सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू पर तीखा हमला किया है। नरीमन के बयान से सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम का विवाद बढ़ सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कानून मंत्री रिजिजू को याद दिलाया कि अदालत के फैसले को स्वीकार करना उनका (मंत्री) 'कर्तव्य' है, चाहे वह 'सही हो या गलत'।
जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन खुद अगस्त 2021 में रिटायर हुए थे, उस समय तक वो भी कॉलिजियम का हिस्सा थे। जस्टिस नरीमन ने शुक्रवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सारी बातें कहीं। जूडिशरी पर कानून मंत्री की सार्वजनिक टिप्पणी को उन्होंने अदालत की निंदा बताया। जस्टिस नरीमन ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम लिए बिना, उन पर भी निशाना साधा। उपराष्ट्रपति ने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाया था। पूर्व जज ने कहा कि बुनियादी ढांचा तो रहेगा। भगवान का शुक्र है कि यह रहेगा।
कॉलिजियम द्वारा भेजे गए नामों को केंद्र के "लटकाने" पर, उन्होंने कहा कि यह "लोकतंत्र के लिए खतरनाक" है। जस्टिस नरीमन ने सुझाव दिया कि सरकार को जवाब देने के लिए 30 दिनों की समय सीमा दी जाए। अगर सुझाव नहीं आएं तो उन्हें अपने आप मंजूर माना जाए।
जस्टिस नरीमन ने कहा - हमने कॉलिजियम के खिलाफ मौजूदा कानून मंत्री की निंदा सुनी। मैं कानून मंत्री को बताना चाहता हूं कि दो बुनियादी संवैधानिक मूलभूत सिद्धांत हैं जिन्हें उन्हें जानना चाहिए। यूएसए में पांच अनिर्वाचित जजों की बेंच होती हैं जो वहां के संविधान के अनुच्छेद 145(3) की व्याख्या करती है। यूएस में भारत जैसी बेंच नहीं होती। जस्टिस नरीमन ने कहा-
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भारत में कम से कम 5 जजों की बेंच, जिसे हम संविधान पीठ भी कहते हैं, संविधान की व्याख्या करने के लिए विश्वसनीय हैं। एक बार उन पांच या अधिक ने संविधान की व्याख्या कर दी, तो यह उस निर्णय का पालन करने के लिए अनुच्छेद 144 के तहत एक अथॉरिटी के रूप में आपका कर्तव्य है। अब, आप एक नागरिक के रूप में इसकी आलोचना कर सकते हैं। मैं एक नागरिक के तौर पर इसकी आलोचना कर सकता हूं, कोई बात नहीं। लेकिन आप कभी ये मत भूलें कि मेरे उलट आप आज एक अथॉरिटी हैं, आप उस फैसले से बंधे हैं, वो फैसला सही हो या गलत हो।
- जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, 27 जनवरी 2023, मुंबई, सोर्सः इंडियन एक्सप्रेस
यहां यह बताना जरूरी है कि सरकार जजों की नियुक्ति में बड़ी भूमिका के लिए दबाव बना रही है। जबकि 1993 से सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम या सबसे सीनियर जजों का पैनल जजों की नियुक्तियों के संबंध में फैसले लेता रहा है।
हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाते हुए केंद्र का समर्थन किया और इशारों में कहा कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए। उन्होंने एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम को रद्द करने को संसदीय संप्रभुता को चुनौती जैसा मामला बताया। धनखड़ ने केशवानंद भारती मामले पर ऐतिहासिक 1973 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा - विधायिका बनाम न्यायपालिका की बहस का एक पुराना उदाहरण 'गलत मिसाल' है। धनखड़ ने कहा था - 1973 में, एक गलत परम्परा शुरू हुई। केशवानंद भारती मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना का विचार दिया, यह कहते हुए कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।