मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों का मामला शांत नहीं हो रहा है। रोज़ाना इसमें एक नया मोड़ा आ जाता है और इसके इर्द-गिर्द चल रहा विवाद पहले से अधिक गहरा हो जाता है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक, ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने यौन उत्पीड़न मामले की जाँच कर रही तीन सदस्यीय समिति को चिट्ठी लिख कर कहा है कि पूर्ण अदालत यानी फ़ुल कोर्ट उनके उठाए मुद्दों पर विचार करे। फ़ुल कोर्ट में अदालत के सभी जज होते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने ख़त में बाहर के किसी जज को समिति में शामिल करने का आग्रह किया है और उन्होंने इसके लिए तीन महिला जजों के नाम भी सुझाए हैं। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की रिटायर महिला जज रूमा पाल, सुजाता मनोहर और रंजना देसाई ‘अराजनीतिक और हर तरह के संदेह से परे’ हैं।
जजों की सम्मिलित राय
समझा जाता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ की चिट्ठी सिर्फ़ उनकी निजी राय नहीं, बल्कि तमाम जजों का सम्मिलित विचार है। उन्होंने चिट्ठी लिखने से पहले 17 जजों से राय मशविरा किया था। इस समय सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के अलावा 22 जज हैं। इसमें यौन उत्पीड़न जाँच समिति के तीन जजों के अलावा जस्टिस एन. वी. रमण भी हैं।समझा जाता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ की चिट्ठी में सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा जैसे मौलिक मुद्दे को उठाया गया है।
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लोग हमारे पास इसलिए आते हैं कि उन्हें हम पर भरोसा है और उन्हें लगता है कि हम निष्पक्ष हैं। .... शिकायतकर्ता ने जिन वजहों से जाँच से खुद को अलग कर लिया है, उन्हें दूर किया जाए।
डी. वाई. चंद्रचूड़, सुप्रीम कोर्ट जज
शिकायत करने वाली महिला ने कहा था कि जाँच समिति के काम करने के तौर तरीकों से असहमत होने के कारण वह जाँच प्रक्रिया से अलग हो रही है। उन्होंने कहा था कि उन्हें समिति के सामने पेश होते समय वकील लाने की अनुमति नहीं है, कोई ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं हो रही है, उन्हें बयान की कोई कॉपी नहीं दी जा रही है और न ही उन्हें प्रक्रिया की कोई जानकारी ही दी जा रही है।
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मैं समिति की जाँच प्रक्रिया का बहिष्कार करने को मजबूर हुई क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि समिति के लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह कोई मामूली जाँच नहीं है, बल्कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच का मामला है। मैं बेहद असमान स्थितियों में यहाँ हूँ और जाँच समिति को ऐसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए जो समानता और निष्पक्षता सुनिश्चित करे।
मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला
'प्रतिष्ठा का प्रश्न'
जस्टिस चंद्रचूड़ ने शिकायत करने वाली महिला को सुनवाई के दौरान वकील लाने की अनुमति नहीं देने को ‘प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन’ क़रार देते हुए कहा कि ‘यह उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न’ है।इस चिट्ठी में कहा गया कि जाँच प्रक्रिया अंदरूनी है और मेमोरंडम ऑफ प्रोसीज़र के तहत किया गया है, पर इसमें इसका उल्लेख ही नहीं है कि यह मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच कर रहा है।
एमिकस क्यूरी
चंद्रचूड़ ने समिति के जजों पर भरोसा जताते हुए कहा कि उन्हें एक एमीकस क्यूरी या ऐसा व्यक्ति नियुक्त करना चाहिए जो अदालत की मदद करे। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कोई रिटायर महिला जज एमीकस क्यूरी बनाई जा सकती हैं।बता दें कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार किसी सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगा है। महिला के मुताबिक़, सीजेआई गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो उसे कई तरह से परेशान किया गया और अंत में उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया।
इन आरोपों के सामने आने के बाद सीजेआई गोगोई ने कहा था कि वह इन आरोपों से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि उन्हें निचले स्तर तक जाकर इसका जवाब देना चाहिए।
सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’ सीजेआई ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश करार दिया था।
सीजेआई के ख़िलाफ़ साज़िश?
सुप्रीम कोर्ट के ही एक वकील उत्सव बैंस ने इस मामले में सीजेआई के ख़िलाफ़ साज़िश रचे जाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि सीजेआई के ख़िलाफ़ एक झूठा केस इसलिये दर्ज़ कराया गया है ताकि वह इस्तीफ़ा दे सकें। उत्सव ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा था कि सीजेआई गोगोई के ख़िलाफ़ आरोप लगाने वाली महिला के पक्ष में प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने के लिए अजय नाम के व्यक्ति ने उन्हें डेढ़ करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी।
यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि सर्वोच्च अदालत के वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन ने माँग की थी कि सीजेआई पर लगे आरोपों की जाँच के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए जो आरोपों की निष्पक्ष जाँच करे। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के संगठन सुप्रीम कोर्ट इंप्लॉयज़ वेलफ़ेयर असोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश का पक्ष लिया था। संगठन ने एक बयान जारी कर कहा था कि वह इस तरह के मनगढ़ंत, झूठे और बेबुनियाद आरोपों का विरोध करता है, ये आरोप संस्था की छवि को ख़राब करने के लिए लगाए गए हैं।