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नया ट्रेंड है कि सरकार भी जजों को बदनाम करने लगी है: सीजेआई 

नया ट्रेंड है कि सरकार भी जजों को बदनाम करने लगी है: सीजेआई 

क्या सरकार ने भी अब अदालतों और जजों को बदनाम करना शुरू कर दिया है? और क्या यह चलन बन गया है? जानिए सीजेआई एनवी रमना ने क्या-क्या कहा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा है कि अब सरकार ने भी जजों को बदनाम शुरू कर दिया है! उन्होंने कहा कि यह नया चलन शुरू हुआ है। उन्होंने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

सीजेआई रमना ने यह टिप्पणी तब की जब छत्तीसगढ़ में पूर्व आईआरएस अधिकारी और पूर्व मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अमन कुमार सिंह के ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएँ दायर की गईं। उन दोनों में से एक याचिका छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दायर की गई है। सुनवाई के दौरान दोनों वकीलों द्वारा रखी गई दलीलों को लेकर सीजेआई ने सख़्त टिप्पणी की। 

जिस मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की वह मामला पूर्व आईआरएस अधिकारी और पूर्व मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अमन कुमार सिंह से जुड़ा है। उनके ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति मामले में एफ़आईआर दर्ज की गई थी। हाई कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई हुई तो अदालत ने एफ़आईआर को अनुचित मानते हुए रद्द करने का आदेश दिया। 

हाई कोर्ट के उसी फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्राथमिकी रद्द करने का तर्क यह है कि आरोप संभावना पर आधारित है। उन्होंने कहा कि एक शिकायत की गई थी, और रिट याचिका प्रारंभिक जांच स्तर पर दायर की गई थी।

'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार दवे की दलील पर सीजेआई रमना ने टिप्पणी की, 'आप जो भी लड़ाई लड़ें, वह ठीक है। लेकिन अदालतों को बदनाम करने की कोशिश मत करें। मैं इस अदालत में भी देख रहा हूं, यह एक नया चलन है।' रिपोर्ट के अनुसार इस पर छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि वे उस बिंदु पर बिल्कुल भी दबाव नहीं डाल रहे हैं।

इस पर सीजेआई ने जोर देकर कहा,

नहीं, हम हर दिन देख रहे हैं। आप एक वरिष्ठ वकील हैं, आपने इसे हमसे अधिक देखा है। यह एक नया चलन है, सरकार ने न्यायाधीशों को बदनाम करना शुरू कर दिया, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।


सीजेआई एनवी रमना, सुप्रीम कोर्ट

इस पर वरिष्ठ वकील दवे ने कहा कि उन्होंने इस मामले में किसी की छवि खराब नहीं की है। उन्होंने दलील दी कि वह उस प्रवृत्ति के रूप में नहीं देख रहे हैं और एक दलील रख रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें कोई प्रतिशोध नहीं है।

वकील सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि इस मामले में आरोप आय से अधिक संपत्ति का है। उन्होंने कहा कि जाँच के दौरान जब प्रतिवादी से संपत्ति का ब्यौरा देने के लिए कहा जाएगा, यदि वह ऐसा करने में सक्षम होंगे तो जाँच अपने आप बंद हो जाएगी।

याचिकाकर्ता की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'अनुमानों और आपके आरोपों के आधार पर हम इस तरह के उत्पीड़न को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते।' सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ सुनवाई कर रही थी।

इस पर दवे ने कहा है कि 'यह अनुमान नहीं था। हम कह रहे हैं कि किसी ने 2500 करोड़ जमा किए हैं।' सीजेआई ने कहा, 'विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) बढ़ाचढ़ा कर बताती है, 2500 करोड़!" इसके बाद दवे ने कहा कि जिस तरह से लोग पैसे जमा करते वह चौंकाने वाला होता है। इस दलील पर सीजेआई ने टिप्पणी की, 'इस तरह लोगों को सामान्यीकरण न करें। कल जब सरकार बदलेगी, दूसरी सरकार आएगी तो वे कहेंगे कि लाख। हजार बन जाएँगे लाख'।

इस बीच छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि सेवा में शामिल होने पर प्रतिवादी के पास 11 लाख की संपत्ति थी और अब उसने 2.76 करोड़ की 7 संपत्तियां खरीदी हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पीठ इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को जारी रखेगी।

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