संत कबीरदास के तमाम दोहे बचपन में पढ़ाए गए थे, जिनका सही मायने स्कूल छोड़ने के बाद ही समझ आया। और एक-एक दोहा जीवन में समय-समय पर राह दिखाता है। जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान; मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान। इन्हीं में एक ऐसा दोहा है जिसकी याद उस दिन बहुत आई जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बता डाली भगवान हनुमान की जाति।
आख़िर ऐसी बात ऐसे व्यक्ति के मुँह से कैसे सुनाई पड़ी जो स्वयं एक भगवाधारी साधु है। संभवत: भगवा चोले के ऊपर राजनीति का चोला ओढ़ने के बाद और आज भारत के सबसे बड़े प्रदेश की सबसे ऊँची कुर्सी पर विराजमान होने का असर है।
दिमाग में ऐसे सवाल घूम रहे हैं कि क्या राजनीति एक मानसिकता को इतना बहका सकती है कि वह भगवान को भी जाति में बाँधने का प्रयास कर डाले? इससे ज़्यादा हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि भगवान की जाति पर डिबेट को हवा देनेवाला और कोई नहीं है, एक साधु है जो कि देश के एक महान हिंदू संप्रदाय का उत्तराधिकारी भी है।
इस संप्रदाय के महान संस्थापक बाबा गोरखनाथ, जिनके विचारों ने गुरु नानक देव और कबीर जैसी प्रसिद्ध शख़्सियतों तक को प्रभावित किया, शायद सपने में भी यह सोच नहीं सकते थे कि एक दिन ऐसा आएगा कि उनके उत्तराधिकारी हनुमान जी को भी एक ख़ास जाति तक सीमित कर देंगे। हो सकता है कि शहरों के नाम भी कुछ बदलते-बदलते उनको लगा हो कि अब जाति के मामले भी कुछ नया किया जाए।
‘बंदर परेशान करे तो हनुमान चालीसा पढ़ो’
मज़े की बात तो यह है कि वो अपने-आपको स्वयं ऐसा हनुमान भक्त दर्शाते हैं कि आम लोगों से कहते हैं कि यदि बंदर परेशान करे तो उनके सामने हनुमान चालीसा पढ़ो।
ये सलाह योगीजी ने और कहीं नहीं, कुछ माह पहले, वृंदावन में उस समय दी जब वहाँ के लोग बंदरों से आतंकित होने की शिकायत लेकर उनसे वहाँ मिले। बंदर तो हमेशा से वृंदावन में बड़ी संख्या में रहते रहे हैं। पर हाल में बंदरों की तादाद इतनी अधिक हो गई कि मनुष्य का रहना दूभर हो गया है।
आज वृंदावन में ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में बंदरों की आबादी बहुत बढ़ गई है, परंतु वर्तमान सरकार ने बंदरों को हर प्रकार के नियंत्रण से मुक्त कर दिया है क्योंकि उसका मानना है कि बंदरों की प्रजाति भगवान हनुमान का स्वरूप हैं। इसलिए आज की तारीख़ में सरकार के वन विभाग ने बंदरों का पालना, मदारियों द्वारा उनसे नाच करवाना या उनको पकड़ना पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है।
अब लंगूर पालने पर ही प्रतिबंध
कुछ समय पहले तक वन विभाग लंगूरों को इस उद्देश्य से पालता था कि उनका इस्तेमाल कर आम जन को बंदर को आतंक से मुक्ति दिला सके। लंगूर से बंदर बहुत डरता है और हमने अपनी आँखों से देखा है किस तरह से अकेला लंगूर किसी मोहल्ले या आबादी के इलाक़े से आतंक मचा रहे बंदरों को खदेड़ देता है। अब लंगूर पालने पर ही प्रतिबंध लग चुका है। यही नहीं, कुछ लंगूर पालने वाले जेल की हवा खा रहे हैं। स्पष्ट है, सरकार की नज़र में बंदर भी उतने ही पूज्य हैं जितने हनुमानजी।
ख़ैर, जैसे ही योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हनुमानजी दलित थे, नैशनल शेड्यूल ट्राइब्स कमीशन के चेयरमेन नंद कुमार साय झट से मैदान में कूद कर बोल पड़े - हनुमानजी शेड्यूल कास्ट नहीं, शेड्यूल ट्राइब से थे। अपनी बात के पक्ष में उन्होंने यह दलील दी कि हनुमानजी जंगल में रहते थे इसलिए वे शेड्यूल ट्राइब की कैटिगरी में आते हैं। उन्होंने यह भी कहा, 'शेड्यूल ट्राइब में कई उपजातियाँ होती हैं जैसे कि हनुमान, वानर, जटायु, और गिद्ध। और यह सब जानते हैं कि जब रामचंद्रजी बनवास पर थे तो उनको वन के जीव जैसे वानर उनकी मदद करते थे। इसलिए जब उनका रावण से युद्ध हुआ तब सारी वानर सेना उनके साथ रही।'
अभी तक योगी आदित्यनाथ ने साय के बयान पर चुप्पी साध रखी है। संभवत: विभिन्न प्रदेशों में हो रहे चुनावों के प्रचार में व्यस्त रहने के कारण उन्हें समय ना मिला हो। और वैसे भी फ़िलहाल उनको हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करवाने की धुन चढ़ी है।
हनुमान मंदिरों का पुजारी कौन हो?
लेकिन जो मुश्किल उन्होंने हनुमान जी की जाति बता कर अपने लिए स्वयं खड़ी कर ली है, शायद अभी तक उनको इसका अहसास नहीं हुआ है। कई दलित संगठनों ने यह माँग कर दी है कि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री और इतने बड़े हिंदू संप्रदाय के मठाधीश ने हनुमानजी को दलित करार दे दिया है तो सारे हनुमान मंदिरों का संचालन दलितों के हाथ में दे देना चाहिए। भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर भी इस मुद्दे को गरम करने में लग गए हैं। इसका आगे चल कर क्या असर होगा, यह तो समय ही बताएगा क्योंकि आज भी भारत के बहुत से मंदिरों में दलित का प्रवेश वर्जित है।