभीर विषय है।

बीते 2 सालों में अध्यक्ष पद संभालने से पीछे हटते रहे राहुल गांधी के लिए अब करो या मरो का वक्त है। लोकसभा चुनाव में 2 साल का वक्त है और कांग्रेस की जैसी हालत है उसमें यह वक्त बहुत कम है।इसलिए ऐसी उम्मीद की जा रही है कि राहुल गांधी अब उहापोह की हालत से निकलकर अध्यक्ष पद संभालेंगे और पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं, फ्रंटल संगठनों को निराशा से बाहर निकालकर बीजेपी और एनडीए से लड़ने के लिए तैयार करने के काम में जुटेंगे।

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