छगन भुजबल से एनसीपी और महायुति सहयोगियों में दरार बढ़ेगी?
छगन भुजबल एनसीपी और महायुति गठबंधन के लिए एक पहेली बने हुए हैं। एनसीपी से बाहर निकलने की अटकलों के बीच भुजबल एक बार फिर अपनी पार्टी और महायुति गठबंधन को उलझन में डालते दिख रहे हैं। पहले पार्टी प्रमुख अजित पवार की पत्नी सुंदरा के राज्यसभा नामांकन को लेकर और इस बार मराठा कोटे के मुद्दे पर।
वैसे, कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव नतीजों ने अजित खेमे में खलबली मचा दी है। एनसीपी में बँटवारा होने के बाद लोकसभा चुनाव दोनों खेमों के लिए पहली बड़ी परीक्षा था। अजित पवार चुनाव आयोग द्वारा उन्हें पार्टी का नाम और चिह्न दिए जाने के बाद पहली चुनावी लड़ाई में अपने चाचा शरद पवार की एनसीपी पर अपना दबदबा बनाने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने अजित पवार को निराश कर दिया। महायुति के सहयोगियों- भाजपा, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के बीच तनाव बढ़ने की ख़बरें हैं।
अजित पवार को पारिवारिक गढ़ बारामती में प्रतिष्ठा की लड़ाई में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले से 1 लाख 58 हज़ार मतों के अंतर से हार गईं। रायगढ़ से उनके चार उम्मीदवारों में से केवल एक सुनील तटकरे ही निर्वाचित हुए हैं।
इसके विपरीत शरद पवार ने अपनी एनसीपी (एसपी) द्वारा लड़ी गई 10 सीटों में से 8 पर जीत हासिल की है। इससे पार्टी के लंबे समय से चले आ रहे पश्चिमी महाराष्ट्र के किले पर उनकी मजबूत पकड़ बनी हुई है और 25 साल पहले स्थापित की गई पार्टी पर उनका दावा मजबूत हुआ है।
अजित को पिछले साल शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल होने पर उपमुख्यमंत्री पद से पुरस्कृत किया गया था, और चुनाव आयोग ने उनके समूह को असली एनसीपी के रूप में मान्यता दी थी। लेकिन अब अजित पवार का भविष्य कुछ ठीक नहीं लगता है।
कहा जा रहा है कि मतदाताओं ने जिस तरह से शरद पवार पर भरोसा जताया है, उससे अब अजित पवार खेमे के विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों में अपने भविष्य को लेकर संशय पैदा होगा।
कुछ रिपोर्टों में तो कहा जा रहा है कि अजित पवार के खेमे से राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा पलायन संभव है। शरद पवार की पार्टी के बेहतर नतीजे आने के बाद अजित पवार के कई विधायक राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए उनके पास लौट सकते हैं। व्यक्तिगत मोर्चे पर लोकसभा चुनावों ने पवार परिवार में अजित पवार को अलग-थलग कर दिया है। शरद पवार के पोते रोहित पवार ने हाल ही में बड़ा दावा किया है। उनका दावा है कि अजित पवार के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ एनसीपी के 18 से 19 विधायक राज्य विधानमंडल के आगामी मानसून सत्र के बाद उनके पक्ष में आ जाएंगे। उन्होंने कहा है कि ये विधायक उनके संपर्क में हैं।
इसी बीच भुजबल के अपनी पार्टी से बाहर निकलने की अटकलें इस साल अक्टूबर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ खेमे की परेशानियों को बढ़ाती दिख रही हैं।
इस बीच चर्चा को और हवा देते हुए शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बुधवार को अपनी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में अपने संबोधन के दौरान भुजबल के संभावित बाहर निकलने की ख़बरों का जिक्र किया।
हालाँकि, राज्य के सबसे बड़े ओबीसी नेताओं में से एक माने जाने वाले भुजबल ने इस तरह के किसी भी कदम से इनकार किया है। फिर भी एनसीपी द्वारा उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजे जाने और मराठों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने के उनके विरोध के बयानों ने महायुति नेताओं को चिंता में डाल दिया है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुनेत्रा के नामांकन से नाराज होने की अफवाहों को दूर करते हुए भुजबल ने कहा, 'मैं परेशान नहीं हूं। एक राजनीतिक पार्टी में काम करते हुए आपको सामूहिक निर्णय लेने होते हैं। सब कुछ किसी की इच्छा के अनुसार नहीं होता। राज्यसभा सीट के लिए कई उम्मीदवार थे, लेकिन केवल एक को ही नामांकन मिल सकता है। मैं कोई निर्दलीय नहीं हूँ कि मैं अपनी मर्जी से चलूंगा। एक पार्टी कार्यकर्ता, एक पार्टी नेता के तौर पर, किसी को भी पार्टी के फ़ैसले का पालन करना होता है। कभी-कभी पार्टी को कुछ मजबूरियों का सामना करना पड़ता है।'
इस सप्ताह की शुरुआत में अपने समर्थकों की एक बैठक में भुजबल की अध्यक्षता वाली महात्मा फुले समता परिषद ने जाति सर्वेक्षण के लिए दबाव बनाने का फैसला किया है। यह ओबीसी संगठनों का एक छत्र संगठन है। यह एक ऐसा क़दम है जिससे महायुति भागीदारों के बीच दरार और बढ़ने की संभावना है। पहले अजित पवार ने भी नीतीश कुमार द्वारा बिहार में किए गए सर्वेक्षण की तर्ज पर एक जाति सर्वेक्षण की मांग की थी।
इसके अलावा, भुजबल का रुख कई मुद्दों पर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के रुख से अलग रहा है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि लोकसभा चुनावों से पहले एनडीए के '400 पार' के नारे ने इसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। घाटकोपर होर्डिंग गिरने की घटना को लेकर वह उद्धव के समर्थन में भी सामने आए। उन्होंने राज्य के स्कूलों में मनुस्मृति को शामिल करने के सरकारी प्रस्ताव का भी विरोध किया।
सीट बँटवारे पर महायुति में अभी से ही विवाद
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए महायुति गठबंधन में सीट वितरण को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई है। शिवसेना शिंदे गुट के वरिष्ठ नेता रामदास कदम ने कहा है कि अगर शिवसेना के लोकसभा उम्मीदवारों की घोषणा भाजपा की तरह चुनावों से 2 महीने पहले की जाती तो हम सभी 15 सीटों पर जीत सकते थे। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने आरोप लगाया कि जब हमने अपने कैंडिडेट की घोषणा की तो भाजपा कूद पड़ी और उन सीटों पर अपना दावा ठोक दिया। रामदास कदम ने तंज कसते हुए कहा कि अगर अजित पवार की एंट्री में देरी हो जाती, तो ठीक रहता।
रामदास कदम ने विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है। इधर अजित पवार खेमे के प्रवक्ता अमोल मिटकरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट किया कि अजित पवार के समय पर आने से शिंदे खेमे की जान बच गई, वरना वे बिना लंगोट के ही चले जाते। इस बीच बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन ने साफ़ किया कि कोई भी व्यक्ति जितनी सीटें चाहे मांग सकता है, लेकिन नेतृत्व एक साथ बैठकर अंतिम निर्णय लेगा।