नतीजों से पहले विपक्ष की मोर्चाबंदी, नायडू ने संभाली कमान
लोकसभा चुनाव के आख़िरी चरण का मतदान शुरू हो चुका है। इस दौरान उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत आठ राज्यों की 59 लोकसभा सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं। लेकिन मतदान पूरा होने से पहले ही क्षेत्रीय दलों ने बीजोपी को सत्ता में आने से रोकने की मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। दरअसल, कई टीवी चैलनों के सर्वेक्षणों में एनडीए को बहुमत के आँकड़े से दूर रहने की आशंका जताई गई है। ऐसे में क्षेत्रीय दलों की कोशिश है कि नतीजे आने से पहले बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने पर आपसी सहमति बन जाए। प्रधानमंत्री कौन बनेगा इस सवाल पर नतीजों के बाद फ़ैसला कर लिया जाएगा।
केंद्र में नई सरकार बनाने को लेकर विपक्ष की मोर्चेबंदी की कमान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने संभाल ली है। 1996 में संयुक्त मोर्चा के संयोजक रहे चंद्रबाबू नायडू विपक्षी दलों के बीच बेहतर तालमेल बैठाने के माहिर माने जाते हैं। अब वह ख़ुद ही अपनी पुरानी भूमिका में आ गए हैं। शनिवार को उन्होंने नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ बैठक की। राहुल के अलावा चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव से भी मिले हैं। आज वह लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती से मुलाक़ात करेंगे। विपक्षी एकता के लिहाज़ से ये दोनों मुलाक़ातें काफ़ी अहम मानी जा रही हैं।
विपक्षी एकता के लिए नायडू का इन दोनों नेताओं से मिलना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि अखिलेश यादव खुले तौर पर मायावती का नाम प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में पेश कर चुके हैं।
पूरे चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और मायावती के बयानों से ऐसा लगता है कि ये दोनों नेता चुनाव के बाद नयी सरकार बनाने में कांग्रेस को समर्थन देने के बजाय उसके समर्थन से मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की ज़िद पर अड़ सकते हैं। नायडू पहले से यह कहते रहे हैं कि नयी सरकार के गठन के सवाल पर सभी को खुले दिल से सोचना होगा। इसके लिए सभी दलों को अपने-अपने पूर्वाग्रह त्यागने होंगे। अखिलेश तो चंद्रबाबू नायडू की बात मान भी जाएँगे, लेकिन मायावती की ज़िद को तोड़ना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।
मुलायम सिंह का क्या रहेगा रुख़
अपने लखनऊ दौरे के दौरान नायडू सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से भी मिल सकते हैं। 1996-1998 तक नायडू जिस संयुक्त मोर्चा के संयोजक रहे हैं उसी संयुक्त मोर्चा में एक बार मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने पर लगभग सहमति बन गई थी। बात तब की है जब कांग्रेस ने अचानक देवेगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लेकर संयुक्त मोर्चे की सरकार गिरा दी थी। बाद में कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे को नया प्रधानमंत्री चुनने का विकल्प दिया था। तब मुलायम सिंह के नाम पर सहमति बन गई थी। माकपा महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत, मुलायम सिंह यादव के सबसे बड़े पैरोकार थे लेकिन लालू यादव और शरद यादव के विरोध के चलते उनकी जगह इंद्रकुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाने पर आम राय बनी थी।
अखिलेश और मुलायम सिंह के साथ चंद्रबाबू नायडू की होने वाली मुलाक़ात में मुलायम के पुराने ज़ख़्म ताज़ा हो सकते हैं। कई दशकों से प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे मुलायम एक बार फिर इस सपने को साकार करने की कोशिश कर सकते हैं।
मुलायम को यह बात दिल ही दिल में कचोटती ज़रूर होगी कि जिस बेटे को उन्होंने जीते जी राजनीति में स्थापित कर दिया वह बेटा प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी जगह मायावती का नाम आगे बढ़ा रहा है। मुलायम सिंह अपने दिल की बात चंद्रबाबू नायडू से कह सकते हैं। नायडू उन्हें समझा भी सकते हैं कि वक़्त का पहिया काफ़ी घूम चुका है। देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियाँ 1996 से एकदम अलग हैं।
विपक्षी दलों की रणनीति
सूत्रों के मुताबिक़, चंद्रबाबू नायडू और राहुल गाँधी के बीच एनडीए को सत्ता से बाहर रखने के लिए बीजेपी विरोधी मोर्चे को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने पर विस्तार से चर्चा हुई। क़रीब घंटे भर से ज़्यादा चली इस बैठक नायडू ने राहुल गाँधी से बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में आगे की रणनीति पहले से ही तैयार रखने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक़ दोनों नेता इस बात पर सहमत हैं कि अगर एनडीए बहुमत के आँकड़े से दूर रहता है तो बीजेपी विरोधी मोर्चे को बिना देर किए सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए तैयार रहना चाहिए। दोनों नेताओं में इस बात पर भी सहमति बनी है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अनावश्यक बयानबाज़ी से भी बचना चाहिए।
क्या चाहते हैं चंद्रबाबू नायडू
राहुल गाँधी से मुलाक़ात से पहले चंद्रबाबू नायडू ने भाकपा नेताओं सुधाकर रेड्डी और डी. राजा से भी बातचीत की। सूत्रों की मानें तो नायडू इस नयी सरकार के गठन की कवायद को लेकर फ़ोन के ज़रिए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भी संपर्क में हैं। इससे पहले वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और माकपा नेता सीताराम येचुरी से भी मिल चुके हैं। नायडू तमाम बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश के तहत चुनाव नतीजों से पहले एक राउंड की बातचीत कर लेना चाहते हैं ताकि नतीजों के बाद इन दलों के बीजेपी की तरफ़ से होने वाली संभावित ख़रीद-फ़रोख़्त से बचाया जा सके।
बीजेपी ख़ेमे से ख़बरें आ रही हैं कि अगर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के दावों के मुताबिक़ बीजेपी और एनडीए को बहुमत नहीं भी मिलता है तो भी वह सरकार बनाने के लिए 30-40 सीटें तक आसानी से जुटा सकते हैं। विपक्षी दलों की कोशिश है कि नतीजों से पहले ही बीजेपी विरोधी दलों की इस तरह मोर्चाबंदी कर दी जाए कि बीजेपी एक भी सीट न जुटा पाए।