नागरिकता क़ानून: यूपी में 10 दिन बाद 4 रिहा, पुलिस ने कहा- सबूत नहींं मिले
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा को लेकर मुज़फ़्फ़रनगर में गिरफ़्तार किए गए लोगों में से चार को दस दिन तक हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया है। अब पुलिस का कहना है कि वह उन चारों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने के सबूत नहीं जुटा पाई। अब सवाल है कि जब उनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं थे तो किस आधार पर गिरफ़्तार कर लिया गया था? क्या यह किसी भी तरह से सही है कि पहले किसी भी व्यक्ति को घर से गिरफ़्तार कर लिया जाए और फिर सबूत ढूँढा जाए? क्या यह इस न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ नहीं है कि किसी निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए? यदि उन चारों के ख़िलाफ़ सबूत नहीं थे तो फिर दस दिन तक उनको हिरासत में रखना क्या उनके साथ अन्याय नहीं है?
रिपोर्ट है कि मुज़फ़्फ़रनगर में 30 दिसंबर को 24 वर्षीय अतीक़ अहमद, 53 वर्षीय मुहम्मद खालिद, 26 वर्षीय शोएब खालिद और सरकारी कार्यालय में काम करने वाले एक क्लर्क को रिहा किया गया है। इनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं होने की बात पुलिस का कोई सामान्य कर्मी ने नहीं बल्कि बड़े अफ़सर ने कही है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, शहर के एसपी सतपाल अंतिल ने कहा कि चारों को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिहा किया गया है क्योंकि पुलिस ने एक रिपोर्ट देकर कहा है कि इनके ख़िलाफ़ कोई भी सबूत नहीं पाया जा सका। उन्होंने कहा, 'हम बहुत निष्पक्ष जाँच कर रहे हैं और अगर हमें पता चलता है कि कोई व्यक्ति दंगा या पत्थरबाज़ी करने वालों में शामिल नहीं था तो हम इसके अनुसार ही कार्रवाई कर रहे हैं।’
उन्होंने इस बात की भी सफ़ाई दी कि जब सबूत नहीं थे तो उन्हें क्यों गिरफ़्तार किया गया था। अंतिल ने कहा, 'उस क्लर्क के घर की छत से पत्थरबाज़ी हो रही थी और समझा जाता है कि दूसरे भी भीड़ का हिस्सा थे।' उन्होंने हिरासत में उनको पीटे जाने और खाना और पानी नहीं देने के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने सफ़ाई दी कि हिंसात्मक प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज किया गया था और प्रत्येक के मानवाधिकार का ख़्याल रखा गया था।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी क्लर्क ने कहा कि 20 दिसंबर की रात जब वे सोए थे तो पुलिस दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसी थी और बिना कारण बताए ही उनको और उनके 20 वर्षीय बेटे को थाने ले गई थी। उन्होंने कहा, 'पुलिस ने हमारा फ़ोन भी ले लिया था। जब हमें बैरेक में ले जाया गया तो वहाँ पहले से ही क़रीब 100 को रखा गया था। पुलिस का व्यवहार बेहद अमानवीय था। हमें खाना और पानी तक नहीं दिया गया था। जब मैंने पानी माँगा तो मुझसे कहा गया कि अपनी पेशाब पी लो।' उन्होंने कहा कि 21 दिसंबर को कोर्ट में पेश करने के बाद उन्हें जेल में भेज दिया गया और उसके बाद उन्हें दिक्कत नहीं हुई। वह कहते हैं कि उनका बेटा अभी भी जेल में है।
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के छात्र अतीक 20 दिसंबर को शाम चार बजे अपने बीमार पिता की मेडिकल रिपोर्ट के लिए गए थे। उन्हें किडनी में दिक्कत बताई गई और उन्हें तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती करने को कहा गया था। शाम 7 बजे वह अपनी माँ के साथ अपने पिता मुहम्मद हारून को लेकर मेरठ के लिए निकले। उनके साथ हारून का भतीजा, उनकी पत्नी और उनका बेटा शोएब भी साथ थे। शोएब कहते हैं, "क़रीब 20 मिनट बाद ही मीनाक्षी चौक के पास पुलिसवालों ने रोका और कार से उतरने को कहा। अतीक और मुझ पर विशेष रूप से इशारा करते हुए कहा कि 'यही हैं, इन्होंने ही पत्थरबाज़ी की'।"
बीमारी बताई फिर भी राहत नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, हारून ने कहा, 'उन्होंने कहा कि मैं बीमार नहीं हूँ और बीमारी साबित करने को कहा। सभी रिपोर्ट और कागज दिखाए। मैं काँप रहा था, लेकिन उन्होंने नहीं जाने दिया।' शोएब ने कहा कि कुछ पुलिसकर्मी सहानुभूति जता रहे थे, लेकिन अधिकतर पुलिसकर्मियों के विरोध के कारण वे कुछ नहीं कर सके। उन्होंने कहा, 'उन्होंने आईडी कार्ड माँगा, महिलाएँ गिड़गिड़ा रही थीं लेकिन उन्होंने हमें घसीटते हुए पुलिस की गाड़ी में डाल दिया। उन्होंने यह तक नहीं बताया कि वे कहाँ ले जा रहे हैं। बाद में हमें पता चला कि हम पुलिस थाना में पहुँच गए थे।' 21 दिसंबर को हारून को मुज़फ़्फ़रनगर के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। डायलिसिस के बाद 27 दिसंबर को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया। खालिद ने भी वही बात कही कि वहाँ क़रीब 100 लोग थे। हालाँकि उन्होंने कहा कि उन्हें पानी दिया गया, लेकिन खाना नहीं। उन्होंने कहा कि उन्हें न तो पीटा गया और न ही किसी को पीटते हुए देखा।बता दें कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसात्मक हो गया था। इसके बाद पुलिस ने बड़े स्तर पर कार्रवाई शुरू की। कई लोगों ने आरोप लगाए कि उनका विरोध-प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है इसके बावजूद गिरफ़्तार किया गया है। हालाँकि इस बीच उत्तर प्रदेश की पुलिस ने दावा किया कि बिना किसी सबूत के किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया है। तब पुलिस ने हिंसा के दौरान के कुछ वीडियो और तसवीरें भी जारी की थीं। कई जगहों पर पुलिस के ख़िलाफ़ नाबालिगों को गिरफ़्तार करने के भी आरोप लगे हैं। हालाँकि पुलिस ने नाबालिगों की गिरफ़्तारी के आरोपों को खारिज किया है।