यूपी चुनाव से ठीक पहले नाम बदलने के प्रस्तावों की बाढ़ क्यों?
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कई जिलों, शहरों के नाम बदलने के प्रस्तावों और मांग की बाढ़ आ गई है। क्या ऐसा किसी राजनीतिक वजह से हो रहा है। इस पर बात करने से पहले देखते हैं कि उत्तर प्रदेश में यह मांग कहां-कहां से आई है।
16 अगस्त को अलीगढ़ को हरिगढ़ बनाने का प्रस्ताव वहां की जिला पंचायत ने पास किया। विश्व हिंदू परिषद यह मांग लंबे वक़्त से उठाता रहा है। 16 अगस्त को ही मैनपुरी का नाम मयनपुरी करने का प्रस्ताव वहां की जिला पंचायत में रखा गया।
उत्तर प्रदेश सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री गुलाब देवी ने मांग की है कि उनके गृह जिले संभल का नाम बदलकर पृथ्वीराज नगर या कल्कि नगर कर दिया जाए। फिरोज़ाबाद की जिला पंचायत ने भी प्रस्ताव पास किया है कि उनके जिले का नाम चंद्रनगर कर दिया जाए। इसी तरह बीजेपी विधायक देवमणि द्विवेदी ने मांग की है कि सुल्तानपुर जिले का नाम कुश भवनपुर कर दिया जाए।
देवबंद से बीजेपी विधायक बृजेश सिंह ने कहा है कि देवबंद का नाम बदलकर देववृंद कर दिया जाए। देवबंद में नामचीन इसलामिक मदरसा दारूल उलूम स्थित है।
कई जगहों से मांग
इसी तरह शाहजहांपुर जिले की ददरौल सीट से विधायक मानवेंद्र सिंह ने कहा है कि इस जिले का नाम बदलकर शाजीपुर कर दिया जाए। शाजीपुर भामाशाह का ही नाम था, जो महाराणा प्रताप के सहयोगी थे। ग़ाज़ीपुर जिले की मुहम्मदाबाद सीट से विधायक अल्का राय ने मांग की है कि ग़ाज़ीपुर का नाम बदलकर गढ़ीपुरी कर दिया जाए। वह चाहती हैं कि मुहम्मदाबाद सीट का नाम भी बदला जाए और इसे धारा नगर कर दिया जाए।
योगी सरकार इससे पहले इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, फ़ैज़ाबाद का नाम अयोध्या और मुगलसराय का नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय नगर कर चुकी है।
हिंदू मतों का ध्रुवीकरण?
राजनीति के जानकार इस पूरी क़वायद को हिंदुत्व की विचारधारा को मानने वालों के द्वारा हिंदू मतों का ध्रुवीकरण किए जाने की मंशा से जोड़कर देखते हैं। जानकार कहते हैं कि क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव नज़दीक हैं और बीजेपी, संघ का पूरा जोर उत्तर प्रदेश को फिर से जीतने पर है, ऐसे में हिंदू मतों के ध्रुवीकरण के मद्देनज़र नाम बदलने के प्रस्तावों की बाढ़ आई है, यह कहने से इनकार नहीं किया जा सकता।
इन नामों को बदलने की मांग करने वालों का तर्क है कि पुराने वक़्त में इनका नाम वही हुआ करता था लेकिन इन्हें बाहर से आए आक्रांताओं ने बदल दिया। यह लगभग तय है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले लगभग दर्जन भर शहरों के नाम बदल दिए जाएंगे।
पैसे की बर्बादी
नाम बदलना आसान काम नहीं है। किसी जिले का, प्रदेश का या फिर शहर का नाम बदलने के बाद तमाम सरकारी विभागों, दस्तावेज़ों, साइन बोर्ड्स में इसे बदलना पड़ता है। इस काम में बहुत सारा पैसा ख़र्च होता है और सरकारी कर्मचारियों को भी उनका मूल काम छोड़कर इस काम में लगाना पड़ता है।
क्या है प्रक्रिया?
किसी जिले का नाम बदलने की मांग वहां के लोगों की ओर से या वहां के जनप्रतिनिधियों की ओर से की जाती है। इसके बाद विधानसभा में इस बारे में प्रस्ताव पास कर, कैबिनेट की मंजूरी लेकर प्रस्ताव को राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है। राज्यपाल इससे जुड़ा नोटिफ़िकेशन गृह मंत्रालय को भेज देते हैं। यह गृह मंत्रालय पर निर्भर करता है कि वह इसे स्वीकार करे या नहीं।
गृह मंत्रालय के स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार इस बारे में नोटिफ़िकेशन जारी करती है और इसे आधिकारिक रूप से प्रकाशित कर देती है। इसकी एक कॉपी उस जिले के डीएम को भेज दी जाती है। डीएम सारे विभागों के प्रमुखों को इस बारे में सूचना भेज देते हैं और नाम बदलने का काम शुरू हो जाता है।
दिल्ली में भी मांग
इसी तरह दिल्ली में बीजेपी की पार्षद राधिका अब्रोल ने हुमायूंपुर का नाम हनुमानपुर करने की मांग की है। दक्षिणी दिल्ली के शहरी इलाक़े में स्थित एक और गांव मोहम्मदपुर का नाम माधवपुरम करने की भी मांग उठ चुकी है।