भारत में बनने वाला कोरोना टीका कोवीशील्ड विदेशों में भारत की तुलना में सस्ते में बिक रहा है। भारतीय कंपनी भारत को वही दवा ऊंची कीमत पर बेच रही है, लेकिन वही कंपनी वही दवा विदेशों को उससे कम कीमत पर निर्यात कर रही है। इसके अलावा कंपनी भारत में भी केंद्र को अलग और राज्य सरकारों को अलग कीमत पर वह टीका देगी। सीरम इंस्टीच्यूट ने विवाद बढ़ने पर एक बयान जारी कर कहा है कि यह टीका अभी भी दूसरी दवाओं की तुलना में सस्ता है।
विवाद मचने के बाद सरकार ने सफाई में यह तो कहा है कि वह 150 रुपए में ही टीका खरीद रही है, पर अलग-अलग कीमतों के मुद्दे पर वह चुप है। इससे लोगों का यह संदेह पुख़्ता हो रहा है कि कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर है।
कीमत पर विवाद
कोवीशील्ड की कीमत पर विवाद पहले भी हो चुका है। पर ताज़ा मामला यह है कि कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ट्वीट कर दावा किया है कि कोरोना की कीमत भारत में 400 रुपए है, लेकिन कंपनी वही दवा अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका उससे कम कीमत पर दे रही है।
अलग अलग कीमतें
सच यह है कि कंपनी को 150 रुपए पर भी मुनाफा हो रहा है और स्वयं कंपनी ने यह माना है।
बता दें कि ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय और दवा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका ने यह दवा विकसित की है। भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया को वह दवा सिर्फ यहां बना कर बेचना है और वह उसमें मुनाफ़ा कमा रही है।
विवाद का दूसरा कारण यह है कि राज्य सरकारों को यही टीका 400 रुपए और निजी क्षेत्र को 600 रुपए में दिया जाएगा।
एक दवा की कई कीमतें हो गईं- भारत सरकार के लिए 150 रुपए, राज्य सरकारों के लिए 400 रुपए, विदेशों में उससे कम कीमत और निजी क्षेत्र के लिए 600 रुपए।
केंद्र की सफाई
इस पर विवाद होने के बाद केंद्र सरकार ने शनिवार को सफाई दी और कहा है कि वह तो 150 रुपए में ही खरीद रही है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि राज्यों को वह टीका मुफ़्त में देगी।
लेकिन इससे इस सवाल का जवाब नहीं मिलता है कि एक दवा की कई स्तर पर कीमतें कैसे हो सकती हैं।
भारत सरकार ने बीते दिनों ही सीरम इंस्टीच्यूट को 3 हज़ार करोड़ रुपए दिए। इस पर हल्ला मचने के बाद केंद्र सरकार ने सफाई दी कि वह अग्रिम रकम है, कोई अनुदान नहीं है।
मुनाफ़ाखोरी?
सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया के प्रमुख अदार पूनावाला ने कोवीशील्ड पेश करते समय ही कहा था कि केंद्र सरकार को सस्ते में दवा दी जा रही है, पर बाद में उसकी कीमत बढ़ सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार को भी कंपनी मुनाफे में ही दवा दे रही है। लेकिन निवेश बड़ा हुआ और उसकी भरपाई ज़रूरी है।
कंपनी का जवाब
सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया ने शनिवार को दिन में एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि यह ग़लत तुलना है। बयान में कहा गया है, 'एसआईआई के उत्पादन का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा ही 600 रुपए की कीमत पर बेचा जाएगा। कोरोना इलाज की दूसरी दवाओं की तुलना में यह कम है।'
शुरू में वैक्सीन की कीमत कम होने के बारे में कंपनी ने सफाई देते हुए कहा है, 'शुरू में टीके की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम रखी गई थी क्योंकि खरीदने वाले देशों ने वैक्सीन विकसित होने के पहले ही कुछ पैसे अग्रिम दे दिए थे और उन्होंने जोखिम उठाया था। इसलिए भारत समेत पूरी दुनिया में इम्यूनाइजेशन की कीमत कम रखी गई थी।'
कंपनी ने कहा है कि 'मौजूदा स्थिति बहुत ही खराब है। वायरस लगातार म्यूटेट कर रहा है और लोगों की जान ख़तरे में है। हमें यह ध्यान में रखना है कि टीके को टिकाऊ बनाए रखना है और इसके लिए पैसे निवेश करना है। इसके जरिए ही कंपनी का विस्तार किया जा सकता है और उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।'
क्या कहना है कंपनी का?
अदार पूनावाला ने इस पर सफाई देते हुए कुछ दिन पहले ही कहा था, 'हम भारत सरकार को यह टीका 150 रुपए में दे रहे हैं। इसकी औसत कीमत 20 डॉल (यानी लगभग 1400-1500 रुपए) है। लेकिन मोदी सरकार के कहने पर हम इसे यहां सस्ते में दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हम इस पर मुनाफ़ा नहीं कमा रहे हैं, पर हमें बहुत मुनाफ़ा नहीं हो रहा है, जो निवेश के लिए ज़रूरी है।'सवाल यह है कि जब 150 रुपए में भी मुनाफ़ा हो रहा तो राज्य सरकारों को इसके लगभग तीन गुणे यानी 400 रुपए में यह टीका क्यों दिया जा रहा है। मुनाफ़ाखोरी और क्या होती है?