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एक शख्स जवान दिखने के लिए सालाना ख़र्च करता है 16 करोड़ रुपये!

एक शख्स जवान दिखने के लिए सालाना ख़र्च करता है 16 करोड़ रुपये!

जवान दिखने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं! लेकिन अमेरिका के एक शख्स, उसके पिता और उसके बेटे की कहानी सुनेंगे तो आप भी चौंक जाएंगे! जानिए, आख़िर वे ऐसा क्या करते हैं क्या फर्क पड़ भी रहा है।

क्या आप वैसा एक्सपेरिमेंट अपने शरीर पर करने के लिए तैयार होंगे जिसका प्रयोग सिर्फ़ चूहों पर ही किया गया हो और उसके परिणाम को लेकर वैज्ञानिक भी निश्चिंत नहीं हों? ऐसा होने के बावजूद एक अमीर व्यक्ति हर साल क़रीब 2 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 16 करोड़ रुपये ख़र्च कर देता है! वह भी सिर्फ़ जवान दिखने के लिए! तो क्या यह संभव है? आख़िर वह शख्स क्या तरीक़ा अपना रहा है और अपने परिवार के दो लोगों को भी उसमें उसने क्यों जोड़ रखा है?

यह मामला है 45 वर्षीय ब्रायन जॉनसन का। उनकी 30-40 की उम्र में किस्मत चमकी जब उन्होंने अपनी भुगतान प्रसंस्करण कंपनी ब्रेंट्री पेमेंट सॉल्यूशंस को ईबे को 800 मिलियन डॉलर नकद में बेच दिया। न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार ब्रायन कहते हैं कि इन रुपये के दम पर उन्होंने जो दैनिक दिनचर्या में बदलाव किया है उससे उन्हें 37 वर्षीय शख्स के दिल, 28 वर्षीय व्यक्ति की त्वचा, और 18 वर्षीय व्यक्ति की फेफड़ों की क्षमता और फिटनेस का अनुभव होता है। 

उन्होंने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया है कि ब्रायन बेहद सख़्त दिनचर्या का पालन करते हैं। इसमें एक्सरसाइज से लेकर खानपान तक की दिनचर्या शामिल है। इसके लिए 30 डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम है जो उनके स्वास्थ्य की देखरेख करती है। इस दिनचर्या के अलावा वह एक ख़ास मेडिकल प्रक्रिया से भी गुजरते हैं जो बेहद अहम है। यही वह प्रक्रिया है जिसके बारे में अब तक कुछ ज्यादा साबित नहीं हो पाया है। 

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, दरअसल, तकनीकी उद्यमी 45 वर्षीय ब्रायन जॉनसन अपने 70 वर्षीय पिता रिचर्ड और 17 वर्षीय बेटा टैल्मेज के साथ डलास के पास एक स्वास्थ्य सेवा क्लिनिक में जाते हैं। वे सुबह जल्दी पहुंचते हैं, और कई घंटों के दौरान वे अपने रक्त प्लाज्मा की अदला-बदली करते हैं। 

बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान प्लाज्मा थैरेपी प्रचलित रही थी। इसमें कोरोना संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति के प्लाज्मा को कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शरीर में ख़ून के रूप में चढ़ाया जाता था जिससे कि कोरोना से लड़ने वाले एंटीबॉडी को कोरोना संक्रमित शख्स के शरीर में डाला जा सके।

बहरहाल, रिपोर्ट के अनुसार टैल्मेज पहले जाता है, उसका एक लीटर ख़ून निकाला जाता है और एक मशीन के माध्यम से तरल प्लाज्मा, लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को अलग किया जाता है। इसके बाद ब्रायन उसी प्रक्रिया से गुजरते हैं। उसके बाद एक अतिरिक्त प्रक्रिया होती है जिसमें उनके बेटे टैल्मेज के प्लाज्मा को ब्रायन की नसों में डाला जाता है। रिचर्ड अंत में जाता है और ख़ून निकाले जाने के बाद उनको ब्रायन का प्लाज्मा चढ़ाया जाता है।

यह वह प्रक्रिया है जिसको पहले चूहों पर आजमाया गया है। चूहों में प्रयोगों से पता चला कि बूढ़े चूहों में युवा चूहों से द्रव्य पदार्थ चढ़ाने से बूढ़े चूहे तरोताज़ा अनुभव करते हैं। इन परिणामों से प्रेरित होकर, कुछ लोगों ने खुद पर प्रयोग करने का विकल्प चुना है। ब्रायन भी यही कर रहे हैं।

ब्रायन के लिए प्लाज्मा की अदला-बदली कोई असामान्य घटना नहीं है। वह लगातार कई महीनों तक डलास-क्षेत्र के क्लिनिक में रहे। वह परिवार के सदस्यों से ही नहीं, बल्कि अनजान युवा शख्स से भी प्लाज्मा चढ़ाते रहे हैं। 

दरअसल, ब्रायन प्रोजेक्ट ब्लूप्रिंट नामक किसी चीज़ के माध्यम से अपने शरीर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जैसा कि ब्लूमबर्ग बिजनेसवीक ने जनवरी में रिपोर्ट किया था, जॉनसन चिकित्सा निदान और उपचार पर प्रति वर्ष लाखों डॉलर खर्च कर रहे हैं। ये खर्च खाने, सोने और व्यायाम के सावधानीपूर्वक तैयार किए गए पूरे ब्लूप्रिंट पर हैं। वह यह देखना चाहते हैं कि क्या वह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं, और शायद उलट भी सकते हैं। इस खोज में सहायता करने के लिए उनके पास डॉक्टरों की एक टीम है।

प्रोजेक्ट ब्लूप्रिंट के रूप में जानी जाने वाली पहल के लिए ब्रायन जॉनसन को प्रति दिन 1,977 कैलोरी की सख्त शाकाहारी आहार का पालन करने की ज़रूरत होती है। एक दैनिक व्यायाम एक घंटे तक चलता है और बेहद सख्त व्यायाम सप्ताह में तीन बार होता है, और हर रात सोने का समय बिल्कुल एक ही होता है। 

ब्रायन का लक्ष्य अंततः उनके सभी प्रमुख अंगों- मस्तिष्क, यकृत, गुर्दे, दांत, त्वचा, बाल और मलाशय आदि का पहले जैसा कार्य करना है, जैसा कि वे अपने किशोरावस्था में थे। लेकिन क्या उनका लक्ष्य पूरा हो रहा है या होगा? इस बारे में अब तक कुछ भी सिद्ध नहीं हो पाया है। क्या यह कभी साबित हो भी पाएगा?

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