ब्राह्मण जीन की बात करने वाले क्या नस्लवादी और जातिवादी हैं?
"ब्राह्मण जीन" पर बहस शुरू हो गई है। बेंगलुरु की एक महिला कारोबारी ने सोशल मीडिया पर "ब्राह्मण जीन" कैप्शन के साथ एक तस्वीर पोस्ट की। जस्टबर्स्टआउट नाम की कंटेंट राइटिंग एजेंसी की सीईओ अनुराधा तिवारी ने एक्स पर तस्वीर में नारियल पानी पीते हुए नजर आ रही हैं। उनकी पोस्ट वायरल है और अभी तक 40 लाख लोगों तक पहुंची है।
Brahmin genes 💪 pic.twitter.com/MCcRnviJcY
— Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) August 22, 2024
अपनी पोस्ट के वायरल होने के बाद, अनुराधा तिवारी ने एक अन्य पोस्ट में लिखा कि ब्राह्मण शब्द के मात्र उल्लेख से "कई घटिया लोग भड़क उठे।" आगे वो लिखती हैं- "यही बहुत कुछ बताता है कि असली जातिवादी कौन हैं। यूसी को सिस्टम से कुछ नहीं मिलता है - कोई आरक्षण नहीं, कोई मुफ्त चीज़ नहीं। हम सब कुछ अपने दम पर कमाते हैं और हमें अपने वंश पर गर्व करने का पूरा अधिकार है।"
एक अन्य ट्वीट में वो लिखती हैं- गौरवान्वित दलित/मुस्लिम/आदिवासी - ठीक है। घमंडी ब्राह्मण- ठीक नहीं। ब्राह्मणों को उनके अस्तित्व के प्रति दोषी महसूस कराने के लिए एक पूरी व्यवस्था काम कर रही है। इस नेरेटिव को बदलने का समय आ गया है। निष्काम ब्राह्मण बनो। इसे अपनी आस्तीन पर पहनें. तथाकथित सामाजिक न्याय योद्धाओं को जलने दो।
Proud Dalit/Muslim/Tribal - Okay
— Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) August 24, 2024
Proud Brahmin - Not okay
There is an entire system working to make Brahmins feel guilty for their very existence.
Time to change this narrative. Be an unapologetic Brahmin. Wear it on your sleeve. Let the so-called social justice warriors burn.
क्या जींस की बात करना, उस पर गर्व करना सही है? क्या ये जातिवादी, नस्लवादी और श्रेष्ठतावादी होना नहीं है? बिल्कुल है, क्योंकि ये केवल जींस के आधार पर दूसरी जातियों और नस्लों से ख़ुद को श्रेष्ठ बताने की एक कोशिश है।
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यही दंभ हिटलर में था। वो मानता था कि जर्मन आर्य हैं और इसीलिए सबसे श्रेष्ठ हैं। इसी का दूसरा पहलू था यहूदियों से घृणा, नरसंहार और दूसरा विश्वयुद्ध। दो सौ साल तक हम पर शासन करने वाले अंग्रेज़ भी इसी श्रेष्ठताबोध से पीड़ित थे और हमें ग़ुलाम बनाकर रखा क्योंकि उनके हिसाब से हमारा जींस ही गड़बड़ थे।
अमेरिका के अधिकांश गोरे कालों और दूसरे रंगों के लोगों को इसीलिए हीन मानते हैं। सैकड़ों साल उन्हें ग़ुलाम बनाए रखने का आधार भी यही था। अनुराधा तिवारी तर्क दे रही हैं कि जब दलित या आदिवासी खुद पर गर्व कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं? दलितों, आदिवासियों से तुलना इसलिए सही नहीं है क्योंकि वे अपनी ग़ुलामी और हीनता से उबरने के लिए अपने समाजों में गर्व भरने की कोशिश कर रहे हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यही काम आंदोलनकारियों ने भारतीयों के लिए किया था। ब्राम्हण जींस की बात करना दरअसल ब्राम्हणवाद को महिमामंडित करना है, मनुवादी विचारों को महिमामंडित करके अपने वर्चस्व को कायम रखना है।
इसलिए अनुराधा तिवारी आप ग़लत हैं। वे सब लोग जो अनुराधा की तरह सोचते और उनसे सहमति दर्शा रहे हैंं ग़लत हैं। नंबर वन चैनल की वह ऐंकर भी ग़लत थी जिसने अपने ब्राम्हण होने पर गर्व जताया था वह अंग्रेज़ी का ऐंकर भी ग़लत था जो इस बात से खुश हो रहा था कि रक्षा मंत्री बनने वाले मनोहर पर्रिकर भी सारस्वत ब्राम्हण हैं और वह भी।
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मुमकिन है कि दलितों पर हज़ारों साल से अत्याचार करने की वज़ह से कोसे जाने के चलते बहुत सारे ब्राम्हण एक किस्म के गिल्ट के शिकार हो रहे हों और उससे मुक्ति के लिए वे अब उसी पर गर्व करने की बात कर रहे हों। मगर ये भी सही रास्ता नहीं है।
कई बार इस तरह का गिल्ट समाज के लिए अच्छा होता है। अगर आज जर्मन हिटलर के कारनामों को लेकर गिल्ट में है तो अच्छा है। अंग्रेज़ औपनिवेशिक दौर की लूटपाट को लेकर क्षमाप्रार्थी की मुद्रा में होते हैं तो अच्छी बात है या फिर अगर अमेरिका के गोरे ये स्वीकार करते हैं कि कालों को ग़ुलाम बनाकर उन्होंने घनघोर पाप किया है तो ये अच्छा है।
इससे वे पुराने पापों को दोहराने से बचते हैं और उनके मन में समानुभूति पैदा होती है। वे ग़लतियों को सुधारने की दिशा में क़दम उठाते हैं।
इसलिए अनुराधा तिवारी ब्राम्हण जींस पर घमंडीपन से उबरो। नहीं तो वो जो कंटेंट आपकी कंपनी बना रही है, उसमें भी वही मनुवादी छाप लगेगी या क्या पता लगी होगी।
Ever heard of Rani Lakshmibai, you dimwit? https://t.co/feuxUOLEK6
— Anuradha Tiwari (@talk2anuradha) August 23, 2024
एक्स (ट्विटर) पर आ रही टिप्पणियां भी कम रोचक नहीं हैं। एक यूजर ने एक्स पर जब विरोध जताया तो अनुराधा तिवारी ने उस यूजर को मुर्ख कहा। ट्विटर यूजर ने लिखा था- "मनुस्मृति के अनुसार, लड़कियों को हर समय घर पर रहना चाहिए, अपने पति की देखभाल करनी चाहिए, और कुछ नहीं करना चाहिए। लेकिन संविधान के कारण, आप ट्विटर पर अपने ट्राइसेप्स दिखा रहे हो और अपने तरीके से जीवन जी रहे हो। तो आगे बढ़ें और इसके लिए बाबासाहेब अम्बेडकर को धन्यवाद करें।" अनुराधा तिवारी ने जवाब देते हुए कहा, "क्या तुमने कभी रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सुना है, तुम मूर्ख हो?" ऊपर का ट्वीट देखें।
Some thoughts on being genetically superior/castesim ! Well well her profile bears a hashtag #onefamilyonereservation !
— Adv. Shashank Ratnoo (@ShashankRatnoo) August 22, 2024
Precisely why castesim is still present ! Being fit is good but attributing that to superior or specific genes , not the way to build one family one india ! https://t.co/Kv4sPHhpkX
सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक रत्नू ने लिखा है कि यही कारण है कि जातिवाद अभी भी मौजूद है। उनकी (अनुराधा तिवारी) प्रोफ़ाइल पर एक हैशटैग #onefamilyonereservation है! यही कारण है कि जातिवाद अभी भी मौजूद है! फिट रहना अच्छी बात है, लेकिन इसका श्रेय श्रेष्ठ या विशिष्ट जीन को देना, एक परिवार एक भारत बनाने का तरीका नहीं है।"
यह पहली बार नहीं है जब अनुराधा तिवारी अपने सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर सुर्खियों में आई हैं। इससे पहले वह आरक्षण के खिलाफ बोलकर सुर्खियां बटोर चुकी हैं। उनकी एक्स प्रोफाइल पर अगस्त 2022 की एक पिन की गई पोस्ट में कहा गया है कि वह सामान्य श्रेणी से हैं, जबकि उनके पूर्वजों ने उन्हें "0.00 एकड़ जमीन" दी है।
अनुराधा ने लिखा था- "मैं एक किराए के घर में रहती हूं। 95% मार्क्स प्राप्त करने के बावजूद मुझे एडमिशन नहीं मिल सका, लेकिन मेरे सहपाठी, जिसने 60% अंक प्राप्त किए और एक अच्छे परिवार से आते हैं, को एडमिशन मिल गया। और आप मुझसे पूछते हैं, "मुझे इस आरक्षण से समस्या क्यों है?