क्या कश्मीर में पार्टियों का गठबंधन मोदी सरकार पर दबाव बना पाएगा?
क्या नई दिल्ली के 5 अगस्त के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जम्मू और कश्मीर में मुख्यधारा के राष्ट्रीय दलों का गठबंधन मोदी सरकार को यह निर्णय बदलने या संशोधित करने के लिए मजबूर कर सकता है? यह सवाल कश्मीर के राजनीतिक और सार्वजनिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
पिछले साल 5 अगस्त को, नई दिल्ली ने जम्मू और कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा और उसके राज्य का दर्जा रद्द कर दिया था। इससे एक दिन पहले, 4 अगस्त को, श्रीनगर में गुपकार रोड पर फारूक़ अब्दुल्ला के निवास पर राष्ट्रीय मुख्यधारा के दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कई अन्य छोटे दल के नेताओं की बैठक में जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था। बैठक में मौजूद प्रमुख नेताओं- फारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती द्वारा हस्ताक्षरित संकल्प को "गुपकार घोषणा" के रूप में जाना जाता है।
एक साल से अधिक समय के बाद, इन दलों के नेताओं की एक और बैठक 22 अगस्त को फारूक़ अब्दुल्ला के गुपकार निवास पर हुई। बैठक में नई दिल्ली से पिछले साल 4 अगस्त तक रही जम्मू और कश्मीर की स्थिति को बहाल करने का अनुरोध किया गया।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि घाटी के प्रमुख राजनीतिक दलों का यह गठबंधन मोदी सरकार पर दबाव बनाने में सफल हो सकता है। कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख और राजनीतिक विश्लेषक नूर अहमद बाबा ने इस विषय पर ‘सत्य हिन्दी’ को बताया, “1947 से अब तक नई दिल्ली द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय के विरुद्ध इस तरह जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक दलों का गठजोड़ देखने को नहीं मिला। यह कश्मीर में मुख्यधारा की पार्टियों का इस तरह का पहला गठबंधन है। इसलिए, इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। मुझे लगता है कि यह राजनीतिक गठबंधन मोदी सरकार पर दबाव बना सकता है।'
प्रोफ़ेसर नूर बाबा का कहना है कि नई दिल्ली पिछले साल 5 अगस्त को उठाए गए कदम से पहले से ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दबाव में है और उसे जल्दी या कुछ समय बाद अपनी ग़लती को सुधारना होगा।
कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण
प्रोफ़ेसर नूर बाबा ने कहा, ‘हम जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीयकरण होते हुए देख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पिछले एक साल में इस मुद्दे पर तीन बार बहस हुई है। अमेरिकी कांग्रेस ने इस पर प्रस्ताव पारित किया। यूरोपीय देशों ने नई दिल्ली के 5 अगस्त के फ़ैसले की आलोचना की है। चीन दिन-प्रतिदिन कश्मीर मुद्दे पर बयान दे रहा है और आशंका है कि चीन इस मुद्दे पर तीसरे पक्ष के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि इसने दिल्ली के 5 अगस्त के फ़ैसले के संदर्भ में लद्दाख में अपनी घुसपैठ को सही ठहराने की कोशिश की है।’
प्रोफ़ेसर नूर बाबा ने आगे कहा, ‘हमने पिछले अस्सी वर्षों में कश्मीर के संबंध में ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी। मेरा मानना है कि नई दिल्ली इस सब के कारण दबाव में है। अब, अगर जम्मू और कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल भी दिल्ली से 5 अगस्त के फ़ैसले को बदलने की मांग कर रहे हैं, तो इसका कुछ असर होगा।’
दिन में सपने देखना जैसी बात: रैना
हालांकि, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना ने बैठक में मौजूद दलों के द्वारा अनुच्छेद 370 और जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति की बहाली की उम्मीद को "दिन में सपने देखना" करार दिया है। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के जिन राजनीतिक दलों ने यह संयुक्त मांग की है न केवल उनकी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा है बल्कि राजनीतिक महत्व भी है।
‘आवाज़ को नजरअंदाज करना आसान नहीं’
‘सत्य हिन्दी’ से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सिबत मोहम्मद हसन ने कहा, ‘ये सभी दल महत्वपूर्ण हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू और कश्मीर का सबसे पुराना राजनीतिक दल है जिसने भारत संघ के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय में भूमिका निभाई है। इसी तरह पीडीपी, कांग्रेस और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों का अपना महत्व है। तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती और जम्मू-कश्मीर के सभी पांच सांसद भी इन्हीं राजनीतिक दलों के हैं। नई दिल्ली के लिए इस आवाज़ को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।’
लेकिन सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार पिछले साल 5 अगस्त के अपने फ़ैसले को बदल या संशोधित कर सकती है? इस सवाल के जवाब में, कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार के पास इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का विकल्प है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
यह उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और इस संबंध में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट अगर चाहे तो इस फ़ैसले को पलट सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार और संपादक ताहिर मुहीउद्दीन ने इस संबंध में ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘बीजेपी पार्टी के स्तर पर 5 अगस्त के अपने फ़ैसले को बदलने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। लेकिन जहां तक सरकार का सवाल है, वह वर्तमान में कश्मीर से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। इसलिए, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यदि नई दिल्ली को कश्मीर में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूर होना पड़ा तो शायद उच्चतम न्यायालय की मदद से वह अपने रुख में लचक पैदा कर सकती है।’
मुहीउद्दीन ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट 5 अगस्त के सरकारी फ़ैसले को पलट देता है या इसमें संशोधन का निर्देश देता है तो मोदी सरकार के लिए मामला आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी। हालाँकि, यह निश्चित है कि एक साल बाद ही सही, पिछले साल के नई दिल्ली के फ़ैसले के ख़िलाफ़ कश्मीर से प्रभावी आवाज़ें उठने लगी हैं।