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125 वर्ष से भी पुराना है तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच का कावेरी जल विवाद

125 वर्ष से भी पुराना है तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच का कावेरी जल विवाद

वर्ष 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों के जरिए दोनों राज्यों में कावेरी नदी के जल के बंटवारे पर सहमति बनी थी। इसके बाद भी दोनों के बीच विवाद समय-समय पर होता रहा। आजाद भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के गठन के बाद भी यह जल विवाद कायम रहा। 

तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद 125 वर्ष से अधिक पुराना है। 

वर्ष 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों के जरिए दोनों राज्यों में कावेरी नदी के जल के बंटवारे पर सहमति बनी थी। 

इसके बाद भी दोनों के बीच विवाद समय-समय पर होता रहा। आजाद भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के गठन के बाद भी यह जल विवाद कायम रहा। 

विवाद बढ़ने पर भारत सरकार बीच-बचाव के लिए आयी लेकिन बात नहीं बनी। जल के बंटवारे पर विवाद को खत्म करने के लिए वर्ष 1990 में भारत सरकार ने दो जून 1990 को कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्लूडीटी) की स्थापना की थी। 

सीडब्लूडीटी ने 25 जून 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए कर्नाटक को राज्य में अपने जलाशय से पानी छोड़ने का निर्देश दिया था। सीडब्लूडीटी के उस आदेश में कहा गया था कि एक जल वर्ष में (एक जून से 31 मई) मासिक रूप से या साप्ताहिक आकलन के रूप में तमिलनाडु के मेटूर जलाशय को 205 मिलियन क्यूबिक फीट (टलएमसी) पानी दिया जाए। 

सीडब्लूडीटी बनने के बाद भी तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य में कई मुद्दों को लेकर कावेरी जल विवाद जारी रहा और अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। 

लंबी सुनवाई के बाद वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिए फैसले में कर्नाटक को जून से मई के बीच तमिलनाडु के हिस्से के रूप में 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्यों के बीच कावेरी नदी के पानी को लेकर होने वाले विवादों का निपटारा करने के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) और कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्ल्यूआरसी) के गठन का भी आदेश दिया था।

दोनों राज्यों के बीच वर्तमान विवाद का क्या है कारण

इस बार तमिलनाडु ने कर्नाटक से कावेरी नदी का 15 हजार क्यूसेक और जल छोड़ने की मांग की थी।लेकिन कर्नाटक ने इसका विरोध किया उसके विरोध के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने कर्नाटक से 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा । दूसरी तरफ तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने यह 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है। 

कम पानी छोड़ने के पीछे कर्नाटक का तर्क है कि  इस बार दक्षिण पश्चिम मानसून के कमजोर रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में काफी कम पानी है। इस कारण को बता कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने से इंकार कर दिया। कर्नाटक के इंकार के बाद मुद्दा फिर गर्मा गया। 

विवाद बढ़ने के बाद बीते 18 सितंबर को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया  था कि वह तमिलनाडु को 5,000 क्युसेक पानी जारी करे। कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था। 

प्राधिकरण के आदेश के खिलाफ कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। लेकिन कर्नाटक सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश भी दिया है। 

इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक के कई किसान और संगठन ने 29 सितंबर से पूरे राज्य में बंद का आह्वान किया है। 

कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र सबसे ज्यादा 

कावेरी नदी एक अंतरराज्जीय बेसिन है। इसका  उद्गम कर्नाटक है और यह बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर गुजरती है।

कावेरी नदी बेसिन का कुल जलसंभरण (वाटरशेड) 81,155 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र सबसे ज्यादा लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है। इसके बाद केरल में इसका जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है और तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है।

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