+
जाति जनगणनाः क्यों छटपटा रही भाजपा, मोदी, शाह, संघ का स्टैंड बार-बार क्यों बदला

जाति जनगणनाः क्यों छटपटा रही भाजपा, मोदी, शाह, संघ का स्टैंड बार-बार क्यों बदला

जाति जनगणना पर सत्तारूढ़ भाजपा और आरएसएस का स्टैंड बार-बार बदल रहा है। बिहार में जब जाति जनगणना की रिपोर्ट आई तो केंद्रीय अमित शाह ने उसे फ्रॉड बताया था। पीएम मोदी का अलग ही दार्शनिक राग था। संघ जाति की बात करने वालों को समाज को बांटने वाला बता रही था, अब कह रहा है कि वो जाति जनगणना के खिलाफ नहीं। सवाल यह है कि दक्षिणपंथी पार्टी और संगठना इतना भयभीत क्यों हैं। जानिए

नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने और कहा वो ओबीसी हैं, वो गरीब परिवार से हैं। इसके बाद मोदी ने 2 अक्टूबर को ग्वालियर में कहा कि आज भी कई लोग जाति के नाम पर लोगों को बांट रहे हैं। घोर पाप कर रहे हैं। 3 अक्टूबर 2023 को मोदी ने जगदलपुर (छत्तीसगढ़) में कहा- देश में अगर सबसे बड़ी कोई आबादी है तो वो गरीब की है। देश के संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है। उन्हें जातियों में बांटने वालों से सतर्क रहना होगा। 

मोदी के इस बयान से पहले ही बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट पेश हो चुकी थी। अक्टूबर में चुनावी माहौल था। पांच राज्यों में नवंबर में चुनाव होने वाले थे, अक्टूबर से भाजपा चुनावी मोड में थी। बिहार की जाति जनगणना रिपोर्ट से उसे झटका महसूस हुआ। 2024 में अब लोकसभा चुनाव है। कांग्रेस ने जाति जनगणना की मांग पूरे देश के लिए कर दी है। भाजपा और आरएसएस सतर्क हो गए हैं। वो अब कह रही हैं कि भाजपा और संघ जाति जनगणना के खिलाफ नहीं है। भाजपा पर अब एनडीए में छोटे क्षेत्रीय दलों का दबाव बढ़ गया है कि भाजपा जाति जनगणना के पक्ष में स्टैंड ले। लेकिन क्षेत्रीय दल बदले हुए बयानों से संतुष्ट नहीं हैं। वे इसके लिए बाकायदा आदेश जारी करने की मांग कर रहे हैं।

अमित शाह ने अक्टूबर में बिहार की जाति जनगणना को फर्जी बताते हुए कहा था कि लालू यादव के दबाव पर इसमें यादवों और मुस्लिमों की संख्या बढ़ा दी गई है। लेकिन 4 नवंबर को रायपुर में भाजपा का घोषणापत्र जारी करते हुए अमित शाह ने कहा कि भाजपा जाति जनगणना के खिलाफ नहीं है। 

भाजपा की छटपटाहट का राज यूपी और बिहार में छिपा है। जहां से लोकसभा की 120 सीटें आती हैं। यूपी में ओबीसी आधारित क्षेत्र दल ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल) और संजय निषाद की निषाद समाज पार्टी इस समय भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा हैं। हालांकि आरएसएस के लाडले और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जाति जनगणना से मना कर चुके हैं लेकिन एनडीए में शामिल इन तीनों दलों ने जाति जनगणना के लिए दबाव बना रखा है। इसी तरह बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, जीतनराम मांझी की पार्टी एनडीए के साथ है लेकिन जाति जनगणना के पक्ष में ये लोग भी रहे हैं।

अमित शाह ने जब जाति जनगणना पर अपना स्टैंड बदल लिया तो एनडीए में शामिल क्षेत्रीय दल पीएमके ( Patali Makkal Kacchi) के अध्यक्ष एस. रामदास ने खुल कर बयान दिया। एस. रामदास ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यह टिप्पणी कि भाजपा ने कभी भी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया और इस पर सावधानीपूर्वक विचार करने की जरूरत है और व्यापक परामर्श के बाद उचित निर्णय लिया जाए। भाजपा के रुख में यह बदलाव स्वागतयोग्य है। साथ ही, ऐसा नहीं लगना चाहिए कि यह टिप्पणी पांच राज्यों में चुनाव के कारण की गई है। केंद्र को इस पर तुरंत अपना परामर्श शुरू करना चाहिए। एक आयोग बनाना होगा और छह महीने में इसकी रिपोर्ट प्राप्त करनी होगी। तभी भरोसा होगा कि केंद्र जाति जनगणना के लिए उत्सुक है। 

एनडीए के एस. रामदास की एक-एक लाइन बता रही है कि 2024 के चुनाव से पहले जाति जनगणना के लिए एक आय़ोग बना दिया जाए। लेकिन अभी तक ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई। अब जिस तरह से आरएसएस का बयान जाति जनगणना के पक्ष में आया है, उससे संकेत मिलता है कि भाजपा शायद ऐसे किसी आयोग की घोषणा करे और इसी मुद्दे पर वोट मांगे कि अगर वो लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता में लौटी तो इस आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर लेगी। हालांकि भाजपा को अभी अभी अपने हिन्दुत्व के मुद्दे पर भरोसा है। जिसकी फसल वो कोई चुनावों में काट चुकी है। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को भुनाने के बाद उसे जाति जनगणना आयोग बनाने की जरूरत नहीं पड़े। लेकिन क्या एनडीए के क्षेत्रीय दल मानेंगे। ऐसा लगता नहीं है। इतना तय है कि 2024 के चुनाव में जाति जनगणना एक मुद्दा रहेगा।

भाजपा की छटपटाहट की एक वजह यूपी में सपा, बिहार में आरजेडी, जेडीयू भी हैं। जो पूरी तौर पर ओबीसी आधार वाली पार्टियां हैं। ये तीनों दल भाजपा गठबंधन में शामिल राजभर, कुशवाहा, पटेल की पार्टियों पर भारी पड़ते हैं। जिस तरह से जेडीयू प्रचार कर रही है कि नीतीश कुमार को यूपी के फूलपुर से चुनाव लड़ाया जाएगा। फूलपुर ओबीसी कुर्मी बहुल बेल्ट है। नीतीश के यूपी से चुनाव लड़ने पर भाजपा के ओबीसी वोटबैंक पर सीधे असर पड़ेगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि भाजपा का आधार ओबीसी जातियों में नहीं है। लेकिन वो अपने मातृ संगठन की वजह से इस पर स्पष्ट फैसला नहीं ले पा रही थी। क्योंति जातियों में बंटने की राजनीति गरमाने से हिन्दुत्व कमजोर होगा, यह आरएसएस जानता है। इसलिए अब संघ और भाजपा दोनों ही अपना स्टैंड बदल रहे हैं। 

लोकनीति-सीएसडीएस के सह-निदेशक संजय कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख में लिखा, ओबीसी के बीच भाजपा का विस्तार "कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों दोनों की कीमत पर हुआ, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में। भाजपा ने यादव जैसे उच्च ओबीसी की तुलना में निचले ओबीसी के बीच बेहतर प्रदर्शन किया, जो बिहार और उत्तर प्रदेश में आरजेडी और समाजवादी पार्टी का समर्थन आधार बनाते हैं।"

हाल ही में भाजपा ने अपनी यूपी यूनिट से कहा था कि वो जाति जनगणना के फायदे और जोखिम का विश्लेषण करके रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को भेजे। बताते हैं कि उस रिपोर्ट आने के बाद भाजपा कम से कम यूपी और बिहार के संदर्भ में ओबीसी और जाति जनगणना को लेकर अपना स्टैंड बदलने पर मजबूर हुई। 

जाति जनगणना और संघ का हिन्दुत्व

महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र के सह संघचालक श्रीधर गाडगे ने जाति जनगणना पर बुधवार को भाजपा सांसदों के दल से कहा कि हालांकि इससे कुछ लोगों को राजनीतिक तौर पर फायदा हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता के लिए अच्छा नहीं है। गाडगे के बयान को मीडिया ने प्रसारित कर दिया। गुरुवार को आरएसएस को इस पर बयान बदलना पड़ा। आरएसएस ने गुरुवार को अपना बयान बदलते हुए कहा कि 

ऐसी किसी भी जनगणना का इस्तेमाव समाज के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए। संघ ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी के कारण सामाजिक सद्भाव बाधित न हो। दोनों ही बयानों से साफ हो गया कि भाजपा और संघ दोनों ही जाति जनगणना के मुद्दे से परेशान हैं। 

आरएसएस प्रमुख ने 2015 में ऑर्गनाइजर को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक समिति सरकार बनाए जो बताए कि किन लोगों को आरक्षण का फायदा कब तक मिलता रहेगा। भागवत का बयान बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया था। आरक्षण समर्थक संगठनों ने आरोप लगाया था कि संघ दलितों का आरक्षण खत्म करना चाहता है। बाद में भागवत और आरएसएस को सफाई देना पड़ी थी। दलितों और ओबीसी को लेकर संघ का यह विरोधाभासी रवैया नया नहीं है। 2017 में संघ के तत्कालीन प्रमुख मनमोहन वैद्य ने खुलकर आरक्षण का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि समानता के मौके दिए जाएं, आरक्षण के मौके नहीं। 90 के दशक में जब मंडल की राजनीति गरमाई तो आडवाणी और आरएसएस हिन्दुत्व का मुद्दा लेकर आए थे और आरक्षण का तब भी विरोध किया था। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें