केंद्र सरकार ने राजीव गांधी हत्या मामले में नलिनी श्रीहरन सहित छह दोषियों को रिहा करने के 11 नवंबर के आदेश को चुनौती दी है। इसने उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की है। केंद्र ने कहा है कि मामले में अहम पक्ष होने के बावजूद उसे सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिए बिना दोषियों को छूट देने का आदेश पारित किया गया।
सरकार ने कुछ खामियाँ भी गिनाई हैं। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार इसने कथित प्रक्रियात्मक चूक को भी उजागर किया, जिसमें कहा गया है कि छूट की मांग करने वाले दोषियों ने औपचारिक रूप से केंद्र को एक पक्ष के रूप में शामिल नहीं किया। इसने कहा है कि इस वजह से 'प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का साफ़ तौर पर उल्लंघन हुआ है'।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में दोषी ठहराए गए छह लोगों को रिहा करने के आदेश के एक हफ्ते बाद केंद्र सरकार ने यह फ़ैसला किया है। उसने अदालत से अपने फ़ैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया। केंद्र सरकार ने कहा है, 'ऐसे संवेदनशील मामले में भारत संघ की सहायता सर्वोपरि थी क्योंकि इस मामले का देश की सार्वजनिक व्यवस्था, शांति और आपराधिक न्याय प्रणाली पर भारी प्रभाव पड़ता है।'
सरकार ने यह भी कहा कि छह में से चार दोषी श्रीलंकाई थे और देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के जघन्य अपराध के लिए आतंकवादी होने का दोषी ठहराया गया था। इसने कहा है कि उन्हें छूट देना 'एक ऐसा मामला है जिसके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव हैं और इसलिए यह पूरी तरह से भारत संघ की संप्रभु शक्तियों के भीतर आता है।'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को ही देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे छह दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया है। इन दोषियों में नलिनी श्रीहरन, श्रीहरन, संथन, मुरुगन, रॉबर्ट पायस और रविचंद्रन शामिल हैं। तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल से इन्हें रिहा किए जाने की सिफारिश की थी।
अदालत ने कहा कि उसका फ़ैसला कैदियों के अच्छे व्यवहार और मामले में दोषी ठहराए गए एक अन्य व्यक्ति एजी पेरारीवलन की मई में रिहाई पर आधारित था।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी एलटीटीई की एक महिला आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई थी। इस मामले में सात लोगों को दोषी ठहराया गया था। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
1987 में भारतीय शांति सैनिकों को श्रीलंका भेजने के बाद राजीव गांधी की हत्या को बदले की कार्रवाई के रूप में देखा गया था।
हत्या के दोषियों को रिहा किए जाने के मामले में कांग्रेस ने कहा है कि वह इस मामले में कानूनी उपाय तलाशेगी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा कि इस मामले में कांग्रेस सोनिया गांधी के विचारों से सहमत नहीं है और कांग्रेस का विचार स्पष्ट है और वह बीते कई सालों से इस विचार को स्पष्ट करती आई है। सोनिया गांधी रिहाई के पक्ष में रही हैं।
बता दें कि कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने 19 मार्च 2008 को अपने पिता की हत्या के मामले में दोषी नलिनी से वेल्लोर जेल में मुलाकात की थी। साल 2009 में प्रियंका गांधी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि अपने पिता की हत्या के शुरुआती सालों में वह बेहद गुस्से में थीं।