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इंडिया गठबंधन में जाना चाहते हैं कई बीएसपी सांसद; मायावती तैयार होंगी?

इंडिया गठबंधन में जाना चाहते हैं कई बीएसपी सांसद; मायावती तैयार होंगी?

लोकसभा चुनाव में बिना किसी गठबंधन के बीएसपी कितनी सीटें जीत पाएगी? बीजेपी और इंडिया गठबंधन के बीच लड़ाई में बीएसपी कहाँ टिकेगी? क्या इसीलिए बीएसपी के कई नेता इंडिया गठबंधन की पैरवी कर रहे हैं?

क्या बीएसपी के नेताओं को इसका अंदाज़ा है कि बीजेपी और इंडिया गठबंधन की सीधी टक्कर में बीएसपी कहाँ खड़ी होगी? मायावती भले ही किसी मजबूरी में इंडिया गठबंधन के साथ जाने में हिचकिचा रही हों, लेकिन बीएसपी के कई सांसद ही इंडिया गठबंधन में अपनी पार्टी का और अपना भविष्य देखते हैं। लगता है कि इन सांसदों को राजनीतिक समीकरण का अंदाज़ा है तो क्या मायावती और उनके सलाहकारों को नहीं होगा? तो सवाल है कि क्या मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार होंगी और क्या गठबंधन के दल बीएसपी को शामिल करने को तैयार भी होंगे?

इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि राजनीतिक समीकरण क्या हैं और बीएसपी सांसदों ने क्या कहा है। बीएसपी का मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश में ही वोट बैंक है। और यहाँ पर मौजूदा राजनीतिक समीकरण को देखें तो बीजेपी मज़बूत स्थिति में है। इंडिया गठबंधन की वजह से बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती होगी। समझा जाता है कि राज्य में अधिकतर सीटों पर बीजेपी और इंडिया गठबंधन में सीधी टक्कर होगी। 

ऐसी स्थिति में बीएसपी के स्वतंत्र रूप से लड़ने पर इसका क्या हाल होगा? बीएसपी पिछले कुछ वर्षों से अपने वोट बैंक के आधार में गिरावट देख रही है। हालाँकि, 2019 के चुनाव में पार्टी की स्थिति थोड़ी बेहतर हुई थी। तब वह एसपी और आरएलडी के साथ महागठबंधन में थी। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 10 जीतने में कामयाब रही। इससे पहले 2014 में उसे कोई सीट नहीं मिली थी। 2009 के लोकसभा चुनावों में मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने यूपी में 20 और मध्य प्रदेश में एक सीट जीती थी।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से नाता तोड़ लिया और पिछले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा। यह केवल एक सीट और क़रीब 12% वोट शेयर ही पा सकी। 2017 में पार्टी की सीटों की संख्या 9 थी और 22.23% वोट मिले थे। 2012 में इसे 80 सीटें मिली थीं और 25.95% वोट मिले थे। इससे पहले पार्टी ने 2007 में 206 सीटें जीती थीं और 30.43% वोट हासिल किए थे। 

बीएसपी की ऐसी हालत के बीच ही अब पार्टी के कुछ सांसदों की ओर से इंडिया गठबंधन में शामिल होने की मांग उठ रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने बसपा के एक अंदरूनी सूत्र के हवाले से कहा है कि पार्टी तभी जीत सकती है जब वह जाटव दलितों के अपने पारंपरिक आधार के बाहर मतदाताओं से जुड़ेगी। उन्होंने कहा, 'यह तभी संभव होगा जब हम गठबंधन करेंगे।' रिपोर्ट के अनुसार बसपा के जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव ने कहा, 'मेरी निजी राय है कि बसपा समेत सभी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। हालाँकि, बहनजी जो निर्णय लेंगी हम उसका पालन करेंगे।' उन्होंने यह भी कहा कि विभाजित विपक्ष से भाजपा को फायदा होगा क्योंकि वोट बंट जायेंगे।

रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य बीएसपी सांसद ने कहा, 'मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए बेहतर होगा कि हम इंडिया गठबंधन से हाथ मिला लें। अगर बीएसपी अकेले चुनाव लड़ती है और इंडिया गठबंधन के वोट काटती है तो बीजेपी को फायदा होगा। इसके अलावा, अगर बसपा अकेले चुनाव लड़ती है तो उसे नुकसान होगा क्योंकि सपा और आरएलडी के साथ गठबंधन के कारण मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होते दिख रहे हैं।' अंग्रेजी अख़बार से पार्टी के एक अन्य सांसद ने कहा कि अगर पार्टी सत्तारूढ़ दल को हराने की स्थिति में नहीं दिखती है तो भाजपा विरोधी मतदाता बसपा के पक्ष में नहीं आएँगे। उन्होंने कहा, 'इंडिया गठबंधन बीजेपी के लिए एक मजबूत विकल्प की तरह दिख रहा है। ऐसे में केवल जाटवों को आधार बनाकर बसपा कैसे जीत सकती है? अगर बसपा गठबंधन में शामिल नहीं होती है, तो मैं कांग्रेस या सपा में शामिल हो जाऊंगा और चुनाव लड़ूंगा।'

अब ऐसे राजनीतिक समीकरण में मायावती क्या फ़ैसला लेंगी? क्या वह इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बारे में सोचेंगी? हालाँकि यह उतना आसान भी नहीं है। इसकी कई वजहें हैं।

कभी पश्चिम यूपी में पार्टी का एक प्रमुख मुस्लिम चेहरा रहे इमरान मसूद को इस साल की शुरुआत में इसलिए निष्कासित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने कांग्रेस की प्रशंसा की थी और मायावती से इंडिया गठबंधन में शामिल होने का आग्रह किया था। हाल ही में अमरोहा के सांसद दानिश अली को 'पार्टी विरोधी' गतिविधियों के कारण बसपा से निलंबित कर दिया गया। दानिश अली भी हाल के दिनों में विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ दिखते रहे हैं। समझा जाता है कि मायावती के लिए इंडिया गठबंधन में शामिल होना इसलिए भी मुश्किल है कि बीजेपी का उनपर दबाव हो सकता है। मायावती के विरोधी आरोप लगाते रहे हैं कि मायावती बीजेपी के दबाव में इसलिए हैं कि उनपर कई केंद्रीय एजेंसियों की जाँच चल रही है।

इसके बावजूद यदि मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल होना चाहती हैं तो भी यह इतना आसान नहीं है। ऐसा इसलिए कि अखिलेश मायावती को गठबंधन में लेने के पक्ष में नहीं हैं। यहाँ तक कि उन्होंने मायावती को शामिल करने पर इंडिया गठबंधन को छोड़ने की धमकी तक दे दी है। 

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 19 दिसंबर को इंडिया की बैठक में विपक्षी समूह में बहुजन समाज पार्टी को संभावित रूप से शामिल करने को लेकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आक्रोश जताया था। बैठक में अखिलेश ने घोषणा की थी कि अगर बहुजन समाज पार्टी को साथ लाया गया तो उनकी पार्टी इंडिया गठबंधन को छोड़ देगी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने सुना है कि मायावती को शामिल करने की कोशिश की जा रही है। उनका यह बयान तब आया जब समझा जाता है कि कांग्रेस में एक खेमा है जो मायावती को भी गठबंधन का हिस्सा बनाने का पक्षधर है। इतना सब होने के बावजूद बीएसपी की इंडिया गठबंधन में एंट्री इतनी आसान नहीं है। हालाँकि राजनीति में कब क्या हो जाए, यह तय करना बेहद मुश्किल है क्योंकि कई बार धुर-विरोधी भी आख़िरी क्षण में गले मिल लेते हैं!

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