त्रिशंकु विधानसभा? छोटे दलों से संपर्क में हैं कांग्रेस-बीजेपी

08:11 pm Dec 10, 2018 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

अब जबकि विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में 24 घंटे से भी कम समय बचा हुआ है, छोटे राजनीतिक दलों का भाव बढ़ गया है। एग्ज़िट पोल के मुताबिक़, जिन राज्यों में किसी एक दल को बिल्कुल स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है, वहाँ मुख्य दल छोटे दलों को पटाने की कोशिश में लग गए हैं। इस खेल में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही सक्रिय हैं। कांग्रेस और बीजेपी इस कोशिश में हैं कि किसी तरह छोटे दलों को रिझा कर या उनसे सौदेबाजी कर समय रहते ही अपने पक्ष में कर लिया जाए ताकि नतीजा निकलने पर उनकी स्थिति मजबूत रहे। दोनों की कोशिश इस खेल में दूसरे से आगे निकलने की है। इससे छोटे दलों की अहमियत बढ़ गई है। वे ‘किंग मेकर’ की स्थिति में आ गए हैं।

हाशिए पर खड़ी छोटी पार्टियों की अहमियत यकायक बढ़ गई है। कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही उनसे संपर्क कर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही हैं ताकि स्पष्ट बहुमत से थोड़ा पीछे रहने पर उनकी मदद से सरकार बनाई जा सके।

क्या हुआ था कर्नाटक में?

इस पूरे खेल को समझने के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव और उसके नतीजे को देखना होगा। वहाँ मुख्य लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच थी, लेकिन किसी को साफ़ बहुमत नहीं मिला, दोनों ने छोटे दलों को पटाने की कोशिश की। अंत में जनता दल सेक्युलर के नेता एसडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया, जबकि उनके पास इन दोनों ही दलों से कम विधायक थे। 

गोंडवाना गोमांतक पार्टी

मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच लगभग बराबर की टक्कर हैं, हालाँकि कांग्रेस को बहुत ही महीन अंतर की बढ़त दिखाई जा रही है। वहाँ गोंडवाना गोमांतक पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। बीएसपी को पिछले चुनाव में लगभग 4 फ़ीसद वोट मिले थे, गोमांतक पार्टी का प्रभाव कुछ ही सीटों पर है। बीजेपी और कांग्रेस की निगाह इन पर इसलिए है कि यदि 4-5 सीटों के अंतर से पिछड़े तो इन दलों की मदद से सरकार बनाई जा सके।

माया-जोगी

छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी ने अजित जोगी के दल छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से मिल कर चुनाव लड़ा। इन दोनों दलों के कुल वोट शेयर लगभग 7-8 प्रतिशत है। यदि से दोनों मिल कर 10 सीटें भी निकल ले गए तो इनकी अहमियत एकदम बढ़ जाएगी। यदि 5 सीटों पर इनकी जीत हो गई तो ये  बीजेपी या कांग्रेस के कम-से-कम बात तो कर ही सकते हैं।

गोन्डवाना गोमांतक पार्टी को दो-तीन सीटें भी मिल जाएँ तो वह खुश होगी। पर किसी कांग्रेस-बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में उसकी अहमियत इतनी बढ़ जाएगी कि ये बड़े दल उसे मुंहमाँगी क़ीमत देने को तैयार हो जाएँगे।

ओवैसी की राजनीति

तेलंगाना में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहाद-ए-मुसलमीन यानी एआईएमआईएम ने ख़ुद 8 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन बाक़ी की सभी सीटों पर उनसे सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति का समर्थन किया है। लेकिन दोनों के बीच कोई गठबंधन नहीं है। बीजेपी ने ने कहा है कि टीआरएस यदि एआईएमआईएम का साथ न ले तो वह उसे समर्थन कर सकती है। इसे टीआरएस ने ख़ारिज़ कर दिया है। 

दूसरी ओर, कांग्रेस थोड़े-बहुत सीटों के अंतर से पीछे रह गई तो वह एआईएमआईएम पर भरोसा कर सकती है। इससे उसके धर्मनिरपेक्ष छवि को भी सहारा मिलेगा और वह अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी को रोक सकेगी।  

'किंग नहीं, किंग-मेकर'

छोटे दल ‘किंग’ न सही ‘किंग-मेकर’ बन सकते हैं। मुख्य दलों को यह फ़ायदा होता है कि छोटे दलों को आसानी से और छोटी-मोटी बातों से राज़ी कराया जा सकता है क्योंकि उनके पास और कोई रास्ता नहीं रहता है। सबकी निगाहें मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में इन छोटे दलों की ओर है।